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    किशोर क्रांतिवीर: पढ़ें -असम के बरंगावाड़ी गांव में जन्मी सत्याग्रही बलिदानी कनकलता के संघर्ष की कहानी

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 12 Aug 2022 03:39 PM (IST)

    Kanaklata Barua भारत माता की जय गूंज उठी। निष्ठुर पुलिस की उच्छृंखल गोलीवर्षा ने भीड़ को तितर-बितर कर दिया लेकिन साहसी तरुणों ने आगे बढ़कर थाने पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा ही दिया। कनकलता की अंतिम इच्छा पूरी हुई।

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    प्रभात प्रकाशन की पुस्तक ‘क्रांतिकारी किशोर’ से साभार संपादित अंश

    नई दिल्‍ली, जेएनएन। 26 मई, 1926 को असम के बरंगावाड़ी गांव में जन्मी कनकलता प्रतिभाशाली बालिका थीं। पांच वर्ष की आयु में मां का संरक्षण उनसे छिन गया। जब तीसरी कक्षा में पढ़ रही थीं, पिता का साया भी सिर से उठ गया। उन्होंने पढ़ाई छोड़कर अपने छोटे भाई बहनों की देखभाल की। 9 अगस्त, 1942 को देश जैसे करवट लेकर जाग उठा हो। अंग्रेजों भारत छोड़ो के गगनभेदी नारे गूंजने लगे। महात्मा गांधी सहित सभी बड़े नेता जेलों में ठूंस दिए गए। सभी जगह तोड़-फोड़,विध्वंस। पर एक वर्ग अब भी गांधीजी की अहिंसा नीति में विश्वास रखता था। वह सत्याग्रह करते हुए शांतिपूर्वक विरोध की आग में कूद रहा था। उसी में शामिल थीं कनकलता।

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    सितंबर महीने की 20 तारीख को स्थानीय कांग्रेस ने सुबह दस बजे गोपुर (असम) धाने पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का संकल्प किया। पूर्व और पश्चिम की ओर से ध्वज हाथ में लिए कनकलता के नेतृत्व में तरुण-तरुणियों की एक टोली थाने की ओर बढ़ रही थी। बरंगावाड़ी गांव से चलता पांच हजार लोगों का यह एक मील लंबा जुलूस मुक्ति के स्वप्न देखता और अंग्रेजों भारत छोड़ो व भारत माता की जय के नारे लगाता धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था। थाने के बाहर सैकड़ों सिपाही हाथों में बंदूके लिए तैनात थे। उनका रौद्र रूप देख सत्याग्रही टोली में जरा दहशत आती दिखाई दी कि कनकलता ने मुड़कर उन्हें ललकारा-भाइयो-बहनो,मां के दूध को लजाना मत। बढ़ो और भारत माता की बेडिय़ां काट दो। अपना राष्ट्रीय ध्वज फहराओ। विदेशी शासन की गुलामी के प्रतीक यूनियन जैक को उखाड़ फेंको। आज से अच्छा अवसर आपको फिर कभी नहीं मिलेगा।

    नेत्री कनकलता की यह जोशीली तकरीर सुनकर साथी निर्भय हो एक स्वर में चिल्ला उठे - हम अपने प्राणों की बलि देने को तैयार हैं बहन। अपने को अकेली मत समझो। उधर, अत्याचारी शासकों की खैरख्वाह पुलिस के बेरहम हाथ अपनी बंदूकों पर मचल उठे थे। राइफलों ने गोलियां उगलीं और एक गोली उसी पश्चिमी दल की फूल सी तरुण नेत्री की छाती को चीरती हुई निकल गई। कनकलता देश पर बलिदान हो चुकी थीं। भारत माता की जय गूंज उठी। निष्ठुर पुलिस की उच्छृंखल गोलीवर्षा ने भीड़ को तितर-बितर कर दिया, लेकिन साहसी तरुणों ने आगे बढ़कर थाने पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा ही दिया। कनकलता की अंतिम इच्छा पूरी हुई।