'मध्यस्थता को बढ़ावा देकर मुकदमों के बोझ को किया जाए कम', बैकलॉग से निपटना नए CJI का मुख्य लक्ष्य
जस्टिस सूर्यकांत, हरियाणा के एक छोटे शहर से निकलकर भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश बने। उनकी प्राथमिकता अदालतों में लंबित मामलों को कम करना और मध्यस्थता को बढ़ावा देना है। उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसलों में भाग लिया, जैसे कि राज्य विधेयकों पर राज्यपालों की समय सीमा और राजद्रोह कानून पर रोक। उन्होंने लैंगिक न्याय और 'वन रैंक-वन पेंशन' का समर्थन किया। उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी टिप्पणी की और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के आदेश दिए।
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बैकलॉग से निपटना व मध्यस्थता को बढ़ावा देना है नए CJI का लक्ष्य
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हरियाणा में हिसार जिले के एक मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले देश के 53वें प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने भारतीय न्यायपालिका के शीर्ष पर पहुंचने की यात्रा छोटे शहर के वकील के तौर पर शुरू की थी।
उन्होंने हाल ही में प्रधान न्यायाधीश के तौर पर अपनी दो सबसे बड़ी प्राथमिकताओं के बारे में मीडिया को बताया कि अदालतों में पांच करोड़ से ज्यादा मामलों के बड़े बैकलाग से निपटना और विवाद सुलझाने के वैकल्पिक तरीके के तौर पर ''गेम चेंजर'' के रूप में मध्यस्थता को बढ़ावा देना उनके दो अहम लक्ष्य होंगे।
कई अहम फैसलों का हिस्सा रहे जस्टिस सूर्यकांत
सुप्रीम कोर्ट में वह कई अहम फैसलों का हिस्सा रहे हैं। पिछले दिनों वह अपने पूर्ववर्ती सीजेआइ बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान बेंच का हिस्सा थे, जिसने फैसला सुनाया कि कोर्ट राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों या राष्ट्रपति पर कोई समयसीमा तय नहीं कर सकता।
वह उस पीठ का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक काल के देशद्रोह कानून को स्थगित कर दिया था और निर्देश दिया था कि सरकार के समीक्षा करने तक इसके तहत कोई नई एफआइआर दर्ज न की जाए। उन्होंने एसआइआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख वोटरों की जानकारी देने के लिए भी कहा था।
वन रैंक वन पेंशन को बताया था सही
निचले स्तर पर लोकतंत्र और लैंगिक न्याय पर जोर देने वाले आदेश में उनके नेतृत्व वाली पीठ ने एक महिला सरपंच की पद पर बहाली की थी जिसे गैरकानूनी तरीके से हटा दिया गया था। इस मामले लैंगिक भेदभाव को भी उजागर किया था। उन्हें यह निर्देश देने का श्रेय दिया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन समेत विभिन्न बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं। उन्होंने सेना के लिए 'वन रैंक-वन पेंशन' स्कीम को संवैधानिक रूप से सही बताया था।
वह सेना में महिला अधिकारियों की स्थायी नियुक्ति में बराबरी की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं।पाडकास्टर रणवीर अल्लाहबादिया को चेतावनी देते हुए उनके नेतृत्व वाली पीठ ने कहा था कि बोलने की आजादी समाज के नियमों को तोड़ने का लाइसेंस नहीं है। कई स्टैंडअप कामेडियन की आलोचना करते हुए पीठ ने आनलाइन कंटेंट के नियमन के लिए केंद्र को गाइडलाइंस बनाने का निर्देश दिया था।
यह कहते हुए कि बोलने की आजादी पूर्ण अधिकार नहीं है, जस्टिस सूर्यकांत की अगुआई वाली पीठ ने मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह को कर्नल सोफिया कुरैशी पर निशाना साधने वाली टिप्पणी के लिए फटकार लगाई थी।2023 के फैसले में उन्होंने सीबीआइ को उन 28 मामलों की जांच का आदेश दिया था जिसमें बैंकों व बिल्डरों के बीच साठगांठ उजागर हुई थी और घर खरीदारों के साथ धोखाधड़ी हुई थी।
अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाली पीठ का किया था नेतृत्व
उन्होंने आबकारी घोटाला मामले में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाली पीठ का भी नेतृत्व किया था। उन्होंने कहा था कि सीबीआइ को ''पिंजरे में बंद तोते'' की धारणा खत्म करने के लिए काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में अपनी पदोन्नति के बाद से वह 300 से ज्यादा पीठों का हिस्सा रहे हैं। वह उस सात जजों की पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 1967 के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के फैसले को पलट दिया था, जिससे उसके अल्पसंख्यक दर्जे पर फिर विचार का रास्ता खुल गया था।

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