दैनिक जागरण ने 9 साल पहले ही जता दी थी केदारनाथ त्रासदी की आशंका
लक्ष्मी प्रसाद बताते हैं कि वे पिछले साल भी केदारनाथ गए थे। जब उनसे साल 2013 और आज के हालात के बारे में बात की और पूछा कि उस घटना से हमने क्या सीखा है? उनका जवाब था कुछ भी नहीं!
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। केदारनाथ में 16 और 17 जून 2013 को आयी भीषण आपदा ने एकाएक सब कुछ लील लिया। हजारों लोग आज भी लापता हैं और सैंकड़ों की संख्या में लोगों की जानें गईं। पर्यटन उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है और इस त्रासदी ने आर्थिक तौर पर राज्य की कमर तोड़कर रख दी थी। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ऐसी किसी आपदा के बारे में पहले से पूर्वानुमान नहीं था। मौसम विभाग ने भीषण बारिश की चेतावनी जारी की हुई थी। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह कि आपदा से करीब 9 साल पहले जागरण ने एक ऐसी खबर छापी थी, जिसने ऐसी ही किसी आपदा की आशंका जतायी थी।
सोमवार 2 अगस्त 2004 को दैनिक जागरण ने 'अब केदारनाथ भी खतरे में' इस हेडिंग के साथ खबर छापी थी। इस खबर में स्पष्ट कहा गया था कि केदारनाथ के ऊपर स्थित चौराबाड़ी ग्लेशियर बम की तरह फटेगा। देहरादून पेज पर छपी रिपोर्टर लक्ष्मी प्रसाद पंत की बायलाइन खबर में आशंका जतायी गई थी कि अगर केदारनाथ के ठीक पीछे स्थित चौराबाड़ी ग्लेशियर टूटा या खतरनाक झील फटी तो केदारनाथ में भारी तबाही मच जाएगी। 15 जून की शाम 5 बजे से लेकर 16 जून की शाम 5 बजे तक इन 24 घंटों में चौराबाड़ी ग्लेशियर पर 325 मिलीलीटर बारिश हुई। इसके बाद 17 जून को आखिरकार जागरण ने 9 साल पहले जो आशंका जतायी थी, वह सच साबित हुई। चौराबाड़ी झील टूट गई और नीचे केदारनाथ घाटी में तबाही मच गई।
आज से करीब 12 साल पहले जागरण में छपी खबर की कुछ पंक्तियां यहां शब्दश: पढ़ें...
आस्था के सर्वोच्च शिखरों में से एक केदारनाथ धाम पर कभी भी चौराबाड़ी ग्लेशियर बम की तरह फटकर कहर बरपा सकता है। मंदिर के ठीक पीछे स्थित करीब 6 किमी लंबे इस ग्लेशियर के हिमस्खलन लगातार सक्रिय हो रहे हैं। जबकि मौसम के गर्म होने से चौराबाड़ी के इर्द-गिर्द बर्फीली झीलों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है। चूंकि ये झीलें ग्लेशियर के पीठ पर सवार हैं, इसलिए अगर पानी का बोझ बढ़ा तो झीलें फट पड़ेंगी और मौका ताड़कर यमुनोत्री और बदरीनाथ से भीषण तबाही केदारनाथ धाम में कहर मचाने निकल पड़ेगी।
चौराबाड़ी ग्लेशियर का सर्वेक्षण पूरा कर हाल ही में केदारनाथ से लौटे देश के नामचीन हिम विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर अगर गौर करें तो हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक केदारनाथ मंदिर से महज दो किमी दूरी पर स्थित चौराबाड़ी ग्लेशियर के मुरैन पर बर्फीली झीलों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ रही है। जिन झीलों की संख्या 2003 में सिर्फ तीन थी वर्ष 2004 में वह बढ़कर 16 हो गई है। दुखद बात यह है कि मौसम के गर्म होने से पिघल रहे चौराबाड़ी ग्लेशियर के कारण झीलों के आयतन में जबरदस्त बढ़ोतरी हो रही है। आयतन में वृद्धि के चलते झीलों के पानी के भार से इनके फटने की आशंका बढ़ गई है। जानकारों का कहना है कि जब तक ग्लेशियर में इन झीलों को रोकने की क्षमता है या झीलें छोटी हैं तब तक तो ठीक है, लेकिन तापमान बढ़ने से ग्लेशियर में दरारें पड़ीं या एक झील दूसरे से मिल गई तो हालात बेकाबू हो जाएंगे।
आज लक्ष्मी प्रसाद पंत क्या कहते हैं...
