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केदारनाथ त्रासदी के 4 साल: जल प्रलय से पहले ऐसे 'डरावने' थे हालात

16 जून को भारी बारिश के कारण तमाम ताल भर गए, इसी क्रम में चोराबारी ताल का बांध टूट गया। इससे लाखों गैलन पानी सरस्वती और मंदाकिनी नदी में काल बनकर बहने लगा।

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 16 Jun 2017 11:21 AM (IST)Updated: Fri, 16 Jun 2017 04:19 PM (IST)
केदारनाथ त्रासदी के 4 साल: जल प्रलय से पहले ऐसे 'डरावने' थे हालात
केदारनाथ त्रासदी के 4 साल: जल प्रलय से पहले ऐसे 'डरावने' थे हालात

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। बम भोले... बाबा केदारनाथ की जय... ऐसे ही नारों से केदारघाटी गूंज रही थी। दिनभर की यात्रा के बाद तीर्थयात्री कुछ पलों के लिए सुस्ता रहे थे। पुजारी व अन्य लोग भी आराम कर रहे थे। लेकिन यह रात उन सबके लिए जैसे कयामत की रात बनकर आयी थी। 14 से 17 जून के बीच उत्तराखंड व आसपास के इलाकों में मानसून की बादल जमकर बरस रहे थे। यह बारिश साधारण बारिश से कहीं ज्यादा थी और इन चार दिनों में मानसून के दिनों में होने वाली बारिश के मुकाबले 375 फीसद ज्यादा बादल बरसे। इस बारिश के कारण केदारनाथ घाटी के ऊपर 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चौराबारी ग्लेशियर पर भारी दबाव पड़ा। यहीं से निकलने वाली मंदाकिनी नदी में जलस्तर लगातार बढ़ता चला गया।

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16 जून को भारी बारिश के कारण तमाम ताल भर गए, इसी क्रम में चौराबारी ताल का बांध टूट गया। इससे लाखों गैलन पानी सरस्वती और मंदाकिनी नदी में काल बनकर बहने लगा। जल्द ही बाढ़ ने केदारनाथ मंदिर के आसपास और गोविंदघाट तक में तबाही मचा दी। केदारनाथ से करीब 2 किमी ऊपर करीब 400 मीटर लंबे, 200 मीटर चौड़े और 15-20 मीटर गहरे चौराबारी ताल को गांधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। 5-10 मिनट के अंदर पूरे ताल का पानी यहां से निकला और काल बनकर नीचे केदारघाटी में बसे लोगों और श्रद्धालुओं पर जैसे टूट पड़ा। 


काल बनकर बरस रहे थे बादल

वाडिया इंस्ट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने चौराबारी ग्लेशियर के पास एक ऑब्जरवेटरी बनायी है। उसके अनुसार 15 जून शाम 5 बजे से लेकर 16 जून सुबह 5 बजे तक सिर्फ 12 घंटे में ही चौराबारी ग्लेशियर पर 210 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। इसके बाद 16 जून सुबह 5 बजे से शाम 5 बजे तक अगले 12 घंटे में 115 मिली बारिश और हो गई। इस तरह सिर्फ 24 घंटे में ही यहां 325 मिली बारिश हो चुकी थी। मौसम विभाग ने पहाड़ी इलाकों में भारी बारिश की चेतावनी पहले ही जारी की हुई थी। दक्षिण-पश्चिम मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के यहां टकराने के कारण काले घने बादलों ने हिमालय के ऊपर डेरा डाल दिया था। इससे एक साथ कई बादल फटने की घटनाएं हुईं और बादलों से मौत बरसने लगी।

केदानाथ मंदिर और टाउन मध्य हिमालय के पश्चिमी छोर पर बसा है। यहां घाटी में मंदाकिनी नदी बहती है और रामबाड़ा तक यहां इसका कुल कैचमेंट एरिया 67 स्क्वायर किमी का है। इसमें से भी करीब 23 फीसद इलाके में ग्लेशियर हैं। इस त्रासदी के इतना बड़ा होने के पीछे समूचे कैचमेंट एरिया का यू आकार की घाटी होना है। यहां भर्त खूंटा (6578 मी), केदारनाथ (6940 मी) महालय चोटी (5970 मी) और हनुमान टॉप (5320 मी) जैसी ऊंची-ऊंची चोटियां हैं। 

'U' आकार की घाटी के कारण मची ज्यादा तबाही

लगातार हो रही बारिश के कारण 'U' आकार की इस घाटी में खैरू गंगा जैसी छोटी धाराओं ने भी रौद्र रूप ले लिया। पतली-पतली धाराओं के रूप में बहने वाले इन नालों में पानी के साथ ही हजारों टन मलबा और पत्थर बहकर आने लगे। ऐसी सभी धाराएं जब पहले से ही खतरे के निशान से ऊपर बह रही मंदाकिनी नदी में मिलीं, तो तबाही को रोकना शायद किसी के बस की बात नहीं थी। इस जल प्रलय ने केदारनाथ घाटी में तबाही की वो इबारत लिख दी, जिसे इससे पहले शायद ही कभी सुना गया होगा। इसमें 100 से ज्यादा गांव और 40 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। आपदा के 4 साल बीत जाने के बावजूद 4 हजार से ज्यादा लोग आज तक लापता हैं। पिछले चार साल में साढ़े 6 सौ से ज्यादा नरकंकाल इलाके में जहां-तहां पड़े हुए मिल चुके हैं। 

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