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    गर्भपात को लेकर केरल हाई कोर्ट का अहम फैसला, पति से अलग हुई पत्नी को एबोर्शन के लिए अनुमति की जरूरत नहीं

    By AgencyEdited By: Amit Singh
    Updated: Wed, 28 Sep 2022 04:30 AM (IST)

    अदालत ने कहा कि अगर गर्भवती महिला को कानूनी तौर पर तलाक नहीं दिया गया है या वह विधवा नहीं हुई है तो भी उसके पति के साथ बदले हुए समीकरण साथ रहने की अनिच्छा प्रदर्शित करना भी उसके वैवाहिक जीवन में परिवर्तन माना जाएगा।

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    अलग हुई पत्नी को गर्भपात के लिए पति की सहमति जरूरी नहीं

    कोच्चि, आइएएनएस: केरल हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम आदेश दिया। कोर्ट ने पति से अलग रह रही महिला को अपने 21 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति दे दी। जस्टिस वीजी अरुण ने कहा कि गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट (एमटीपी एक्ट) के तहत पति की सहमति जरूरी नहीं है। एमटीपी अधिनियम के नियमों के अनुसार, 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को खत्म करने की अनुति दी जाती है अगर गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन (पति की मृत्यु या तलाक) होता है।

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    अदालत ने इस बात को भी इंगित किया कि अगर गर्भवती महिला को कानूनी तौर पर तलाक नहीं दिया गया है या वह विधवा नहीं हुई है, तो भी उसके पति के साथ बदले हुए समीकरण, उसके विरुद्ध आपराधिक शिकायत और पति की उसके साथ रहने की अनिच्छा प्रदर्शित करना भी उसके वैवाहिक जीवन में परिवर्तन माना जाएगा। अदालत ने कहा कि अधिनियम में गर्भपात कराने के लिए महिला को अपने पति की सहमति की जरूरत नहीं है।

    महिला ने किया था प्रेम विवाह

    याचिकाकर्ता जब स्नातक कर रही थी तब उसने बस कंडक्टर के साथ अपने परिवार की मर्जी के विरुद्ध शादी कर ली थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि शादी के बाद पति और उसकी मां ने दहेज की मांग की और उसके साथ खराब व्यवहार किया।

    पति ने पितृत्व पर उठाए सवाल

    महिला ने यह भी आरोप लगाया कि उसके पति ने अजन्मे बच्चे के पितृत्व पर सवाल उठाया और आर्थिक या भावनात्मक मदद करने से इन्कार कर दिया था। जब वह गर्भपात कराने के लिए स्थानीय क्लीनिक में गई, डाक्टरों ने उसे मना कर दिया क्योंकि उसके पास पति से अलग होने/तलाक को साबित करने के लिए कोई कानूनी दस्तावेज नहीं था। इसके बाद उसने अपने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। जब वह फिर क्लीनिक गई तो भी डाक्टरों ने एक बार फिर उसका अनुरोध मानने से इन्कार कर दिया। इस पर उसे अदालत का दरवाजा खटखटाने को मजबूर होना पड़ा। अदालत ने उसे गर्भपात की अनुमति देते हुए कहा कि निर्विवाद रूप से गर्भावस्था के दौरान याचिकाकर्ता का वैवाहिक जीवन पूरी तरह बदल गया है।