Move to Jagran APP

राजा,रानी और कहानी: कहां हैं वो रियासतें, इतिहास के पन्नों में दर्ज दिलचस्प गाथा

भारत को आजादी मिलने के साथ ही रियासतें इतिहास हो गईं। लेकिन आज भी राजाओं और रानियों की कहानियों में लोगों की दिलचस्पी बरकार है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sat, 26 Aug 2017 03:57 PM (IST)Updated: Sun, 27 Aug 2017 02:41 PM (IST)
राजा,रानी और कहानी: कहां हैं वो रियासतें, इतिहास के पन्नों में दर्ज दिलचस्प गाथा
राजा,रानी और कहानी: कहां हैं वो रियासतें, इतिहास के पन्नों में दर्ज दिलचस्प गाथा

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । भारत का जिक्र होते ही जेहन में राजाओं, रानियों, बादशाहों और बेगमों की कहानियां तैरने लगती हैं। एक तरफ जहां कुछ राजा अपनी सदाशयता के लिए मशहूर थे, तो वहीं कुछ अपनी क्रूरता के लिए लोगों के बीच दहशत का पर्याय थे। एक तरफ जहां कुछ राजा हीरे, जवाहरातों से जुड़ी गाड़ियों में घूमा करते थे, वहीं कुछ ऐसी भी शख्सियतें थीं जिनके पास एक ग्राम सोना भी नहीं था। देश की आजादी के समय भारत में छोटी-बड़ी कुल 565 रियासतें थीं। सभी रियासतों के मुखिया अपने अंदाज में अपनी रियासत को आगे बढ़ा रहे थे। लेकिन आजादी मिलने के बाद रियासतों के ऊपर संकट उठ खड़ा हुआ। ज्यादातर रियासतें भारतीय संघ का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गईं। लेकिन कुछ ऐसे भी राजा और महाराजा थे जो अपने लिए एक अलग देश का सपना देखा करते थे।

loksabha election banner

 21 से 19 बंदूकों की सलामी

रियासतों के राजा आर्थिक तौर पर भले ही संपन्न या गरीब रहे हों, लेकिन उनका चाल-चलन अंग्रेजियत से भरपूर था। वो ब्रिटिश सरकार के वफादार थे। अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादारी के बदले में वायसराय भी भारतीय राजाओं को सम्मानित किया करते थे। उदाहरण के तौर पर सरकार के प्रति पूरी तरह से वफादार रहने वालों राजाओं को 21 बंदूकों की सलामी दी जाती थी, वहीं सामान्य संबंध रखने वाले शासकों को 19 बंदूकों की सलामी दी जाती थी। बंदूकों की सलामी से भारतीय राजाओं की कद काठी के बारे में जानकारी मिलती थी।

1947 के समय पांच बड़ी रियासतें

1947 में सिर्फ पांच भारतीय राजाओं को 21 बंदूकों की सलामी का रुतबा हासिल था। इनमें द निजाम ऑफ हैदराबाद, बड़ौदा के महाराजा, मैसूर के महाराजा, ग्वालियर के महाराजा और जम्मू-कश्मीर के महाराजा शामिल थे। इसके अलावा भोपाल के नवाब, इंदौर के महाराजा, उदयपुर के महाराजा, त्रावनकोर के राजा और कोल्हापुर के राजा शामिल थे। इन सभी राजाओं की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि ये न केवल अंग्रेजी बोला करते थे, बल्कि अंग्रेजियत का भरपूर प्रदर्शन भी करते थे। उदाहरण के तौर पर हैदराबाद के निजाम अपने सभी टेलीग्राम का समापन रूल ब्रिटैनिया से करते थे। कुछ शासकों के दिलों दिमाग में 1857 के विद्रोह की स्मृतियां शेष थीं। लेकिन समय के साथ वो धूमिल होती गईं। कुछ ऐसे भी राजा थे जो अपनी रानियों से अपेक्षा करते थे कि वो अंग्रेजी चाल ढाल को पूरी तरह अपना लें। कुछ रानियों ने अपने राजाओं की इच्छा का सम्मान किया। लेकिन बहुत सी रानियों ने अपने खसमों को इच्छाओं को दरकिनार कर भारतीय रीति रिवाजों का पालन करती रहीं।

