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    हम यूं ही नहीं हैं बेस्ट, सभी अभियानों में खरे उतरे हैं भारतीय कमांडो

    By Subodh SarthiEdited By:
    Updated: Mon, 02 Oct 2017 01:25 PM (IST)

    मार्कोस कमांडो विश्व की कठिनतम ट्रेनिंग से होकर गुजरते हैं। इन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार किया जाता है। ...और पढ़ें

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    हम यूं ही नहीं हैं बेस्ट, सभी अभियानों में खरे उतरे हैं भारतीय कमांडो

    नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क) - भारत की पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक को एक साल पूरा हो चुका है। भारतीय सेना ने एक साल पहले आज (29 सितंबर) ही के दिन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में दाखिल होकर आतंकी शिविरों का खात्मा किया था। सर्जिकल स्ट्राइक में भारतीय सेना की स्पेशल फोर्स का अहम योगदान रहा, जिसने रात के अंधेरे में पीओके में दाखिल होकर पलक झपकते ही दुश्मनों के लांच पैड को ध्वस्त कर दिया। भारतीय सैन्य इतिहास में स्पेशल फोर्स के पराक्रम की कहानी का लंबा इतिहास रहा है। हिमालयी क्षेत्र में भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से चुनौतियां मिलती रहती है। इन चुनौतियों से निपटने में भारत की स्पेशल फोर्स का काफी अहम योगदान रहा है। चलिए जानते हैं कौन-कौन सी स्पेशल फोर्स भारत में हैं और वे कैसे काम करती हैं...

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    1. मार्कोस
    गठन वर्ष- 1987
    वर्ष 1985 में इंडियन स्पेशल मरीन फोर्सेज का गठन किया गया था। दो साल बाद इसका नाम बदलकर मरीन कमांडो फ़ोर्स कर दिया गया। मार्कोस (मरीन कमांडो) एक स्पेशल फोर्स यूनिट है, जो भारतीय वायुसेना के अंतर्गत कार्य करती है। सेना की इस यूनिट का गठन वर्ष 1987 में हुआ था, जिसे किसी संदिग्ध हालात में सीधी कार्रवाई की छूट होती है। मार्कोस का उपयोग समुद्री डाकुओं के खिलाफ ऑपरेशन और आतंक विरोधी कार्रवाईयों में किया जाता है। मार्कोस को हर तरह के आतंकी हमलों से निपटने के लिए तैयार किया जाता है। हालांकि समुद्री ऑपरेशन में ये पूरी तरह पारांगत होते हैं। मार्कोस यूनिट में 1200 कमांडो होते है। यूएस नेवी सील के बाद यह विश्व की दूसरी सबसे घातक स्पेशल फोर्स है, जो पूरे हथियारों के साथ पानी में भी दुश्मन का मुकाबला कर सकती है, ये इंडियन नेवी की स्पेशल फोर्स होती है।

    मार्कोस कमांडो की ट्रेनिंग-
    मार्कोस कमांडो विश्व की कठिनतम ट्रेनिंग से होकर गुजरते हैं। इन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार किया जाता है। मार्कोस कमांडो ट्रेनिंग में पहले तीन दिन फिजिकल फिटनेस और एप्टीट्यूड टेस्ट लिया जाता है। इस परीक्षा को केवल 20 प्रतिशत कैंडिडेट ही पास कर पाते हैं। इनकी बेसिक ट्रेनिंग आईएनएस अभिमन्यु में होती है। पैराजंपिंग की ट्रेनिंग आगरा के पैराट्रूपर ट्रेनिंग स्कूल में होती है। डाइविंग की ट्रेनिंग कोच्ची के नेवी डाइविंग स्कूल में होती है। मार्कोस कमांडो हाथ-पैर बंधे होने पर भी तैर सकते है। नौसेना के सीनियर अफसर की मानें तो परिवार वालों को भी उनके कमांडो होने का पता नहीं होता है।


    2. पैरा कमांडोज
    गठन वर्ष - 1966
    भारतीय पैरा कमांडोज भारतीय सेना की सबसे ज्यादा प्रशिक्षित स्पेशल फोर्स है, जिसका गठन 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान हुआ था। वर्ष 1971 और 1999 कारगिल युद्ध के दौरान इसी पैरा कमांडोज ने पाकिस्तान को धूला चटा दी थी। पैरा कमांडोज भारतीय वायुसेना के पैराशूट रेजीमेंट का हिस्सा होते हैं, जो कि स्पेशल फोर्स के अंतर्गत आते हैं। पैराशूट यूनिट भारतीय वायुसेना की सबसे पुरानी हवाई यूनिट है। पैराशूट यूनिट का कार्य दुश्मन के इलाके में धीरे से लैंड करना और दुश्मन की पहली रक्षा पंक्ति को ध्वस्त करना होता है। भारतीय सेना में मौजूदा वक्त में पैराशूट कमांडोज टाइगर हिल्स जैसे पहाड़ी इलाकों की रक्षा क्षेत्र में बेहतरीन योगदान दे रहे हैं। वर्ष 1971 की भारत-पाक जंग में 700 पैरा कमांडो ने लड़ाई का रुख बदल दिया था। पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के वक्त भी इनका उपयोग किया गया था।

