सार्वजनिक स्थलों होने वाली गतिविधियों पर रोक नहीं, कर्नाटक हाई कोर्ट ने खारिज की अपील
कर्नाटक हाई कोर्ट ने सार्वजनिक स्थलों पर गतिविधियों पर रोक लगाने की अपील को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक लगाना उचित नहीं है, क्योंकि यह संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का उल्लंघन होगा। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि गतिविधियों का आयोजन करते समय कुछ शर्तों का पालन करना होगा।

कर्नाटक हाई कोर्ट। (फाइल)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कर्नाटक हाई कोर्ट ने गुरुवार को एकल पीठ के अंतरिम आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी। एकल पीठ ने राज्य सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें निजी संगठनों को सरकारी स्वामित्व वाले स्थलों पर कोई भी गतिविधि आयोजित करने से पहले अनुमति लेना अनिवार्य किया गया था।
जस्टिस एसजी पंडित और जस्टिस गीता केबी की खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिया कि वह एकल पीठ से ही इस रोक को हटाने का अनुरोध करे। एकल पीठ ने 28 अक्टूबर को एक अंतरिम आदेश जारी किया था।
सरकारी आदेश के अनुसार, सरकारी आदेश का उल्लंघन करते हुए आयोजित किसी भी कार्यक्रम या जुलूस को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) अधिनियम के प्रविधानों के तहत गैरकानूनी सभा माना जाएगा। हालांकि सरकारी आदेश में आरएसएस का नाम स्पष्ट रूप से नहीं है, लेकिन कहा जा रहा है कि आदेश के प्रविधानों का उद्देश्य संघ की गतिविधियों, जिसमें उसके रूट मार्च भी शामिल हैं, को बाधित करना है।
अगर लोग एक साथ चलना चाहते हैं, तो क्या इसे रोका जा सकता है?- कोर्ट
सुनवाई के दौरान, खंडपीठ ने सवाल किया कि क्या 10 या उससे अधिक व्यक्तियों के जमावड़े को स्वत: ही गैरकानूनी माना जा सकता है। अगर लोग एक साथ चलना चाहते हैं, तो क्या इसे रोका जा सकता है? साथ ही सुझाव दिया कि राज्य सरकार को अपील दायर करने के बजाय एकल पीठ से आदेश स्पष्ट करने का आग्रह करना चाहिए।
सरकार की ओर से महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने कहा कि यह आदेश रैलियों और जुलूसों जैसे आयोजनों के लिए है, न कि अनौपचारिक मेल-मिलाप के लिए। उन्होंने कहा कि सरकार पहले ही विरोध प्रदर्शनों को फ्रीडम पार्क और खेल आयोजनों को कांतीरवा स्टेडियम तक सीमित कर चुकी है। यह आदेश सार्वजनिक संपत्ति और जनहित की रक्षा करता है।
'सरकार की अपील विचारणीय नहीं'
प्रतिवादी संगठनों पुनश्चेतन सेवा संस्थान और वी केयर फाउंडेशन के वकील अशोक हरनहल्ली ने कहा कि सरकार की अपील विचारणीय नहीं है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(बी) का हवाला देते हुए कहा कि शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र होने के अधिकार को केवल सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर ही सीमित किया जा सकता है।
इस नियम के तहत तो क्रिकेट खेलने वाली टीम को भी प्रतिदिन अनुमति लेनी होगी। दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने एकल पीठ के स्थगन के विरुद्ध सरकार की अपील खारिज कर दी। एकल पीठ के समक्ष मुख्य याचिका 17 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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