Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    20 Years of Kargil WAR: भारत की छवि जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्‍थापित हुई

    By Arun Kumar SinghEdited By:
    Updated: Mon, 22 Jul 2019 12:40 AM (IST)

    20 Years of Kargil War पाकिस्‍तान के साथ हुए करगिल युद्ध से भारत की पहचान विश्‍व में एक जिम्मेदार और वजनदार शक्ति के रूप में हुई। ...और पढ़ें

    Hero Image
    20 Years of Kargil WAR: भारत की छवि जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्‍थापित हुई

    नई दिल्‍ली, जेएनएन।  20 Years of Kargil War: पाकिस्‍तान के साथ हुए करगिल युद्ध से भारत की पहचान विश्‍व में एक जिम्मेदार और वजनदार शक्ति के रूप में हुई। इस मौके पर भारत की भूमिका 1971 में बांग्लादेश की आजादी जैसी हो सकती थी, लेकिन इस मौके पर शीत युद्ध का मतलब था कि भारत खलनायक बन सकता था, जिसने पाकिस्तान को तोड़ दिया था, न कि एक ऐसा देश जिसके सैन्य हस्तक्षेप ने पाकिस्तानी सेना के नरसंहार के अत्याचारों को रोक दिया। इसके तुरंत बाद भारत ने 1974 का पहला परमाणु परीक्षण किया था, लेकिन हम खुद को "शांतिपूर्ण" कहने के लिए पर्याप्त शर्मिंदा थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    हालांकि दुनिया ने हमारे खेल को देखा और हम तक गैर सैन्य परमाणु तकनीक की पहुंच से बाहर कर दिया। इस समय भारत एक गरीब देश था, जिसने अपनी विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशी सहायता पर निर्भर था। 1971 और 1974 में हमारे दावों को और कमजोर कर दिया।

    कारगिल युद्ध कई मायनों में असाधारण था। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्‍व में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्‍व में सरकार बनी थी। उन्होंने जल्द ही दो बेहद विवादास्पद कदम उठाए, जिसका सीधा असर कारगिल युद्ध पर पड़ा। 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण की श्रृंखला की थी, जिससे भारत आणविक शक्ति से लैस हुआ था। देश ने परमाणु परीक्षणों का स्वागत किया, जबकि दुनिया दंग रह गई। बाद में पाकिस्तान के परीक्षणों ने पश्चिम को सबसे बुरे संदेह की पुष्टि की कि दक्षिण एशिया खतरनाक रूप से परमाणु युद्ध के सबसे खराब स्थिति में फिसल रहा था। दोनों देशों को कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा।  

    इस पर भारत का रुख यह था कि हमें परमाणु परीक्षण करने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि चीन और पाकिस्‍तान परमाणु और मिसाइल सहयोग ने हमारी सुरक्षा को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया था। वाजपेयी ने जो दूसरा कदम उठाया, वह और भी आश्चर्यजनक था- वह पाकिस्तान तक पहुंच गए। विश्लेषकों ने इसे ऐतिहासिक लाहौर यात्रा का हवाला दिया।

    बहुत कम लोगों को याद है कि वाजपेयी जी ने जिस दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, उस दिन के एकमात्र सार्वजनिक समारोह नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में भारत-पाकिस्तान हॉकी टेस्ट में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे। परीक्षणों के बाद द्विपक्षीय संबंधों में काफी गिरावट आ गई थी। इसके बावजूद संबंधों में सुधार के लिए कोलंबो और न्यूयॉर्क के बैक चैनलों के माध्‍यम से और फरवरी 1999 में लाहौर की अभूतपूर्व यात्रा पर प्रयास किया गया था।

    वाजपेयी का संदेश स्पष्ट था कि भारत पाकिस्तान को प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं देखता है बल्कि यह चाहता है कि पड़ोसी समृद्ध हो। बदले में पाकिस्तान को भारत से खतरा महसूस नहीं करना चाहिए, जो यथास्थिति को बदलना नहीं चाहता है। यह एक स्‍पष्‍ट संदेश था जिसे नवाज शरीफ और पाकिस्तानी राजनीतिक प्रतिष्ठान ने समझा, लेकिन अगर ऐसा हो जाता तो पाकिस्तान की सत्ता संरचना को काफी हद तक बदल जाती। पाकिस्तानी सेना सिर्फ उस देश की सबसे महत्वपूर्ण संस्था नहीं है बल्कि वह भारत, अफगानिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों पर एक वीटो थी। वह परमाणु कार्यक्रम को भी नियंत्रित करती है। खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर पाकिस्तान सेना ने भारत के हिस्से को हड़पने की अनुमति दी।

    पहली नजर में पाकिस्तानी सेना द्वारा सर्दियों के दौरान कारगिल की ऊंचाइयों पर कब्जा करने का प्रयास किया गया। शानदार सामरिक कदम के जरिए भारतीय सेना ने इसे खाली कर दिया तो भारत के लिए एक कूटनीतिक और सैन्य जीत बन गई। यह अटल बिहारी वाजपेयी वाजपेयी की रणनीति और देश की रक्षा के लिए उठाया गया दृढ़ संकल्प था। देश में इसकी आरंभिक प्रतिक्रिया आघात के रूप में थी, यहां तक कि विश्वासघात के रूप में भी।