ट्रेनों को कवच-4.0 से लैस कर रहा रेलवे, सबसे व्यस्त रूट पर पूरा हो गया काम; कितना आएगा खर्च?
रेलवे व्यस्त मार्गों पर आधुनिक सुरक्षा प्रणाली 'कवच-4.0' को तेजी से लागू कर रहा है। दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा रूट पर 738 किलोमीटर में यह काम पूरा ...और पढ़ें

ट्रेनों को कवच-4.0 से लैस कर रहा रेलवे
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। रेल यात्रियों के लिए राहत और भरोसा बढ़ाने वाली खबर आई है। जिन व्यस्त मार्गों पर हर दिन लाखों लोग सफर करते हैं, उनपर अब अत्याधुनिक सुरक्षा ढाल 'कवच-4.0' तेजी से लागू की जा रही है।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शुक्रवार को राज्यसभा में बताया कि यह वही सुरक्षा प्रणाली है, जिसे दुनिया ने दशकों पहले अपना लिया था, मगर भारत में इस पर काम विलंब से शुरू हुआ। अब पिछले कुछ वर्षों में इसे मिशन मोड में आगे बढ़ाया जा रहा है और नतीजे भी उम्मीद से बेहतर मिल रहे हैं।
दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-हावड़ा रूट सुरक्षित
देश के दो बड़े रेल मार्ग दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा पर 738 रूट किलोमीटर में कवच-4.0 का काम पूरा कर लिया गया है। दिल्ली-मुंबई के पलवल-मथुरा-नगदा सेक्शन के 633 किलोमीटर और दिल्ली-हावड़ा रूट के हावड़ा-बर्दवान सेक्शन के 105 किलोमीटर अब कवच से सुरक्षित हो चुके हैं।
इन मार्गों पर भारी यातायात, तेज गति की ट्रेनों और लगातार बढ़ते संचालन के बीच यह सुरक्षा प्रणाली बड़ी ढाल का काम करती है।कवच ट्रेन की सुरक्षा के लिए बनाई गई अत्याधुनिक स्वचालित प्रणाली (आटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम) है। यह लोको पायलट की चूक होने पर खुद ब्रेक लगा देती है।
कवच-4.0 के जरिये व्यस्त मार्गों पर सुरक्षा
सिग्नल की गलत व्याख्या को रोकती है और कोहरे या खराब मौसम में भी ट्रेनों को सुरक्षित दूरी पर रखती है। यानी यात्रियों की जान की सुरक्षा अब सिर्फ मानव सतर्कता पर निर्भर नहीं रहेगी, बल्कि तकनीक भी बराबरी से पहरा देगी। कवच-4.0 को रेलवे सुरक्षा का सबसे ऊंचा मानक माना जाता है। इसके लिए लंबी फील्ड ट्रायल प्रक्रिया अपनाई गई थी।
वर्ष 2016 में हुए परीक्षणों के बाद इसे 2020 में राष्ट्रीय स्तर की प्रणाली घोषित किया गया और 2024 में इसका उन्नत वर्जन 4.0 स्वीकृत हुआ। यह संस्करण पहले की तुलना में अधिक उन्नत है।
रेलवे ने अब तक 15,500 किलोमीटर से ज्यादा रूट पर ट्रैकसाइड इंस्टालेशन शुरू कर दिया है, जो गोल्डन क्वाड्रिलेटरल, गोल्डन डायगोनल और हाई डेंसिटी नेटवर्क के हिस्सों को कवर करता है। स्टेशन यूनिट, ओएफसी लाइन, टेलीकाम टावर और इंजनों पर डिवाइस लगाने का काम तेज गति से चल रहे हैं।
2,354 करोड़ रुपये प्रोजेक्ट पर खर्च
अबतक 40 हजार से अधिक तकनीशियन, इंजीनियर और 30,000 लोको पायलट तथा असिस्टेंट लोको पायलट प्रशिक्षित किए जा चुके हैं। कवच की लागत भी ज्यादा नहीं है। प्रति किलोमीटर लगभग 50 लाख रुपये और प्रति लोकोमोटिव करीब 80 लाख रुपये।
अब तक 2,354 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं और 2025-26 के लिए 1,673 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। साथ ही रेल मंत्री ने बताया कि यह काम 1980 और 1990 के दशक में हो जाना चाहिए था। दुनिया ने तब से ऐसी प्रणालियां अपना ली थीं, लेकिन भारत में इसका विकास और विस्तार 2014 के बाद तेजी से शुरू हुआ।
आज इसका फायदा सीधे यात्रियों को मिल रहा है।कवच का विस्तार न केवल दुर्घटनाओं को रोकने में मदद करेगा, बल्कि ट्रेन संचालन को और सुगम, समयबद्ध और व्यवस्थित बनाएगा। यात्रियों के लिए दोहरी राहत है सुरक्षा भी मजबूत और सफर भी भरोसेमंद।

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