Jagran.Com की टीम ने इस समय एक हिन्दी अखबार में एडिटर लक्ष्मी प्रसाद पंत से खास बातचीत की। उन्होंने बताया कि वाडिया इंस्टीट्यूट के डीबी डोभाल उस समय केदारनाथ पर एक गोपनीय रिपोर्ट तैयार कर रहे थे। जब पंत को इस बात की भनक लगी तो वे केदारनाथ जा पहुंचे और डोभाल से बात की। उस घटना को याद करते हुए पंत ने बताया, 'वे चौराबाड़ी ग्लेशियर का अध्ययन कर रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि मंदिर के पीछे का अध्ययन क्यों कर रहे हैं। उन्होंने चौकाने वाली बात बतायी कि चौराबाड़ी झील का पानी लगातार बढ़ रहा है और इसको हम नाप रहे हैं। फिर उन्होंने कहा कि जिस दिन यह झील फटेगी, जैसे बम फटता है वैसा ही कुछ होगा और केदारनाथ को तबाह कर देगी।' बाद में जब यह रिपोर्ट दैनिक जागरण में छपी तो पूरे देश में हंगामा मच गया। सभी लोग इस रिपोर्ट के खिलाफ खड़े हो गए। भारी दबाव में डॉ. डोभाल ने उस रिपोर्ट पर काम करना बंद कर दिया।
2013 से क्या सीखा कुछ नहीं...
लक्ष्मी प्रसाद बताते हैं कि वे पिछले साल भी केदारनाथ गए थे। Jagran.Com ने जब उनसे साल 2013 और आज के हालात के बारे में बात की और पूछा कि उस घटना से हमने क्या सीखा है? उनका जवाब था कुछ भी नहीं! उन्होंने कहा कि जैसे हालात 2013 में थे, वैसे ही हालात आज भी हैं। जहां केवल 20-25 हजार लोगों की क्षमता है वहां से रोज खबरें आती हैं कि रिकॉर्ड संख्या में पर्यटक पहुंचे हैं, जो 50 हजार से ऊपर हैं। उन्होंने आशंका जतायी कि अगर आज फिर ऐसी ही कोई घटना होती है तो तबाही फिर वैसी ही होगी। न तो प्रशासन ने और न ही आम लोगों ने 2013 की त्रासदी से कुछ सीखा है।
दैवीय आपदा नहीं थी वो...
लक्ष्मी प्रसाद साल 2013 की केदार आपदा को दैवीय आपदा की बजाय मानव जन्य आपदा मानते हैं। वह बताते हैं कि 2004 के बाद से केदारनाथ में खूब अतिक्रमण हुआ और वहां से गुजरने वाली मंदाकिनी नदी को निकलने का रास्ता ही नहीं मिलता। नदी के स्वभाविक प्रवाह के अतिक्रमण को रोक दिया और 16-17 जून 2013 में पानी इतना ज्यादा आया कि सब कुछ तबाह हो गया। वे कहते हैं कि जिस अतिक्रमण को प्रशासन को हटाना चाहिए था, उसे प्रकृति ने हटाया। उन्होंने बताया कि केदारनाथ में 20-25 हजार लोग होने चाहिए थे, लेकिन आपदा के समय वहां 80 हजार से 1 लाख लोग मौजूद थे। लक्ष्मी प्रसाद का मानना है कि केदारनाथ आपदा में कम से कम 25 हजार लोगों की मौत हुई है, जबकि सरकारी आंकड़ा इससे काफी कम है। देहरादून स्थित मौसम विभाग ने 14 से 17 जून तक भारी बारिश की आशंका जताते हुए चारधाम यात्रा पर रोक लगाने की सिफारिश की थी, लेकिन इसके बावजूद वहां यात्रियों को जाने दिया गया। अगर मौसम विभाग की हिदायत को माना जाता तो मौतों का आंकड़ा काफी कम होता।
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