    ट्रेनिंग
    पैरा कमांडोज की आसमान से छलांग लगाने से पहले जमीन पर कड़ी ट्रेनिंग होती है, जोकि 15 दिन की होती है। पैरा कमांडो को आसमान में 5 हजार से लेकर 30 हजार फीट तक की ऊंचाई से छलांग लगाकर दुश्मन का खात्मा करने की ट्रेनिंग मिली होती है। एक पैरा कमांडो के पास दो पैराशूट होते हैं। पहले पैराशूट का वजन 15 किलोग्राम होता है, जबकि दूसरे रिजर्व पैराशूट का वजन 5 किलोग्राम होता है।


    3.घातक फोर्स
    घातक फोर्स भारतीय सेना की स्पेशल कंपनी है जो मैन टू मैन असाल्ट के वक्त बटालियन के आगे चलती है। जनरल बिपिन चंद्र जोशी ने इसे घातक नाम दिया था। ये दुश्मन के तोपखाने पर हमला करने में माहिर होते हैं। इन्हें दुश्मन के साथ आमने-सामने की लड़ाई लड़नी होती है। घातक फोर्स के जवान इतने ताकतवर होते हैं। कि एक एक जवान कई लोगों पर भारी पड़ सकता है। इन्हें आईडब्ल्यूआई तवोर टीएआर-21, एके-47 एसाल्ट राइफल दी जाती हैं।

    ट्रेनिंग
    फोर्स कमांडो को कर्नाटक के बेंग्लुरू में ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के तहत कमांडो को 20 से 60 किमी. बैटल ग्रियर राउंड स्पीड मशीन चलाना सिखाया जाता है। इसके बाद इन्हें हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल भेजा जाता है। फोर्स कमांडो को ब्रिटिश आर्मी के साथ ट्रेनिंग दी जाती है। परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव घातक फोर्स का हिस्सा थे, जिन्होंने कारगिल की टाईगर हिल्स पर पाकिस्तान के खिलाफ अपने सैन्य कौशल का प्रदर्शन किया था।

    गरुड़
    गठन वर्ष - 2004
    गरुड़ कमांडो भारतीय वायुसेना का हिस्सा होते हैं। भारतीय स्पेशल फोर्स की ट्रेनिंग में से यह सबसे कठिन और लंबी होती है, जोकि तीन वर्ष की होती है। यह भारतीय सेना की सबसे युवा स्पेशल फोर्स है। मौजूदा समय में करीब 1080 गरुड़ कमांडो देश की सुरक्षा में तैनात हैं। गरुड़ नाम हिंदू मान्यताओं का हिस्सा है। इसकी जिम्मेदारी देश के वायु सैन्य बेस की सुरक्षा करना होता है। वायु सेना के हमलों के दौरान इनका कार्य घायलों और उन्हें सहायता देना होता है। गरुड़ कमांडो अत्याधिक हथियारों से लैस होते हैं। इस फोर्स को हवाई क्षेत्र में हमला करने, हवाई अतिक्रमण करने, स्पेशल कॉम्बैट और रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए खास तौर पर तैयार किया जाता है। इन्हें यूएन शांतिदूत के रूप में कांगो में तैनात किया गया था।

    ट्रेनिंग
    गरुड़ कमांडो को 72 हफ्तों की ट्रेनिंग दी जाती है, जो कि बेसिक ट्रेनिंग होती है। हालांकि पूरी ट्रेनिंग तीन वर्ष की होती है। प्राथिमक तौर पर इन्हें गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर ट्रेनिंग दी जाती है। यहां से इन्हें नौसेना स्कूल भेजा जाता है और फिर आर्मी के आउंटर इनसर्जेन्सी एंड जंगल वार फेयर स्कूल भेजा जाता है।


    नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी)
    गठन वर्ष-1984
    एनएसजी भारत की सबसे प्रमुख सिक्योरिटी फोर्स है। इसका इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों को रोकने और देश में आंतरिक व्यवधान को संभालने के लिए किया जाता है। इसे आम भाषा में एनएसजी, ब्लैक कैट कमांडो के नाम से जाना जाता है। 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इसकी स्थापना की गई थी। एनएसजी कमांडो गृह मंत्रालय के अंतर्गत आते है। हालांकि केंद्र की सेंट्रल आर्म पुसिल फोर्स के दायर में नहीं आते हैं। एनएसजी का नेतृत्व एनएसजी के डायरेक्टर जनरल करते हैं, जिनकी नियुक्ति गृह मंत्रालय से होती है।

