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    Justice Yashwant Verma Case: महाभियोग या इस्तीफा? संसद तय करेगी जस्टिस यशवंत वर्मा का भविष्य

    By Agency Edited By: Piyush Kumar
    Updated: Sun, 08 Jun 2025 11:30 PM (IST)

    जस्टिस यशवंत वर्मा को महाभियोग से बचने के लिए इस्तीफा देना होगा। सरकार भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें हटाने के लिए प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। अधिकारियों के अनुसार संसद में अपना पक्ष रखते हुए जस्टिस वर्मा इस्तीफे की घोषणा कर सकते हैं। इस्तीफा देने पर उन्हें पेंशन मिलेगी लेकिन महाभियोग से वंचित किया जा सकता है।

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    महाभियोग से बचने को जस्टिस वर्मा के पास इस्तीफा ही एकमात्र विकल्प।(फोटो सोर्स: जागरण)

    पीटीआई, नई दिल्ली। संसद द्वारा महाभियोग से बचने के लिए जस्टिस यशवंत वर्मा के पास इस्तीफा ही एकमात्र विकल्प है क्योंकि सरकार कथित भ्रष्टाचार के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने पर जोर दे रही है।

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    सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति और उन्हें हटाने की प्रक्रिया से अवगत अधिकारियों ने बताया कि किसी भी सदन में सांसदों के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए जस्टिस वर्मा यह घोषणा कर सकते हैं कि वह पद छोड़ रहे हैं और उनके मौखिक बयान को उनका इस्तीफा माना जाएगा।

    अधिकारियों ने कहा कि अगर वह इस्तीफा देने का फैसला करते हैं तो उन्हें हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज के बराबर पेंशन और अन्य लाभ मिलेंगे। लेकिन, अगर उन्हें संसद द्वारा हटा दिया जाता है तो उन्हें पेंशन और अन्य लाभों से वंचित कर दिया जाएगा। संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार, हाईकोर्ट का जज ''राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित रूप में अपना पद त्याग सकता है।''

    त्यागपत्र के लिए किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती

    जज के त्यागपत्र के लिए किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती। एक साधारण त्यागपत्र ही पर्याप्त है। एक जज पद छोड़ने के लिए एक संभावित तिथि दे सकता है। ऐसे मामलों में जज अपने पद पर अंतिम दिन के रूप में बताई गई तिथि से पहले अपना इस्तीफा वापस ले सकता है। संसद द्वारा हटाया जाना एक अन्य तरीका है जिससे जज अपना पद छोड़ सकते हैं।

    गौरतलब है कि भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए कहा था, जो नकदी बरामदगी विवाद में फंसे हुए हैं। जस्टिस खन्ना की रिपोर्ट तीन जजों की समिति के निष्कर्षों पर आधारित थी, जिसने इस मामले की जांच की थी।

    सूत्रों के अनुसार, जस्टिस खन्ना ने वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। बहरहाल, संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी प्रस्ताव लाया जा सकता है। राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों को प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करना होता है, जबकि लोकसभा में 100 सदस्यों को इसका समर्थन करना होता है।