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केदारनाथ त्रासदी: जान बचाने की जद्दोजहद ने उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया

केदार घाटी से बचकर गए तमाम लोगों के बारे में कुछ पता नहीं लगा कि आखिर वे भागकर कहां गए?

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 16 Jun 2017 01:54 PM (IST)Updated: Fri, 16 Jun 2017 02:51 PM (IST)
केदारनाथ त्रासदी: जान बचाने की जद्दोजहद ने उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया
केदारनाथ त्रासदी: जान बचाने की जद्दोजहद ने उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। आज चार साल बाद भी केदारनाथ त्रासदी को शायद ही कोई भूल पाया होगा। 16 और 17 जून 2013 को आए जल प्रलय में सैंकड़ों लोगों की मौत हो गई और 4 हजार से ज्यादा लोगों का तो अब तक पता ही नहीं चला। भगवान शिव के पवित्र धाम केदारनाथ में बारिश और बाढ़ ने ऐसा तांडव मचाया कि सब कुछ तहस-नहस हो गया। जिस किसी ने भी उस खौफनाक मंजर को देखा, सहम गया। कई लोगों के तो आंखों के सामने ही पलभर में सब कुछ तबाह हो गया। 

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16 जून की रात मंदाकिनी का पानी जिस तरह से रौद्र रूप ले चुका था, उससे घबराए सैंकड़ों-हजारों लोगों ने अपने अपने होटल के कमरे छोड़ दिए। यह सभी बचने की उम्मीद में ऊपर पहाड़ों की ओर चले गए। जिस तरह का मंजर उन्होंने केदारघाटी में देखा था, उसे देखते हुए जीवन की चाह में उनके इस कदम को गलत नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन जान बचाने की इस जद्दोजहद ने ही हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया।

जो लोग केदारघाटी में रुक गए, उनमें से ज्यादातर लोग मारे गए। इसलिए भी जीवन की चाह में होटल छोड़कर आगे बढ़ने के फैसले को सही ठहराया जा सकता है। जिन लोगों ने केदारघाटी या केदारनाथ मंदिर में ही रुकने का विकल्प चुना, उनमें से ज्यादातर टनों मलबे के नीचे दब गए और कईयों की तो लाश भी नहीं मिल पायी।

जीवन की चाह मौत के करीब ले गई

जिस समय इन सैंकड़ों-हजारों लोगों ने अपने-अपने होटल के कमरे छोड़े उस समय भी वहां मूसलाधार बारिश हो रही थी। पूरे इलाके में जबरदस्त ठंड थी और जीवन की चाह में यह लोग अपना सबकुछ छोड़कर पहाड़ों की ओर भागे। उनके पास खाने को कुछ नहीं था। पूरा इलाका देश के अन्य हिस्सों से कट चुका था। सड़कमार्ग से केदारनाथ तक पहुंचना नामुमकिन था और लगातार खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टर भी उड़ान नहीं भर पा रहे थे।

ऐसे में जो लोग जान बचाने की जद्दोजहद में पहाड़ों की ओर भागे थे और किसी तरह जान बचाने में कामयाब रहे थे, वह भी ज्यादा देर जीवित नहीं बच पाए। जबरदस्त ठंड, भूख और थकावट ने उनकी जान ले ली। बहुत से लोगों के बारे में तो स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने भूख के कारण घास खा ली होगी, जो जहरीली थी और उनकी मौत हो गई।


लाचार प्रशासन मदद को पहुंच ही नहीं पाया

केदार घाटी से बचकर गए तमाम लोगों के बारे में कुछ पता नहीं लगा कि आखिर वे भागकर कहां गए? ऐसे लोगों के बारे में स्थानीय निवासियों का मनना था क‌ि लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊपर पहाड़ों पर चले गए होंगे। उस समय मृतकों की संख्या का सही-सही पता लगाना नामुमकिन काम था। आज चार साल बीत जाने के बाद भी मृतकों की सही संख्या पता नहीं चल पायी है। जिस व्यापक दर्जे की आपदा थी, उसे देखते हुए प्रशासन यह अनुमान ही नहीं लगाा पाया कि कुछ लोग जान बचाने के लिए पहाड़ों की तरफ भी भाग सकते हैं।

कॉम्बिंग ऑपरेशन भी केदारनाथ घाटी के आसपास ही चलाए गए। तबाही के तीन साल बाद साल 2016 में जब केदारनाथ से दूर के इलाकों में अन्य रास्तों पर ट्रैकिंग अभियान चलाया गया, तो वहां दर्जनों की संख्या में नरकंकाल मिले। इसके बाद इस धारणा को बल मिला कि भारी संख्या में लोग पहाड़ों की तरफ जान बचाने के लिए भागे होंगे और ठंड, थकान व भूख ने उन्हें भी नहीं बख्शा। अगर समय पर उन तक राहत पहुंच जाती तो शायद आज वह भी जीवित होते।

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