जस्टिस वर्मा की याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार सुप्रीम कोर्ट, इंटरनल कमेटी की रिपोर्ट रद करने की मांग
इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा जो आवास में नगदी मिलने के आरोपों का सामना कर रहे हैं ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। उन्होंने आंतरिक कमेटी की रिपोर्ट को चुनौती दी है जिसमें उन्हें कदाचार का दोषी पाया गया था। जस्टिस वर्मा ने सीजेआई संजीव खन्ना की सिफारिश को भी रद्द करने की मांग की है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सरकारी आवास में नगदी मिलने के आरोपों का सामना कर रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट जल्दी ही पीठ गठित करेगा। जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर आंतरिक कमेटी की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए रद करने की मांग की है।
आंतरिक कमेटी ने रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को आवास से नगदी मिलने के मामले में कदाचार का दोषी पाया था। कमेटी ने रिपोर्ट में यह भी कहा था कि जस्टिस वर्मा पद पर बने रहने लायक नहीं हैं। इसके अलावा जस्टिस वर्मा ने तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना की आठ मई की संस्तुति को भी रद करने की मांग की है जिसमें सीजेआई ने जस्टिस वर्मा को पद हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की सरकार से सिफारिश की थी।
सीजेआई गवई नहीं होंगे शामिल
बुधवार को जस्टिस वर्मा की ओर से शीर्ष अदालत में याचिका पर शीघ्र सुनवाई की गुहार लगाई गई जिस पर कोर्ट ने जल्दी ही सुनवाई पीठ गठित करने का भरोसा दिया। जो पीठ जस्टिस वर्मा की याचिका पर सुनवाई करेगी उसमें प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई शामिल नहीं होंगे। जस्टिस गवई ने इस बात के संकेत भी बुधवार को दिये। चीफ जस्टिस ने केस की सुनवाई के लिए जल्दी ही पीठ गठित करने का भरोसा देते हुए कहा कि शायद उनका इस मामले पर सुनवाई करना ठीक नहीं होगा क्योंकि वे भी प्रक्रिया में शामिल रहे हैं।
जस्टिस वर्मा की ओर से बुधवार की सुबह वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए और उन्होंने प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस जोयमाल्या बाग्ची की पीठ के समक्ष याचिका का जिक्र करते हुए मामले पर जल्दी सुनवाई का अनुरोध किया। सिब्बल ने कहा कि याचिका में कुछ संवैधानिक मुद्दे उठाए गए हैं उनका अनुरोध है कि मामले पर जल्दी सुनवाई की जाए। सीजेआइ ने अनुरोध स्वीकार करते हुए जल्दी ही सुनवाई पीठ गठित करने का भरोसा दिया।
जांच कमेटी की रिपोर्ट रद करने की मांग
- जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी, सिद्दार्थ लूथरा आदि भी पेश हुए थे। याचिका में जस्टिस वर्मा ने आंतरिक जांच कमेटी की तीन मई 2025 की फाइनल रिपोर्ट रद की जाए साथ ही उस रिपोर्ट के आधार पर की जा रही सारी कार्रवाई भी रद करने की मांग की है। याचिका में तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को जांच रिपोर्ट भेज कर जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश को भी चुनौती दी गई है।
- दाखिल याचिका में जस्टिस वर्मा ने आंतरिक जांच कमेटी की जांच पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कमेटी ने उनके ऊपर लगे आरोपों को गलत साबित करने की जिम्मेदारी यानी बर्डन ऑफ प्रूफ उन्हीं पर डाल दिया। यह भी कहा है कि कमेटी ने उन्हें अपनी सफाई पेश करने का पूरा मौका नहीं दिया कमेटी ने पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम किया है। आंतरिक जांच कमेटी की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे किसी न्यायाधीश के खिलाफ जांच और कार्रवाई के लिए तय संवैधानिक प्रविधानों के खिलाफ बताया है।
- जस्टिस यशवंत वर्मा जब दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश थे तब 14 मार्च की रात 11.35 पर उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई थी और आग बुझाने के दौरान उनके घर के स्टोर रूम से बड़ी मात्रा में जले हुए नोटों की गड्डियां मिली थीं, जिसके बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने नगदी मिलने के मामले की जांच के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने जांच करने के बाद पाया कि जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों में दम है और कदाचार साबित होता है।
संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू
कमेटी का मानना था कि जस्टिस वर्मा पद पर बने रहने लायक नहीं है। उन पर लगे आरोप गंभीर हैं और उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है। जिसके बाद तत्कालीन सीजेआई खन्ना ने जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने को कहा था, लेकिन जब जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से मना कर दिया तो जस्टिस खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को जांच रिपोर्ट भेज कर जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की थी। जस्टिस वर्मा से फिलहाल न्यायिक कामकाज वापस लिया जा चुका है।
उधर दूसरी ओर जस्टिस वर्मा को पद से हटाने के लिए संसद में भी प्रक्रिया शुरू हो गई है और दोनों सदनों में सांसदों ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करके दे दिये हैं। मालूम हो कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सिर्फ संसद में महाभियोग लाकर ही पद से हटाया जा सकता है। संसद में चलने वाली प्रक्रिया अलग होती है और संसद की प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
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