केवल प्राइवेट सेक्टर की महिलाओं के लिए क्यों ऐसा कानून? अनिवार्य मासिक धर्म अवकाश के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचा बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन
बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन ने कर्नाटक हाई कोर्ट में मासिक धर्म अवकाश को अनिवार्य करने के खिलाफ याचिका दायर की है। राज्य सरकार ने महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश अनिवार्य किया था, लेकिन एसोसिएशन ने इस आदेश पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि सरकार ने अपने विभागों में काम करने वाली महिलाओं को ऐसा अवकाश नहीं दिया है।

अनिवार्य मासिक धर्म अवकाश के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचा बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कर्नाटक में मासिक धर्म अवकाश को अनिवार्य किए जाने के खिलाफ बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन (बीएचए) ने कर्नाटक हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
राज्य सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में महिला कर्मचारियों के लिए मासिक अवकाश को अनिवार्य कर दिया है। सरकार ने हाल ही में इस संबंध में आदेश जारी किए थे। एसोसिएशन ने यह कहते हुए इस आदेश पर सवाल उठाया कि राज्य सरकार ने सरकारी विभागों में काम करने वाली महिलाओं को ऐसा अवकाश नहीं दिया है।
महिलाओं के विशेष अवकाश देने के लिए जारी हुआ था आदेश
12 नवंबर, 2025 को श्रम विभाग ने अधिसूचना जारी की थी, जिसमें 1948 के फैक्ट्री अधिनियम, 1961 के कर्नाटक दुकानों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1951 के प्लांटेशन श्रमिक अधिनियम, 1966 के बीड़ी और सिगार श्रमिक अधिनियम और 1961 के मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम के तहत सभी प्रतिष्ठानों को निर्देश दिया था कि वे सभी महिला कर्मचारियों, जिसमें स्थायी, संविदा और आउटसोर्स स्टाफ शामिल हैं, को प्रति माह एक दिन का मासिक अवकाश दें।
बीएचए की याचिका में कहा गया है कि इनमें से कोई भी कानून सरकार को मासिक अवकाश को अनिवार्य करने का अधिकार नहीं देता है। इसने आदेश को ''भेदभावपूर्ण'' भी बताया गया है।

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