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    71 वर्ष की उम्र में बुलंद हैं हौसले, अपने दम पर पैदा कर रहे सेना के जवान

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Sun, 10 Dec 2017 01:31 PM (IST)

    गोरखपुर जिले के मीठाबेल गांव में हर सुबह छह बजे से लगता है कैप्टन का कैंप। इस ठंड में भी पसीना बहाते नजर आते हैं सैकड़ों युवा।

    71 वर्ष की उम्र में बुलंद हैं हौसले, अपने दम पर पैदा कर रहे सेना के जवान

    नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। गोरखपुर जिले के मीठाबेल गांव में हर सुबह छह बजे से लगता है कैप्टन का कैंप। इस ठंड में भी पसीना बहाते नजर आते हैं सैकड़ों युवा। लंबी कूद हो या ऊंची, डिल हो या फिर 100 मीटर दौड़, लड़कों के साथ लड़कियां भी कदमताल करती नजर आती हैं। बैच बदल जाता है, लेकिन सिलसिला नहीं। पिछले साल से चल रहे कैप्टन के इस कैंप से नि:शुल्क ट्रेनिंग ले चुके करीब 3500 युवाओं का भविष्य संवर गया। कोई सेना तो कोई बीएसएफ को अपनी सेवा दे रहा है। दो दर्जन लड़कियां भी सीआरपीएफ और पुलिस में सेवारत हैं।

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    71 साल के आद्या प्रसाद दुबे 1964 में टेक्नीशियन के रूप में भारतीय सेना में भर्ती हुए। 1992 में बतौर कैप्टन रिटायर हुए। ऐतिहासिक चौरीचौरा से करीब 30 किलोमीटर दूर मीठाबेल के रहने वाले कैप्टन आद्या प्रसाद की तैनाती जबलपुर, गोवा, बारामुला, लेह में रही। रिटायरमेंट के बाद गांव में खेती-बाड़ी संभाली। एक दिन सुबह सैर करने निकले तो गांव के पास बाग में लड़कों को जुआ खेलते देख बहुत दुखी हुए। उसी दिन उन्होंने एक नेट व वॉलीबॉल खरीदी और अगले दिन खाली पड़े मैदान में जुआ खेलने वाले लड़कों को लेकर निकल पड़े। पहले छह फिर आठ और बाद में यह संख्या 20 हो गई।

     

    युवाओं का रुझान बढ़ता देख गांव के इन लड़कों को उन्होंने फिजिकल ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। पहले साल ही मेहनत रंग लाई। कैंप के दो लड़कों ने आसानी से न केवल फिजिकल टेस्ट पास किया बल्कि सेना में भर्ती भी हुए। पिछले दिनों कैप्टन के कैंप में ही एक मुलाकात के दौरान उन्होंने बताया कि गांव के बच्चे गलत दिशा में जा रहे थे। बच्चों के पास अच्छी कद-काठी व डिग्री थी, लेकिन भविष्य के लिए कोई योजना नहीं। लिखित परीक्षा की तैयारी कराने के लिए गोरखपुर में सैकड़ों कोचिंग सेंटर थे, लेकिन फिजिकल की ट्रेनिंग कोई नहीं देता था।


    सेना, पुलिस या अर्धसैनिक बलों की भर्ती में अधिकतर बच्चे फिजिकल नहीं निकाल पाते थे, लिहाजा उनके सपने बिखर जाते थे। कैप्टन बताते हैं कि कैंप में आने वाले अधिकतर बच्चे गरीब परिवार से हैं। गुड़, चना और सूखी रोटी की बदौलत यहां दो घंटे पसीना बहाते हैं और अनुशासन की घुट्टी पीकर सफल होते हैं। कैप्टन का दावा है कि उनके कैंप से करीब साढ़े तीन हजार बच्चों को रोजगार मिला। कैंप से निकलीं सोनी वर्मा सीआरपीएफ व अर्चना जायसवाल सीएसआइएफ में कांस्टेबल हैं, वहीं मीनाक्षी दुबे उप्र पुलिस में हैं। ये लड़कियां बतातीं हैं कि अगर कैप्टन नहीं होते तो इस मुकाम पर वो कभी नहीं पहुंचतीं।

     

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