शरणार्थी दिवस: एक रिफ्यूजी और सौ सवाल, यहां लम्हों में कटता है हर लम्हा
जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर में हर मिनट करीब 20 लोग घर छोड़कर रिफ्यूजी बनने को मजबूर होते हैं। इस समय 22.5 मिलियन लोग यानी करीब 2 करोड़ 25 लाख लोग रिफ्यूजी की जिंदगी जी रहे हैं।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। शरणार्थी, रिफ्यूजी, मुहाजिर चाहे जिस नाम से पुकार लें। लेकिन ये वे लोग हैं जिन्हें किसी न किसी कारणवश अपना देश, अपना घर, अपना सबकुछ छोड़कर दूसरों के रहम-ओ-करम पर जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। किसी न किसी मजबूरीवश अपनी धरती को छोड़कर भागे हुए ये वो अभागे लोग हैं, जिन्हें कोई भी पूरे दिल से स्वीकार नहीं करता। कुछ साल पहले जेपी दत्ता की एक फिल्म आयी थी 'रिफ्यूजी'। इस फिल्म में दर्शाया गया था कि आखिर रिफ्यूजी की जिन्दगी कैसी होती है, फिल्म में जितनी कठिन इनकी जिंदगी दर्शायी गई थी, असल में उससे कहीं ज्यादा कठिन होती है।
कौन होते हैं रिफ्यूजी?
रिफ्यूजी वे लोग होते हैं जो कभी युद्ध तो कभी उत्पीड़न और कभी आतंकवाद या प्राकृतिक आपदा आदि के कारण अपना सब कुछ पीछे छोड़कर किसी दूसरे देश में शरण लेने को मजबूर होते हैं। ये वे लोग हैं जो अपनी जिंदगी की दुश्वारियों से पार पाने की उम्मीद से अपना घर व देश छोड़कर किसी अन्य देश में शरण मांगने को पहुंचते हैं। दुनियाभर के रिफ्यूजियों के बारे में बात करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस कहते हैं, 'मैं बहुत से ऐसे लोगों से मिला हूं, जिन्होंने बहुत कुछ खोया है। लेकिन उन्होंने कभी अपने बच्चों के लिए अपने सपने और बेहतर दुनिया की उम्मीद नहीं खोई।'
क्यों मनाया जाता है रिफ्यूजी दिवस?
साल 2001 से हर साल 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जा रहा है। इन लोगों के साहस, संकल्प और शक्ति के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए यह दिन मनाया जाता है। असल में यह एक ऐसा दिन भी है, जो हमें याद दिलाता है कि दुनिया में हमारे जैसे ही लाखों-करोड़ों लोग ऐसे भी हैं जो जिंदगी जीने के लिए हरपल जद्दोजहद करते हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने किसी मजबूरीवश अपना घर तो छोड़ दिया है, लेकिन जिस दूसरे घर में हैं वहां के भी अभी तक नहीं हो पाए हैं। असल में रिफ्यूजी के रूप में हमारे सामने वे चेहरे होते हैं, जो दयनीय होते हैं। जिनकी आंखों में सपनों से ज्यादा सवाल होते हैं और जो गुम-सुम रहकर भी दुनिया से पूछ रहे होते हैं कि ये हालात कब बदलेंगे?
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पग-पग पर मौत
सीरिया, इराक, लीबिया, सूडान, अफगानिस्तान जैसे युद्धग्रस्त देशों से लाखों-करोड़ों की संख्या में लोग शरणार्थी बनकर दूसरे देशों में पनाह लिए हुए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर में हर मिनट करीब 20 लोग घर छोड़कर रिफ्यूजी बनने को मजबूर होते हैं। इस समय दुनियाभर में 22.5 मिलियन लोग यानी करीब 2 करोड़ 25 लाख लोग रिफ्यूजी की जिंदगी जी रहे हैं। एक अच्छी जिंदगी की चाह में यह लोग बड़े से बड़े खतरे को भी तिनकाभर मानकर आगे बढ़ते जाते हैं। यह किसी समुद्र की भी परवाह नहीं करते। भूमध्य सागर को पार करके यूरोप में शरण लेने की चाहत में सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। 2 सितंबर 2015 को समुद्र किनारे उल्टे पड़े सीरिया के एक बच्चे 'आयलान कुर्दी' की एक तस्वीर ने दुनिया को झकझोरकर रख दिया था। लेकिन आयलान तो एक उदाहरणभर है। ऐसे हजारों लोगों की जान जा चुकी है, लेकिन एक अच्छी व सुकूनभरी जिंदगी की चाह में पग-पग पर बिछी मौत को नजरअंदाज कर लोग रिफ्यूजी बनने को मजबूर हैं।
रिफ्यूजी संकट का कारण- सरकारों का फेल होना
Jagran.Com ने इस संबंध में विदेश मामलों के जानकार कमर आगा से खास बात की। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान से लेकर मोरक्को तक सरकारें फेल हो रही हैं। इसके बाद इन देशों में अराजकता फैलती चली जा रही है। ऐसे में इन देशों से लाखों-करोडों की संख्या में लोग देश छोड़ रहे हैं। यह शरणार्थी जिन देशों में जाते हैं वहां भी समस्याएं पैदा हो जाती हैं, क्योंकि उनके संसाधन भी सीमित होते हैं। जैसे सीरिया से निकलकर लोग पड़ोसी देश जॉर्डन जा रहे हैं, जॉर्डन में भी मानवाधिकार जैसी चीजें नहीं हैं। वहां पर भी तानाशाही है। वहां वे अपने लोगों को सुविधाएं नहीं दे पा रहे तो फिर शरणार्थियों को क्या देंगे?
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दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा शरणार्थी संकट
दुनियाभर में 2 करोड़ 25 लाख से ज्यादा शरणार्थियों में से 55 फीसद लोग सीरिया, अफगानिस्तान और दक्षिण सूडान के हैं। डराने वाली बात यह है कि इस समय दुनिया का शरणार्थी संकट काफी बड़ा हो गया है और यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा है। तमाम शरणार्थी यूरोप या ऐसे देशों में पहुंचना चाहते हैं, जहां उन्हें सुकून की जिंदगी जीने को मिले। इस बारे में कमर आगा कहते हैं, जो शरणार्थी यूरोप पहुंच जाते हैं, उनकी स्थिति ठीक होती है। इसलिए ज्यादातर लोग यूरोप में शरण लेना चाहते हैं। वहां पहुंचकर इन्हें पैसे और सुविधाएं मिलने लगती हैं। वहां इनके रहने का भी अच्छा इंतजाम कर दिया जाता है। इनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाता है। वहां इन लोगों को छोटी-मोटी नौकरियां भी मिल जाती हैं, खासकर जर्मनी जैसे देशों में। लेकिन ज्यादातर देशों में शरणार्थियों की स्थिति बहुत बुरी होती है।
1951 शरणार्थी सम्मेलन में शरणार्थियों को मिले अधिकार
- कुछ खास मौकों को छोड़कर शरणार्थी को निकाला नहीं जाएगा
- अवैध रूप से देश में आने के लिए शरणार्थी को दंड नहीं दिया जाएगा
- काम का अधिकार
- घर का अधिकार
- शिक्षा का अधिकार
- सामाजिक सहायता का अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता
- अदालतीय अधिकार
- आजादी के लिए आंदोलन का अधिकार
- पहचान पत्र और ट्रैवल डाक्यूमेंट पाने का अधिकार
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