हम आज भी महिलाओं के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक समाज नहीं बना पाए
बापू ने समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने और बरसों से चली आ रही कुरीतियों को दूर करने की प्रभावी पहल भी की थी। ...और पढ़ें

नई दिल्ली [डॉ. मोनिका शर्मा]। महात्मा गांधी ने हमेशा इस बात को स्वीकार्यता दी कि स्त्री सार्वजनिक विकास का आधार है। बापू का मानना था कि महिला और पुरुष के बीच कोई भेद नहीं समझा जाना चाहिए। वे सिर्फ शारीरिक तौर पर एक-दूसरे से भिन्न हैं। उनका तो यह भी कहना था कि स्त्री इंसानियत गढ़ती है। उसके बिना सभ्य समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। खासकर यदि हमें एक गैर हिंसक समाज का निर्माण करना है तो महिलाओं की क्षमता पर भरोसा करना आवश्यक है, जो कि सच भी है। यूं भी किसी भी सशक्त राष्ट्र के लिए वहां की स्त्रियों का सबल होना जरूरी है। आधी आबादी की यह सबलता देश और समाज को पुख्ता आधार देती है। हालांकि यह दुखद है कि हम आज भी महिलाओं के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक समाज नहीं बना पाए हैं।
महिलाओं और पुरुषों को समान हक
यकीनन यह एक बड़ा सच है, क्योंकि भारतीय संविधान ने महिलाओं और पुरुषों को समान नागरिक हक तो दिया है, लेकिन इन अधिकारों को जीने और अपना स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने के लिए आधी आबादी को कई दूसरे मोर्चो पर भी संघर्ष करना पड़ा है। आज तक महिलाएं अपने वाजिब हक पाने को जूझ रही हैं। समाज में महिलाएं कई तरह के भेदभाव का शिकार हो रही हैं। उनके खिलाफ अपराध के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं। वे बड़ी संख्या में यौन शोषण का शिकार हो रही हैं। विकृत मानसिकता को परिलक्षित करने वाली ये घटनाएं देश के कोने-कोने में हो रही हैं। नतीजतन आज भी हमारे यहां महिलाएं अपने मानवीय हक हासिल करने को संघर्षरत हैं।
सुरक्षा का वातावरण
अनगिनत दुविधाओं और बंधनों से बंधी वे आगे तो बढ़ रही हैं, पर सुरक्षा के वातावरण में जीना उनके हिस्से नहीं आया है। दरअसल बापू ने बरसों पहले ही रूढ़िवादी समाज में महिलाओं की घुटन को महसूस कर लिया था। इसीलिए उन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने और बरसों से चली आ रही कुरीतियों को दूर करने की प्रभावी पहल भी की थी। बापू चाहते थे कि हर स्त्री अपना जीवन संपूर्णता में जिए। वे मानते थे कि देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक उत्थान में महिलाओं की अहम भूमिका है। उन्होंने इस बात की पुरजोर वकालत की कि महिलाओं को सिर्फ चूल्हे-चौके तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए।
असहाय की छवि से बाहर निकालने की कोशिश
उनका मानना था कि लड़के-लड़कियों को साथ पढ़ने और मिलने-जुलने का मौका देना चाहिए। वे लड़कियों को तालों में बंद रखने में विश्वास नहीं करते थे। यही वजह थी कि बापू ने महिलाओं से देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का भी आग्रह किया था। महात्मा गांधी ने हमेशा महिलाओं को असहाय की छवि से न केवल बाहर निकालने की कोशिश की, बल्कि उनमें सामाजिक विषमताओं और विद्रूपताओं से लड़ने की आशावादी सोच को भी जागृत किया। अफसोस की बात है कि अंतरिक्ष से लेकर सेना तक अपनी जगह बना लेने के बावजूद भी स्त्री जीवन से जुड़ी कई समस्याएं आज भी बरकरार हैं।1बापू का मानना था कि महिलाएं भी स्वयं सबल बनें और समाज को सांप्रदायिकता, जातिवाद और छुआछूत जैसी कुरीतियों से निजात पाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।
सामाजिक परिवेश में बदलाव लाने की कोशिश
हालांकि देश की महिलाओं ने अनगिनत बाधाओं से लड़ते हुए व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक परिवेश में बदलाव लाने की कोशिशों का एक लंबा सफर तय भी किया है। हाल ही में मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्त्रियों की उपलब्धियों के ऐसे कई उदाहरण गिनाए जो हर भारतीय का मान बढ़ाने वाले हैं, पर सच यह भी है कि लैंगिक भेदभाव, हिंसा, अपराध के बढ़ते आंकड़ों और सामाजिक कुरीतियों के चलते महिलाओं की जिंदगी आसान नहीं है। ऐसे में कठिनाइयों के इस दौर में बापू के विचार न केवल प्रासंगिक, बल्कि व्यावहारिक भी हैं। बस जरूरत है तो इस बात की कि हम समग्र रूप से इन बुराइयों का प्रतिकार करने की क्षमता विकसित करें। बेटियों के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल बनाएं। यही आधी आबादी के सशक्तीकरण की राह भी है और बापू को सच्ची श्रद्धांजलि भी।

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