रिटायरमेंट के बाद नहीं लेंगे कोई पद, आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक सेवा करेंगे- जस्टिस गवई
जस्टिस गवई ने रिटायरमेंट के बाद कोई पद न लेने और आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक सेवा करने का फैसला किया है। वे शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए काम करेंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका लक्ष्य निस्वार्थ भाव से समाज सेवा करना है और वे कोई भी सरकारी या गैर-सरकारी पद स्वीकार नहीं करेंगे।

जस्टिस बीआर गवई। (फाइल)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। रविवार को सेवानिवृत हो रहे प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि कुछ वर्गों का ये सोचना है कि अगर आपने सरकार के खिलाफ फैसला नहीं दिया तो आप स्वतंत्र जज नहीं हैं। ये सही सोच नहीं है। एक जज के बारे में ये सोच ठीक नहीं है। केस इस आधार पर तय नहीं किया जाता कि मुकदमेदार सरकार है या कोई निजी व्यक्ति। निर्णय जज के सामने मौजूद दस्तावेजों के आधार पर होता है, उसमें सरकार जीत भी सकती है हार भी सकती है।
सेवानिवृति से एक दिन पहले अपने निवास पर पत्रकारों से विस्तृत बातचीत में सीजेआइ ने अपने कार्यकाल और काम के प्रति संतोष जताते हुए एक बार फिर दोहराया कि वे सेवानिवृति के बाद कोई पद नहीं लेंगे उन्होंने सेवानिवृति के बाद आदिवासी क्षेत्रों में समाजसेवा करने की बात कही।
सीजेआइ गवई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसमें जनता का भरोसा बनाए रखने के साथ ही कॉलेजियम सिस्टम और जजों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद आदि विषयों पर भी बेबाक राय रखी। हालांकि घर में नगदी मिलने के मामले में महाभियोग प्रक्रिया का सामना कर रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने से संबंधित सवाल पर उन्होंने मामला संसद के लंबित होने की बात कहते हुए जवाब देने से मना कर दिया।
सीजेआइ गवई रविवार 23 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं और 24 नवंबर को जस्टिस सूर्यकांत भारत के प्रधान न्यायाधीश पद की शपथ लेंगे।
जस्टिस गवई ने रविवार को अपने निवास पर पत्रकारों से बातचीत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसमें जनता का भरोसा बनाए रखने के बावत पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि अगर न्यायपालिका में भरोसा कायम रखना है तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता हमेशा बनाए रखी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि ये आलोचना होती है कि जज ही जज की नियुक्ति करते हैं लेकिन मेरा सोचना है कि ये न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने में मददगार है।
कहा कि हम लोग नियुक्ति के वक्त कार्यपालिका की भी राय लेते हैं, आइबी रिपोर्ट पर विचार किया जाता है, न्याय और कानून मंत्रालय की राय देखी जाती है और संतुलित नजरिया अपनाया जाता है। कुछ वर्गों में ये सोच है कि जबतक आपने सरकार के खिलाफ फैसला नहीं दिया आप स्वतंत्र जज नहीं हैं। ये सही सोच नहीं है।
सेवानिवृत के बाद की योजना पर उन्होंने कहा कि दस दिन बाद आराम करने के बाद इस पर सोचेंगे। उन्होंने एक बार फिर कहा कि वह सेवानिवृति के बाद कोई पद ग्रहण नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि समाजसेवा हमारे खून में है। मैं अपने जिले में आदिवासी क्षेत्र में काम करूंगा। कई डाक्टर वहां काम कर रहे हैं उनकी मदद करूंगा।
न्यायपालिका में सुधार की प्राथमिकताओं पर जस्टिस गवई ने कहा कि न्यायपालिका में सभी स्तरों पर लंबित मुकदमों की संख्या समस्या है। सबसे बड़ी प्राथमिकता लंबित मुकदमों का निपटारा है। कहा एआइ का प्रयोग करके और मुकदमों का वर्गीकरण करके उससे निपटा जाना चाहिए। अपने कार्यकाल में किसी महिला जज की नियुक्ति न कर सकने का मलाल जता चुके जस्टिस गवई से जब पूछा गया कि क्या इसका कारण कॉलेजियम में सहमति न बन पाना था तो उन्होंने कहा कि ये तो पहली बात है ही कि कॉलेजियम में सहमति होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि कुछ नामों पर विचार किया था लेकिन सहमति नहीं बनी इसलिए किसी की नियुक्ति नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति का कारण न बताए जाने का निर्णय भी जानबूझकर लिया गया है क्योंकि किसी नाम की सिफारिश न स्वीकार करने का कारण सार्वजनिक होने से उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर प्रभाव पड़ता है।
कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर आलोचना और उसमें सुधार की गुंजाइश पर जस्टिस गवई ने कहा कि कोई भी व्यवस्था फूलप्रूफ नहीं होती लेकिन ये सिस्टम अच्छा है। नियुक्ति में भाई-भतीजावाद पर उन्होंने कहा कि ये धारणा गलत है। मैं ऐसा नहीं मानता। 10 या 20 फीसद ही जजों के रिश्तेदार नियुक्त होते होंगे। उन्होंने कहा कि सिर्फ जज के रिश्तेदार होने के आधार पर तो उनकी मेरिट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन फिर भी अगर किसी जज के रिश्तेदार का नाम आता है तो हम थोड़े कड़े मानदंड अपनाते हैं ताकि मेधावी व्यक्ति की ही नियुक्ति हो।
कॉलेजियम द्वारा भेजी गई संस्तुतियों को सरकार द्वारा न मानने पर उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल में हाई कोर्ट में 107 जजों की नियुक्ति हुई, एक-दो को छोड़कर सभी सिफारिशें सरकार ने स्वीकारीं। एससी एसटी से क्रीमीलेयर बाहर करने की अपनी राय पर उन्होंने कहा कि इससे समानता आएगी और ज्यादा जरूरतमंद लोगों को लाभ होगा।

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