हर बार कयासों को विफल कर रही है मोदी-शाह की आगे बढ़ती जोड़ी
अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी जबसे भारतीय राजनीति के क्षितिज पर पहुंची हैं, सभी कयास विफल साबित हो रहे हैं।
आदर्श तिवारी
सभी प्रकार की अटकलों पर विराम लगाते हुए राजग ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाएं जाने की घोषणा की है। इससे पहले कई नाम चर्चा में रहे किन्तु एक गहन मंथन के बाद भाजपा नेतृत्व ने रामनाथ कोविंद के नाम पर सहमति जताई तथा इसकी सूचना अन्य दलों को भी दी। रामनाथ कोविंद एक ऐसा नाम सामने आया जिसका अंजादा किसी को नहीं था। एक बात तो तय है अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी जबसे भारतीय राजनीति के क्षितिज पर पहुंची हैं, सभी कयास विफल साबित हो रहे हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुमान धरे के धरे रह जा रहे हैं।
इनकी राजनीति की कार्यशैली न केवल चौंकाने वाली है बल्कि इस बात की तरफ भी इशारा करती है कि यह जोड़ी किसी भी फैसलें को लेने से पहले उस फैसले के सभी पहलुओं पर भारी विमर्श और उसके दीर्घकालिक परिणामों को जेहन में रखकर निर्णय लेने में विश्वास रखते हैं। इसमें कोई दोराय नही कि आज समूची भारतीय राजनीति की सबसे सफलतम जोड़ियों में से यह जोड़ी वर्तमान राजनीति की दिशा व दशा तय कर रही है। राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा होते ही पूरा विपक्ष काफी देर तक यह समझने में असमर्थ रहा कि इस फैसला का विरोध कैसे करें। क्योंकि राजग ने देश के सबसे सर्वोच्च पद के लिए दलित समुदाय से आने वाले कोविंद के नाम का चयन किया। उनका जीवन सहज व सरल रहा है।
दलगत राजनीति में सक्रिय रहने के बावजूद रामनाथ कोविंद सबके प्रिय रहे तथा कभी विवादों में नही आए। उनका सार्वजनिक जीवन सहजता और अंतिम व्यक्ति के लिए समर्पित रहा है। उनको जानने वाले यह तक बताते हैं कि सांसद होने के बावजूद वह वर्षो तक किराए के मकान में रहे। पेशे से वकील रह चुके रामनाथ कोविंद को कानून तथा संविधान के साथ राजनीति का भी लंबा अनुभव रहा है। उनकी यह सब विशेषताएं उनको राष्ट्रपति पद के मानकों के लिए उपयुक्त बनाती हैं। एनडीए के साथ बाहरी दलों ने भी इस फैसले का समर्थन किया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो नाम की घोषणा होते ही, राज भवन पहुंचकर उन्हें बधाई दी।
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मायावती भी इस बात को जानती है कि कोविंद उत्तर प्रदेश के निवासी है और दलित समुदाय से आते है। ऐसे मे मायावती इस फैसले का विरोध करने की जहमत नही उठाएंगी। मुलायम यादव भी इस बात को कह चुके हैं कि वह राजग का साथ दे सकते है। टीआरएस, अन्नाद्रमुक और बीजद ने पहले ही समर्थन देने की घोषणा कर दी है। इन सबके बावजूद यह कहना मुश्किल है कि रामनाथ कोविंद के नाम पर आम राय बनेगी? कांग्रेस और वामपंथियों ने इस फैसले को एकतरफा बताते हुए विरोध किया है और 22 जून को होने वाले विपक्षी दलों की बैठक में फैसला लेने की बात कही है।
गौरतलब है कि कांग्रेस और वामदलों ने वर्षो से दलितों के नाम पर राजनीतिक रोटी सेकते आएं है किन्तु जब राजग ने एक दलित तबके से आने वाले व्यक्ति को देश का सर्वोच्च पद का उम्मीदवार बनाया तो इनके दलित प्रेम के दोहरे मापदंडों की पोल खुल गई। बिहार से सटे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह कहना कि वह कोविंद को नहीं जानती, विपक्ष द्वारा नकारात्मक विरोध की मानसिकता को दर्शाता है। देश यह देख रहा है कि किस तरह राष्ट्रपति चुनाव में यह दल सतही राजनीति करने पर आमादा है। दलित राग अलापने तथा आरएसएस और भाजपा को दलित विरोधी बताने वाले विपक्षी दलों पर मोदी व अमित शाह का यह फैसला करारा तमाचा है।
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22 जून को होने विपक्षी की बैठक के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि उनका उम्मीदवार कौन होगा किन्तु सभी प्रकार के राजनीतिक पैतरें चलने के बावजूद भी विपक्षी इस बात को जानता हैं कि उनके खेमे के व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाना टेढ़ी खीर है। भाजपा ने इस निर्णय के साथ देश को यह संदेश देने का काम किया है कि उसके एजेंडे में वषों से उपेक्षित दलित समाज का विशेष महत्व है। यह भी लगभग तय हो चुका है कि कोविंद ही भारत के अगले राष्ट्रपति होंगे। विपक्ष इस बात को जानता है कि सभी दावों के बाद भी वह अपनी पसंद का राष्ट्रपति नही बना सकता है, लेकिन इसी बहाने वह अपनी राजनीतिक शक्ति दिखाने की रस्मअदायगी भर कर सकते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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