आज ही के दिन मक्का में मची थी भगदड़ और हुआ था भीषण हादसा
हज के लिए हर वर्ष पूरी दुनिया से करीब 20 लाख लोग सऊदी अरब पहुंचते हैं। लेकिन 27 वर्ष पहले आज के ही यहां पर भीषण हादसा हुआ था। ...और पढ़ें

नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। हर वर्ष दुनिया भर से करीब 20 लाख लोग हज की यात्रा करते हैं। इस्लाम में हज की यात्रा करने जैसा पुण्य का काम कोई और नहीं है। इस्लाम को मानने वालों के लिए पांच फर्ज पूरा करने की बात कही गई है जिसमें से हज भी एक है। कहा जाता है कि यदि हैसियत हो तो, जिंदगी में एक बार हज जरूर करना चाहिए। यही वजह है कि भारत समेत पूरी दुनिया से लोग इसका रुख करते हैं और जो नहीं कर पाते हैं उनके लिए यह सबसे बड़ी उदासी का सबब भी बना रह जाता है। यही वजह है कि लगभग पूरे वर्ष यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ दिखाई देती है। इस दौरान यह शहर टैंटों के शहर में तब्दील हो जाता है।
बेहतर इंतजाम के बाद भी हो जाती है चूक
इसके लिए वहां की सरकार की तरफ से हर स्तर पर इंतजाम किए जाते हैं, लेकिन कभी कभी चूक हो जाती है। इसी चूक से कई बार बड़े-बड़े हादसे हाे जाते हैं। ऐसा ही एक हादसा मक्का में 2 जुलाई 1990 को हुआ था। उस वक्त यहां मची भगदड़ के दौरान करीब 1426 लोगों की मौत हो गई थी। यह हादसा पैदल यात्रियों के लिए बनाई गई सुरंग में हुआ था जहां एक-दूसरे से कुचलने और दम घुटने की वजह से इतने लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। हालांकि इसके पीछे अधिकारियों की लापरवाही सबसे बड़ी वजह थी। ऐसा भी नहीं है कि इस तरह का हादसा पहले कभी नहीं हुआ। पिछले कुछ वर्षों में हज पर जाने वाले पैदल यात्रियों के लिए बनाई गई सुरंग में भगदड़ मचने जैसी घटनाएं भी हुई हैं। लेकिन यहां पर होने वाले बड़े हादसों में यह एक था।
कब-कब हुए हादसे
- 1991 में सऊदी अरब से नाइजीरिया जा रहे विमान के हादसे का शिकार होने की वजह से इसमें मौजूद सभी 261 यात्रियों की मौत हो गई थी।
- वर्ष 1997 में मीना में टेंटों में लगी आग के कारण 340 लोगों की मौत हो गई थी और और 1400 से अधिक घायल हो गए थे।
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- वर्ष 1998 में शैतान को पत्थर मारने की रस्म में दौरान हुए हादसे में करीब 110 लोग मारे गए थे और करीब 180 हज यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
- साल 2001 और 2002 में हुए हादसों में 30 से अधिक लोगों की जान मीना में गई थी।
- वर्ष 2003 में एक भगदड़ के दौरान करीब 244 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी।
- वर्ष 2006 में 363 हज यात्री यहां पर हुए हादसे में मारे गए थे।
- सितंबर 2015 में हुई भगदड़ के दौरान यहां पर 2200 से अधिक लोगों की जान।

ये होती है हज की पूरी प्रक्रिया
हज पर जाने वाले श्रद्धालुओं को खास तरह के कपड़े पहनने होते हैं। पुरुष दो टुकड़ों वाला एक बिना सिलाई का सफेद चोगा पहनते हैं। महिलाएं भी इसी तरह का सेफद रंग कपड़ा पहनती हैं। इस दौरान श्रद्धालुओं को आपसी संबंध बनाना, लड़ाई-झगड़ा करना, किसी तरह की खुशबूदार चीजों का इस्तेमाल करना, बाल व नाखून काटने से परहेज करना होता है। दरअसल, हज की शुरुआत उमरा से होती है। जिसमें श्रद्धालु मक्का पहुंचकर काबा का सात बार घड़ी की विपरीत दिशा में चक्कर लगाते हैं, जिसे तवाफ कहते हैं। इसके अलावा हाजी मस्जिद के दो पत्थरों के बीच सात बार चक्कर लगाते हैं जिसे साई कहते हैं।
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शैतान को पत्थर मारने की रस्म
इसके बाद सभी श्रद्धालु यहां से पांच किमी दूर मीना की मुख्य मस्जिद पहुंचते हैं। यहां पर श्रद्धालु जबल उर रहमा नामक पहाड़ी के पास जमा होते हैं। अराफात पहाड़ी के इर्द गिर्द जमा होकर सभी लोग नमाज अता करते हैं। सूरज छिपने के बाद हाजी अराफात और मीना के बीच स्थित मुजदलफा जाते हैं, जहां वे आधी रात तक रहते हैं। यहां पर शैतान को मारने के लिए पत्थर जमा किए जाते हैं। मीना लौटने पर सभी लोग शैतान को पत्थर मारने की रस्म पूरी करते हैं।
कुर्बानी की रस्म अदायगी
पहली बार पत्थर मारने के बाद कुर्बानी की जाती है। जिसको बाद में जरूरतमंद लोगों के बीच बांट दिया जाता है। इसके बाद हाजी अपने बाल कटवाते हैं। यहां के बाद उन्हें अपने सामान्य कपड़े पहनने की इजाजत होती है। हाजी दोबारा मक्का की मुख्य मस्जिद में लौटते हैं और काबा के सात चक्कर लगाते हैं। हाजी दोबारा मीना जाते हैं और अगले दो-तीन दिन तक पत्थर मारने की रस्म अदायगी होती है। एक बार फिर लोग काबा जाते हैं और उसके सात चक्कर लगाते हैं। इसके साथ ही हज पूरा हो जाता है.

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