अनुशासन लागू करने के लिए छात्रों को छड़ी से मारना अपराध नहीं, केरल हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी
केरल हाई कोर्ट ने कक्षा में झगड़ रहे छात्रों को छड़ी से मारने के मामले में शिक्षक के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी। अदालत ने कहा कि शिक्षक का इरादा अनुशासन लागू करना था, चोट पहुंचाना नहीं। अभिभावक बच्चे को सौंपते समय शिक्षक को अधिकार देते हैं। अदालत ने माना कि शिक्षक का आचरण अपराध नहीं है, क्योंकि उनका उद्देश्य छात्रों को सुधारना था।

अनुशासन लागू करने के लिए छात्रों को छड़ी से मारना अपराध नहीं: केरल हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केरल हाई कोर्ट ने कक्षा में आपस में झगड़ रहे तीन छात्रों को छड़ी मारने के मामले में एक स्कूल शिक्षक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि शिक्षक का इरादा छात्रों को चोट पहुंचाने का नहीं बल्कि केवल अनुशासन लागू करने का था।
अदालत ने कहा कि स्कूल के शिक्षक को अनुशासन लागू करने तथा छात्र को सुधारने का अधिकार है। जब कोई अभिभावक अपने बच्चे को शिक्षक को सौंपता है, तो वह अपनी ओर से शिक्षक को छात्र पर ऐसा अधिकार देने की सहमति देता है।
केरल हाई कोर्ट का अहम फैसला
जस्टिस सी. प्रतीप कुमार ने कहा कि पांचवीं कक्षा के छात्रों के बयान के अनुसार, वे कक्षा में छड़ी लेकर एक-दूसरे से लड़ रहे थे और उसी समय गणित के शिक्षक ने अनुशासन लागू करने के लिए हस्तक्षेप किया। यह 'दुर्भाग्यपूर्ण' है कि माता-पिता शिक्षक के 'अच्छे इरादे' को नहीं समझ पाए और इसी वजह से यह अनुचित मुकदमा चलाया गया।
अदालत ने कहा कि शिक्षक ने छात्रों के केवल पैरों पर ही छड़ी से मारा था। उनमें से किसी को भी किसी प्रकार के उपचार की आवश्यकता नहीं पड़ी। अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि घटना 16 सितंबर, 2019 की सुबह हुई थी, लेकिन पुलिस को इसकी सूचना 20 सितंबर, 2019 की शाम लगभग 8.30 बजे दी गई। इस देरी का कोई कारण नहीं बताया गया। याचिकाकर्ता (शिक्षक) ने छात्रों को छड़ी मारते समय केवल न्यूनतम बल का प्रयोग किया।
अनुशासन के लिए छड़ी मारना अपराध नहीं
अदालत ने अपने 16 अक्टूबर के आदेश में कहा, चूंकि याचिकाकर्ता ने केवल न्यूनतम शारीरिक दंड का प्रयोग किया था, वह भी केवल कक्षा में अनुशासन लागू करने के लिए, इसलिए स्पष्ट है कि कक्षा में अनुशासन लागू करने के लिए आवश्यक सीमा से अधिक छात्रों को चोट पहुंचाने का उसका कोई इरादा नहीं था। शिक्षक का यह कदम केवल छात्रों को 'सुधारने' और 'उन्हें अच्छे नागरिक बनाने' के लिए था।
अदालत ने हाई कोर्ट के विभिन्न पूर्व आदेशों का भी हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि जब छात्र की भलाई और अनुशासन बनाए रखने के लिए शारीरिक दंड देने में शिक्षक की ओर से कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा न हो तो यह कहना संभव नहीं है कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत कोई अपराध बनता है।शिक्षक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 324 (खतरनाक हथियारों से जानबूझकर चोट पहुंचाना) और किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 (बच्चों के प्रति क्रूरता) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
शिक्षक का इरादा सुधारना था: कोर्ट
अदालत ने कहा, जब कोई छात्र स्कूल के नियमों के अनुसार उचित व्यवहार या कार्य नहीं करता है, और यदि शिक्षक उसके चरित्र और आचरण में सुधार के लिए उसे शारीरिक दंड देता है, तो अदालत को यह पता लगाना होगा कि शिक्षक का उक्त कार्य सद्भावनापूर्ण था या नहीं। वर्तमान मामले में शिक्षक का आचरण किसी भी अपराध के अंतर्गत नहीं आता है।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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