'इंटरनेट मीडिया को मानने होंगे भारत के कानून', कर्नाटक हाई कोर्ट ने 'एक्स' को लगा बड़ा झटका
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स की याचिका खारिज कर दी है जिसमें आईटी कानून के तहत सामग्री हटाने के सरकारी आदेश को चुनौती दी गई थी। अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भारतीय बाजार को सिर्फ खेलने की जगह नहीं समझ सकते और उन्हें भारतीय कानूनों का पालन करना होगा।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ''एक्स'' (पूर्व में ट्वीटर) को कर्नाटक हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ''एक्स कार्प'' की वह याचिका खारिज कर दी है जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी कानून (आइटी कानून) के तहत सरकारी अधिकारियों को सामग्री हटाने (टेकडाउन) का आदेश देने के अधिकार को चुनौती दी गई थी।
हाई कोर्ट के इस आदेश से स्पष्ट हो गया है कि इंटरनेट मीडिया और सोशल मीडिया मनमाना नहीं हो सकता उसे भारत के कानून मानने होंगे। अदालत ने फैसले में कहा कि कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भारतीय बाजार को महज प्लेग्राउंड नहीं मान सकता।
उच्च न्यायालय ने एक्स की याचिका खारिज करते हुए कहा कि सोशल मीडिया को रेगुलेट करने की जरूरत है, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में। कर्नाटक हाई कोर्ट का यह आदेश एलन मस्क की कंपनी ''एक्स'' के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि भारत उसके लिए बड़ा बाजार है।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने खारिज की एक्स की याचिका
''एक्स'' ने अपनी याचिका में भारत के सख्त इंटरनेट नियमन को निशाना बनाया था। ''एक्स'' ने केंद्र सरकार के ''सहयोग'' पोर्टल की वैधता को चुनौती दी थी। ''सहयोग पोर्टल'' एक ऑनलाइन प्लेटफार्म है जिसका उपयोग इंटरमिडिएटरीस (बीच के सेवाप्रदाता) को सामग्री हटाने के आदेश जारी करने के लिए किया जाता है। ''एक्स'' भारत में अपना मुकदमा हार गया है जिसमें उसने इंटरनेट मीडिया को रेगुलेट करने के भारतीय नियमों को गलत बताते हुए चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने बुधवार को ''एक्स'' की याचिका खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि ''एक्स कार्प'' अपने बर्थप्लेस यानी संयुक्त राज्य अमेरिका जहां ''एक्स'' पैदा हुआ है, वहां के क्षेत्राधिकार के टेकडाउन कानून के तहत, उल्लंघनों को आपराधिक बनाने वाले आदेशों का पालन करना चुनता है और वही प्लेटफॉर्म इस देश में टेकडाउन निर्देशों का पालन करने से इनकार करता है। यह अस्वीकार्य है।
कानून को हर हाल में स्वीकार करना होगा- कोर्ट
कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी का मौलिक अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 19 पर कहा कि अनुच्छेद 19 अपने वादे में स्पष्ट है लेकिन ये केवल नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों का एक चार्टर है। कोई याचिकाकर्ता जो इस देश का नागरिक नहीं है, इसके तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि हमारे देश के क्षेत्राधिकार में काम करने वाले प्रत्येक प्लेटफॉर्म को हर हाल में ये स्वीकार करना होगा कि स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी जुड़ी होती है और पहुंच का विशेषाधिकार अपने साथ जवाबदेही का गंभीर कर्तव्य लेकर आता है।
कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया जो विचारों का आधुनिक रंगमंच है उसे अराजक स्वतंत्रता की स्थिति में नहीं छोड़ा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के सम्मान की रक्षा और उनके खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए सामग्री का रेगुलेशन (विनियमन) आवश्यक है।
'मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकती विदेश में निगमित कंपनी'
याचिका में एक्स ने कोर्ट से यह घोषित करने की मांग की थी कि आइटी कानून की धारा 79(3) (बी) सामग्री को अवरुद्ध करने का अधिकार नहीं देती। कोर्ट ने एक्स की सारी दलीलें खारिज करते हुए कहा कि एक्स कार्प संयुक्त राज्य अमेरिका में निगमित एक कंपनी है इसलिए उसके पास भारत में रिट याचिका दायर करने का कानूनी आधार नहीं है क्योंकि वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19, और 21 के तहत किसी भी मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकती।
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