Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    एलजीबीटी, धारा 377 और एक राजकुमार की कहानी, जानें क्या है मामला

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Tue, 09 Jan 2018 11:57 AM (IST)

    एलजीबीटी समर्थकों के लिए सोमवार का दिन राहत भरा रहा। सुप्रीम कोर्ट मे धारा 377 पर विचार करने वाली याचिका को स्वीकार कर लिया।

    एलजीबीटी, धारा 377 और एक राजकुमार की कहानी, जानें क्या है मामला

    नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । समलैंगिकों के संबंध अपराध के दायरे से बाहर किए जाए या नहीं, इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट फिर से विचार करेगी। लेकिन 9 साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकों के संबंध को कानूनी कर दिया था। दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा था कि प्राइवेट स्पेस में एडल्ट के बीच सेक्शुअल एक्ट को अपराध करार देना, संविधान के आर्टिकल 21, 14 और 15 का उल्लंघन है। लेकिन 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट के समलैंगिकों संबंध को कानूनी करार देने के बाद सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई थी। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया था और समलैंगिकों के संबंध को दोबारा अपराध करार दिया। LGBT (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर) के संबंधों को दुनिया के कई देश पहले ही मान्यता दे चुके हैं।  सबसे पहले आप को बताएंगे कि धारा 377 क्या है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्या है धारा-377
    मौजूदा वक्त में भारत में दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक सम्बन्धों को दंडनीय अपराधों की श्रेणी में रखा गया है. अपराध साबित होने पर 10 साल तक की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है।आईपीसी की धारा-377 में कहा गया है कि किसी पुरुष, महिला या जानवर के साथ 'अप्राकृतिक सम्बन्ध' बनाना अपराध है। भारत में यह कानून वर्ष 1861 यानी ब्रिटिश राज के वक़्त से चला आ रहा है।


    एलजीबीटी और एक राजकुमार की कहानी

    आपने राजकुमार मानवेंद्र सिंह गोहिल का नाम सुना होगा। गोहिल गुजरात के राजपीपला के महाराजा के संभावित वारिस बताए जाते हैं। वे लक्ष्य ट्रस्ट का संचालन करते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, गोहिल ने अपने महल की 15 एकड़ जमीन एलजीबीटी लोगों के लिए खोल दिया है। वे यहां आने वाले लोगों के लिए कई बिल्डिंग भी बना रहे हैं।independent.co.uk की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2006 में खुद को गे बताने के बाद उनके परिवार ने गोहिल को बहिष्कृत कर दिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी संस्था के जरिए गे लोगों को सपोर्ट करना शुरू किया। गोहिल की संस्था एलजीबीटी लोगों को एजुकेट भी करती है। इसके साथ ही  एचआईवी और एड्स से बचाव के लिए संस्था लोगों को सलाह देती है।  
    विरोध के पीछे क्या है वजह

    समलैंगिक समाज और जेंडर मुद्दों पर काम करने वालों का कहना है कि ये कानून लोगों के मौलिक अधिकार छीनता है। उनका तर्क है कि किसी को उसके सेक्शुअल ओरिएंटेशन के लिए सज़ा दिया जाना उसके मानवाधिकारों का हनन है। पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था कि किसी का सेक्शुअल ओरिएंटेशन उसका निजी मसला है और इसमें दखल नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और संविधान के तहत दिए गए राइट टु लाइफ ऐंड लिबर्टी (जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार) में निहित है। 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिक सम्बन्धों को गैर-आपराधिक करार दिया था लेकिन बाद में 2013 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जीएस सिंघवी और एसजे मुखोपाध्याय ने इस फैसले को खारिज कर  दिया था।


    सोशल मीडिया पर ट्रेंड करता रहा #LGBT और #377

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा-377 पर दोबारा विचार किए जाने की ख़बर सामने आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर #LGBT और #377 ट्रेंड कर रहा है। सायरा शाह ने ट्वीट करके कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट की शानदार शुरुआत है। वहीं,मेहर कहती हैं, "उम्मीद है कि आखिरकार वो सेक्शन-377 को खत्म कर देंगे। श्वेता मिश्रा ने लिखा कि उम्मीद करती हूं कि नतीजा सकारात्मक होगा।  मेरे हाथ दुआओं में जुड़े हैं।

    कहीं रोक, कहीं सजा-ए- मौत
    भारत में भी कई बार एलजीबीटी समुदाय के लोगों ने कानून में बदलाव की मांग की है। दिल्ली में इसको लेकर कई बार प्रदर्शन हुए हैं। अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में सेम सेक्स मैरिज को कानूनी करार दिया था। इससे पहले यहां पर रोक थी। इससे पहले आयरलैंड एलजीबीटी को मान्यता देने वाला दुनिया का सबसे पहला देश बना था। एक रिपोर्ट के मुताबिक कुल 74 देशों में सेम सेक्स पर बैन है। 13 देश ऐसे हैं जहां सेम सेक्स को लेकर मौत तक की सजा दी जा सकती है। इसमें सुडान, ईरान, सऊदी अरब, यमन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान भी शामिल हैं।
    यह भी पढ़ें: 'पद्मावती' से 'पद्मावत' तक जमकर हुए विवाद, इतंजार खत्म अब फिल्म रिलीज को तैयार