नहीं रहे गांधीजी के साथ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले केयूर भूषण, अधूरी रह गई ये ख्वाहिश
आजादी की लड़ाई में महात्मा गाधी को सहयोग देने वाले केयूर भूषण का 92 वर्ष में निधन हो गया। उन्होंने कई रोचक उपन्यासों की रचना की है।
रायपुर (सौरभ मिश्रा)। वर्ष 1942 में महात्मा गांधी के साथ छत्तीसगढ़ में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले 92 वर्षीय केयूर भूषण अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में चार अमूल्य रचनाएं दे गए हैं। तीन मई, 2018 को उनका देहावसान हो गया। उनकी इच्छा थी कि उपन्यासों का विमोचन खुद करें, मगर अब यह संभव नहीं होगा।
छत्तीसगढ़ी बोली में लिखी किताब
केयूर ने चार उपन्यास कुल के 'मरजाद', 'कहां विलागे मोर धान के कटोरा', 'लोक लाज', 'समे के बलिहारी'छत्तीसगढ़ी बोलचाल की भाषा में लिखे हैं। पिछले महीने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मैं अपनी किताबों का जल्द से जल्द लोगों के सामने लाउंगा, लेकिन उनकी तबियत ने उनका साथ नहीं दिया और अब वे हमारे बीच नहीं रहे।
प्रूफ रीडिंग का काम रह गया था अधूरा
केयूर भूषण द्वारा लिखित उपन्यासों की टायपिंग की जा चुकी है। अब उन्हें प्रूफ रीडिंग के लिए रखा गया है। उनके बेटे प्रभात मिश्रा ने बताया कि लगभग एक महीने पहले की बात है, टायपिंग के बाद उन्होंने उपन्यासों को प्रूफ रीडिंग के लिए अपने पास मंगवाया था। ज्यादातर वो अपनी पुस्तकों की प्रूफ रीडिंग खुद किया करते थे, लेकिन इस बार तबियत ने उनका साथ नहीं दिया और उनका यह काम अधूरा रह गया। इसे जल्द से जल्द पूरा किया जाएगा।
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग देगा प्रकाशन अनुदान
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ने उनकी किताब के प्रकाशन के लिए अनुदान देने का आश्वासन दिया था। पुस्तकों की टायपिंग हो चुकी है अब आगे के कार्य के लिए छत्तीसगढ़ राज्य भाषा आयोग तक बात पहुंचा दी गई है। जैसे ही वहां से कोई निर्णय आता है, किताबों के कार्य को आगे बढ़ाया जाएगा।
कुल के मरजाद
इसमें भूषण साहब ने राजघरानों के लोगों के दर्द को बयां किया है। इस उपन्यास के माध्यम से उन्होंने यह बताने की कोशिश कि है कि कई बार राजघराने के इंसान को अपने बड़े नाम के कारण भी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इससे वो अपने कुल की मरजाद और सम्मान के लिए तकलीफों का शिकार होते रहते हंै।
कहां विलागे मोर धान के कटोरा
इस उपन्यास में उन्होंने मातृभूमि की पीड़ा और धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के दर्द की दस्ता बयां की है। छत्तीसगढ़ के राज्य बनने से पहले यहां के किसानों के खेत और खेती की स्थिति, राज्य बनने के बाद खेत और खेती की स्थिति के बारे में लिखा है। साथ ही पहले के किसान और अब के किसानों के जीवन के बारे में बताया है।
लोक लाज
लोक लाज उपन्यास में भूषण साहब ने समाज के बनाए गए नियम-कानूनों पर कटाक्ष किए हैं। किताब के माध्यम से वे लोगों की सोच पर प्रहार करते हैं। सामाजिक संस्कृति की वजह से बिगड़ते हालात और उनके दुष्परिणामों के बारे में इस किताब में बताया गया है। साथ ही बच्चे की सोच को बड़ों के द्वारा दबा देने जैसी समस्याओं के बारे में भी लिखा है। दिल की बात को लज्जा के नाम पर दिल में ही दफनाने वाली स्थिति इस किताब में व्यक्त की गई है।
समे के बलिहारी
जातिगत व्यवस्था को आधार बनाकर लिखे गए इस उपन्यास में भूषण ने हर एक इंसान को समान बताने का प्रयास किया है। साथ ही जाति की वजह से प्रेम प्रसंगों की समाप्ति की दशा को भी दर्शाया गया है। समय के अनुसार लोगों की बदलती सोच के बार में इस उपन्यास में लिखा है। इसके अलावा समय किस तरह किसी चीज पर भारी पड़ता है और उसका प्रभाव कितना प्रबल होता है, इन सारी बातों का जिक्र इस उपन्यास में है।