    ट्रेनिंग
    एनएसजी इसके सेलेक्शन प्रक्रिया में काफी ऐतियात बरता जाता है, जिसके चलते इसमें शामिल होने वाले युवाओं का ड्राप आउट रेट 70 से 80 फीसद होता है। एनएसजी के 7500 कमांडो को स्पेशल एक्शन ग्रुप (एसएजी) और स्पेशनल रेंजर्स ग्रुप (एसआरजी) में बांट दी जाती है।


    स्पेशल प्रोटेक्शन फोर्स (एसपीजी)
    गठन वर्ष - 2 जून 1988
    इस स्पेशल फोर्स का गठन 1988 में भारतीय संसद की ओर से किया गया था। इसका मुख्य काम पीएम, पूर्व पीएम और उनके परिवार को सुरक्षा करना होता है। राजीव गांधी की हत्या के बाद इसका गठन किया गया था। यह अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं। इनकी ओर से खुफिया जानकारी हासिल की जाती है और लोगों को सुरक्षा दी जीता है। इनका ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है। राजीव गांधी की हत्या के बाद से किसी अन्य प्रधानमंत्री पर कोई हमला नहीं हो सका है।

    ट्रेनिंग
    एसपीजी को भारतीय पुलिस सर्विस की ओर से ट्रेनिंग दी जाती है। एसपीजी के जवान अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं।


    कोबरा
    गठन वर्ष - 12 सितंबर 2008
    कोबरा दुनिया की बेहतरीन पैरमिलिट्री फोर्स में से एक है। इसका गठन 2008 में हुआ था। इन्हें विशेष गोरिल्ला ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे यह भेष बदलने और घात लगाकर हमला करने में माहिर होते हैं। मौजूदा समय में देश में करीब दस हजार सक्रिय कोबरा सैनिक सेवारत हैं, जिस पर प्रति वर्ष 13 बिलियन का खर्च आता है। राष्ट्रपति समेत दिल्ली की सुरक्षा इन्हीं के जिम्मे होती है, साथ ही इन्हें नक्सलियों से लोहा लेने के लिए भेजा जाता है। कोबरा का पूरा नाम कमांडो बटैलियन फॉर रेज्यूल्यूट एक्शन होता है। इसका निर्माण नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए हुआ था। इन्होंने देश में कई नक्सली समूहों का खात्मा किया। यह देश की सबसे उन्नत पैरामिलिट्री फोर्स है।

    ट्रेनिंग
    कोबरा को जंगल वारफेयर के लिए बेंग्लुरू और कोरापुत में ट्रेनिंग दी जाती है। इनकी ट्रेनिंग एनएसजी कमांडो के समान होती है। प्रत्येक कोबरा कमांडो को पैराशूट रेजीमेंट में हेली जंप की ट्रेनिंग दी जाती है। इन्हें लंबी दूरी चलकर खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की जानकारी होती है। तीन महीनों की ट्रेनिंग के बाद इन्हें नक्सली इलाकों में तैनात किया जाता है।


    स्पेशल फ्रंटियर फोर्स
    गठन वर्ष- 14 नवंबर 1962
    वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान चीनी आक्रमण से लोहा लेने के लिए एक स्पेशल फोर्स का गठन किया गया, जिसका कार्य छिपे हुए दुश्मनों के खिलाफ कार्रवाई करना था। इसका इस्तेमाल उग्रवाद के खिलाफ और स्पेशल ऑपरेशन के दौरान किया जाता है। यह फोर्स भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी (रॉ) के अंतर्गत आती है। यह फोर्स कैबिनेट सेक्रेट्रियेट के डॉयरेक्ट्रेट जनरल के जरिए सीधे प्रधानमंत्री को सूचना देती है। इसका पूरा सेटअप ऐसा होता है कि भारतीय सेना को भी इसके ऑपरेशन की जानकारी नहीं होती है।

    फोर्स वन-
    गठन वर्ष 2010
    फोर्स वन स्पेशल फोर्स का गठन वर्ष 2010 में हुआ। देश को 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के बाद इसकी जरूरत महसूस हुई। इस फोर्स का मुख्य कार्य मुंबई शहर को आतंकी हमलों से सुरक्षित रखना है। यह विश्व में सबसे तेज गति से सैन्य कार्रवाई करने में माहिर होती है। यह फोर्स हमले के 15 मिनट में घटनास्थल पर पहुंचकर स्थित से मुकाबला कर सकती है।