भारत को खेल महाशक्ति बनाने का महत्वाकांक्षी कदम, खेलो भारत नीति से आएंगे कई बड़े बदलाव
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में शुरू की गई खेलो भारत नीति-2025 2047 तक भारत को वैश्विक खेल महाशक्ति बनाने के लक्ष्य के अनुरूप है जिसमें 2036 ओलंपिक की मेज़बानी पर ध्यान केंद्रित है। यह नीति वैश्विक मंच पर उत्कृष्टता आर्थिक और सामाजिक विकास जन आंदोलन और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के साथ एकीकरण जैसे पांच स्तंभों पर आधारित है।

डॉ. हेमांग जोशी, संसद सदस्य, वड़ोदरा। 1 जुलाई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा शुरू की गई यह नीति, 2001 की राष्ट्रीय खेल नीति का स्थान लेती है। यह नीति 2047 तक भारत को वैश्विक खेल महाशक्ति बनाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के अनुरूप तैयार की गई है, जिसमें 2036 ओलंपिक की मेजबानी पर विशेष ध्यान है।
यह नीति पांच स्तंभों पर आधारित रणनीतिक रोडमैप प्रस्तुत करती है: वैश्विक मंच पर उत्कृष्टता, आर्थिक विकास हेतु खेल, सामाजिक विकास हेतु खेल, जन आंदोलन के रूप में खेल और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के साथ एकीकरण। यह लेख इस नीति के संभावित प्रभाव का विश्लेषण करता है और इसके सफल क्रियान्वयन हेतु जमीनी सुझाव प्रस्तुत करता है।
'खेलो भारत नीति एक साहसिक पहल'
खेलो भारत नीति - 2025 एक साहसिक पहल के रूप में सामने आई है, जो अपने पूर्ववर्ती की तुलना में खेलों को राष्ट्र निर्माण के एक बहुआयामी उपकरण के रूप में पहचानती है। भारत की वैश्विक आकांक्षाओं के साथ मेल खाती तारीख पर लॉन्च की गई यह नीति देश की युवा आबादी (मध्यम आयु 28 वर्ष) को समग्र विकास के आधार के रूप में उपयोग करती है।
भारत कर सकता है 2036 के ओलंपिक की मेजबानी
2036 ओलंपिक की मेजबानी के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, यह नीति प्रतिभा विकास, आधारभूत संरचना और समावेशिता की ऐतिहासिक कमियों को दूर करने के लिए व्यापक ढांचा प्रस्तुत करती है। यह समयानुकूल पहल भारत की वर्तमान प्रगति के साथ तालमेल बनाते हुए, खेल को आर्थिक वृद्धि, सामाजिक एकता और शैक्षिक सुधार के उत्प्रेरक में बदलने का मार्ग प्रशस्त करती है।
इस स्तंभ का उद्देश्य जमीनी स्तर से लेकर उच्च स्तरीय खेलों तक की संपूर्ण प्रणाली को मज़बूत कर अंतरराष्ट्रीय खेलों में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करना है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभा पहचान और समावेशी आधारभूत संरचना पर ज़ोर देना महत्वपूर्ण कदम है, विशेषकर भारत के सीमित ओलंपिक पदकों को देखते हुए।
दूरदराज के क्षेत्रों से चैंपियन सामने लाने का प्रयास
ब्लॉक स्तर पर सामुदायिक भागीदारी और नियमित टैलेंट स्काउटिंग कैंप के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों से चैंपियन सामने लाने का प्रयास है। लेकिन इस स्तंभ की सफलता निरंतर वित्तपोषण और प्रशिक्षित कोच की उपलब्धता जैसी चुनौतियों को पार करने पर निर्भर करती है। बिना स्पष्ट समयसीमा के, अधोसंरचना का विकास असमान रह सकता है, जैसा कि अतीत की ‘खेलो इंडिया’ जैसी योजनाओं में देखा गया है।
दूसरा स्तंभ खेलों को आर्थिक विकास का साधन मानता है, जिसके अंतर्गत खेल पर्यटन, ‘मेक इन इंडिया’ के तहत उपकरण निर्माण और खेल स्टार्टअप व उद्यमिता को बढ़ावा देने वाली योजनाएं शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट की मेज़बानी से पर्यटन राजस्व और रोजगार बढ़ सकता है, जबकि स्थानीय विनिर्माण क्षेत्र नवाचार और रोज़गार के नए अवसर ला सकता है।
क्या बोले खेल मंत्री?
केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मांडविया के अनुसार, “हम एक ऐसा खेल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो न केवल विश्व स्तरीय एथलीट पैदा करे बल्कि निजी क्षेत्र की भागीदारी से आर्थिक विकास को भी गति दे।” 40 से अधिक कंपनियों द्वारा ओलंपिक खेलों को अपनाना इसी PPP मॉडल की सशक्त झलक है। हालांकि, खेल परिसंपत्तियों की वित्तीय स्थिरता और स्टार्टअप की विस्तारणीयता अभी प्रमाणित नहीं है। 2047 तक इस आर्थिक क्षमता को साकार करने हेतु निजी निवेश के लिए प्रोत्साहन और प्रभावी निगरानी आवश्यक है।
तीसरे स्तंभ में महिलाओं, जनजातीय समुदायों और दिव्यांगजनों जैसे वंचित वर्गों के लिए समर्पित सुविधाओं और लीगों के माध्यम से सामाजिक समावेशन को प्राथमिकता दी गई है। पारंपरिक खेलों का संवर्धन और अंतरराष्ट्रीय खेल आदान-प्रदान, भारत की सांस्कृतिक शक्ति को बढ़ाने और कूटनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करने में सहायक है।
दिए जा रहे ये सुझाव
- यह समावेशी दृष्टिकोण युवाओं में आत्मविश्वास और जुड़ाव की भावना को बढ़ा सकता है, लेकिन इसके लिए सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में नीति की सफलता निरंतर सामुदायिक भागीदारी और भेदभाव विरोधी प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर है।
- जिलास्तरीय स्काउटिंग हब्स की स्थापना की जाए, जो स्कूलों और NGOs के साथ मिलकर तिमाही कैंप आयोजित करें। मोबाइल स्पोर्ट्स वैन के माध्यम से दूरदराज़ के क्षेत्रों तक पहुंच बनाई जाए। 2025 के अंत तक 50 ज़िलों में पायलट कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है।
- कम उपयोग वाले सार्वजनिक स्थानों को खेल हब्स में बदला जाए। CSR फंड के माध्यम से कोर्ट्स का निर्माण और रखरखाव सुनिश्चित किया जाए। ‘कम्युनिटी स्पोर्ट्स डे’ के आयोजन से सहभागिता को बढ़ावा मिलेगा। प्रमाणित कोचों द्वारा क्षेत्रीय कार्यशालाओं के माध्यम से शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाए। 2025 से शुरू कर दो वर्षों में 80% शारीरिक शिक्षा शिक्षकों को प्रशिक्षित करना लक्ष्य हो।
- हर ब्लॉक में महिलाओं व दिव्यांगों के लिए समर्पित खेल लीग शुरू की जाए, जैसे व्हीलचेयर बास्केटबॉल। स्थानीय प्रायोजकों और पूर्व खिलाड़ियों के सहयोग से प्रोत्साहन और मार्गदर्शन प्रदान किया जाए। खेल उपकरण निर्माण और मरम्मत में युवाओं को प्रशिक्षित किया जाए।
- 2025 से छह माह के कोर्स और वार्षिक “स्पोर्ट्स बाज़ार” आयोजन से स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा। ब्लॉक स्तर पर पंचायती प्रतिनिधियों, शिक्षकों और खिलाड़ियों की समितियाँ बनाई जाएं, जो तिमाही रिपोर्ट्स राष्ट्रीय डैशबोर्ड पर प्रस्तुत करें। 2026 से “खेलो भारत रिव्यू” आयोजन पारदर्शिता बढ़ा सकता है।
2047 की ओर एक रास्ता
खेलो भारत नीति - 2025 एक दूरदर्शी दस्तावेज है जो भारत की खेल प्रतिष्ठा और सामाजिक संरचना को सुदृढ़ करने की क्षमता रखती है। इसकी बहु-स्तरीय दृष्टि में उत्कृष्टता, आर्थिक उन्नति, समावेशन, जनसहभागिता और शिक्षा का समावेश है, जो 2036 ओलंपिक की दावेदारी को भी मजबूत करता है।
इसकी सफलता जमीनी क्रियान्वयन, बेहतर शासन और टिकाऊ भागीदारी पर निर्भर करती है। यदि सुझाए गए उपायों को लागू किया जाए, तो भारत 2047 तक एक वैश्विक खेल नेतृत्वकर्ता बन सकता है।
(लेखक युवा एवम् खेल मंत्रालय और संसदीय समिति सदस्य हैं)
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