कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक ने रचा इतिहास, 'हार्ट लैंप' के लिए जीता इंटरनेशनल बुकर प्राइज
कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक को उनकी किताब हार्ट लैंप के लिए बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पहली बार है जब कन्नड़ भाषा में लिखी किसी किताब को बुकर प्राइज मिला है। बानू मुश्ताक ने बुकर प्राइज जीतकर इतिहास रच दिया है। बता दें कि बानू बुकर प्राइज जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बन गई हैं। आइए आगे जानते हैं बानू मुश्ताक के बारे में।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय लेखिका, वकील और एक्टिविस्ट बानू मुश्ताक ने अपनी किताब 'हार्ट लैंप' के लिए इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीता है। बानू मुश्ताक कर्नाटक कीर रहने वाली हैं। बानू मुश्ताक को उनकी कन्नड़ कहानी संग्रह हार्ट लैंप के लिए साल 2025 का प्रतिष्ठित बुकर प्राइज मिला है।
यह पहली बार है, जब कन्नड़ भाषा में लिखी किसी किताब को बुकर प्राइज मिला है। उन्होंने ये किताब जीतकर इतिहास रच दिया। दीपा भष्ठी ने इस किताब का कन्नड़ से अंग्रेजी में अनुवाद किया था।
कब और कहां हुआ पुरस्कार का एलान?
पेशे से वकील और पत्रकार, बानू मुश्ताक ने कहानीकार, कवि, उपन्यासकार और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई है। 20 मई लंदन के टेट मॉडर्न में आयोजित एक समारोह में इस पुरस्कार का एलान किया गया।
12 कहानियों का संग्रह है
बता दें कि 2025 के निर्णायक मंडल की अध्यक्षता करने वाले लेखक मैक्स पोर्टर ने हार्ट लैंप को विजेता के रूप में घोषित किया। पोर्टर ने कहा, कई साल बाद 'हार्ट लैंप' अंग्रेजी पाठकों के लिए कुछ नया है ।यह अनुवाद की हमारी समझ को चुनौती देता है और उसे अच्छा करना में बेहतर करता है। बानू मुश्ताक उनकी 12 शॉर्ट स्टोरीज यानी लघु कहानियों का एक संग्रह है। उन्हें इस किताब को लिखने में लगभग 30 साल लगे।
बानू मुश्ताक ने पुरस्कार जीतने के बाद वहां बैठे लोगों से कहा, वैश्विक दर्शकों के लिए कन्नड़ को और अधिक पेश करने की जरूरत है। दुनिया भर के पाठकों के लिए अधिक से अधिक कन्नड़ साहित्य लाने की आवश्यकता है।
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