एक जैसे नहीं थे सभी राजा 

भारतीय राजाओं का एक दूसरा पक्ष ये भी था कि एक तरफ वो अंग्रेजियत का झंडा बुलंद करते थे। लेकिन उनमें से ज्यादातर राजा दूरदर्शी भी थे। महाराजाओं ने अपनी रियासतों में स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, नहरें और सड़कें बनवाईं। उदाहरण के तौर पर ग्वालियर के महाराजा ने आगरा से लेकर ग्वालियर (द ग्रेट इंडियन पेनिंसुलर रेलवे का हिस्सा) तक रेल लाइन बिछाने के लिए 1872 में 7.5 मिलियन रुपये का कर्ज लिया था।

जब फूट-फूट कर रोये भारतीय राजा

1947 में देश को जब अंग्रेजों से आजादी मिली तो बहुत से भारतीय राजा ऐसे भी थे जो फूट-फूट कर रोये। वो कहा करते थे कि अंग्रेज उनको बेसहारा करके क्यों जा रहे हैं। स्वतंत्र भारत में अब कौन उनकी बात सुनेगा। ग्वालियर और पटियाला के राजाओं ने भारतीय संघ में शामिल होने की इच्छा जताई। लेकिन बहुत से ऐसे राजा थे जो स्वतंत्र राष्ट्र का सपना देखा करते थे। ये बात अलग है कि सरदार पटेल के कुशल नेतृत्व में ज्यादातर रियासतें थोड़े बहुत संघर्ष के बाद भारतीय संघ में शामिल हो गईं।

हकीकत से दूर थे भारतीय राजा

भारतीय राजा इस हकीकत को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि उनका राजपाट खत्म हो चुका है। इतिहासकारों का कहना है कि कुछ राजाओं ने अंतिम वायसराय लॉर्ड लुई माउंटबेटन से अपना दुखड़ा रोया। कुछ राजाओं ने अपनी नियति समझकर भारत की आजादी को स्वीकार कर लिया। लेकिन बहुत से राजा भूली बिसरी यादों से बाहर निकलना नहीं चाहते थे। ये बात अलग थी कि रियासतों के मुखिया को उनके राजमहल शानो-शौकत से मरहूम नहीं किया गया था। राजाओं को गिरफ्तारी से छूट भी हासिल थी। लेकिन कोई भी राजा उस थपेड़े का सामना करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं था, जब इंदिरा गांधी ने प्रिवी पर्स और टाइटल को खत्म कर दिया। यही नहीं राजाओं की जमीनें छिन गईं।

राजपरिवारों से जुड़े ज्यादातर लोगों को ये लगने लगा कि वो सामान्य व्यक्ति की तरह कैसे रह सकते हैं। लेकिन कुछ लोगों ने वास्तविकता को समझा और अपने चाल-ढाल में बदलाव किया। कुछ लोग राजनीति का हिस्सा बन गए, और अपनी प्रजा के सहयोग से राजनीति में स्थापित हो गए। कुछ राजा जहां स्पोर्ट्स में रुचि लेने लगे, वहीं कुछ राजाओं ने अपने आपको गीत संगीत के विकास के लिए समर्पिक कर दिया। कुछ राजाओं ने अपने महलों के कुछ हिस्सों को होटल में बदल दिया और अपनी आय के रास्ते को सुनिश्चित किया।

जब सब कुछ इतिहास बन गया

समृद्धि, ताकत और रुतबा जिन राजाओं के लिए इतिहास के पन्नों में हकीकत के तौर पर दर्ज थे। उनके वंशज आज सामान्य भारतीयों की तरह बसर कर रहे हैं। बहुत से राजाओं के वंशज आम भारतीयों की तरह नौकरी कर अपनी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन आज भी उन राजाओं के वंशज सामान्य भारतीयों से शादी-विवाह करना पसंद नहीं करते हैं।

राजाओं की कहानियां न केवल रोमांच पैदा करती हैं। बल्कि उनके पूर्वजों की कार्यशैली से ये साफ होता है कि वो लोग आम भारतीय जनमानस से किस हद तक जुड़े हुए थे। राजाओं, बादशाहों और नवाबों के महल और हवेलियां इतिहास से रूबरू कराती हैं। एक-एक कर हम भारतीय राजाओं के शानशौकत या उनकी दयनीय हालात से आप को रूबरू कराएंगे।
 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.