कोशिशें ला रही रंग, दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के रास्ते पर भारत
केंद्र सरकार की तमाम तरह की कवायदों के चलते अगले साल भारत, दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था हो जाएगा। ...और पढ़ें

नई दिल्ली[ आशुतोष त्रिपाठी] । नए साल का आगाज हो चुका है। नए साल की शुरुआत करने का सबसे अच्छा तरीका बीते वर्ष की घटनाओं से सबक लेना है। चूंकि हम सभी का जीवन देश की अर्थव्यवस्था में होने वाली उथल-पुथल से सीधे तौर पर जुड़ा है, इसलिए बीते वर्ष में अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली घटनाओं पर गौर करना लाजिमी है। 2017 की शुरुआत हुई तो हमारी अर्थव्यवस्था नोटबंदी के दौर से गुजर रही थी। भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में यह एक अनुपम घटना थी।
कड़े फैसलों का सकारात्मक असर
विभिन्न विश्लेषकों ने इसे अलग-अलग नजरिये से देखा। कुछ बैंक अधिकारियों की मिलीभगत के चलते लोगों को बैंकों और एटीएम की लाइन में लगकर अपना ही धन पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को लेकर सरकार की अच्छी मंशा को देश की जनता ने सराहा। अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को तात्कालिक चोट भी पहुंची, लेकिन देश जल्द ही इससे उबरने में भी सफल रहा। वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही में 5.7 फीसद के स्तर तक पहुंचने के बाद दूसरी तिमाही में एक बार फिर छलांग लगाते हुए वृद्धि दर 6.3 फीसद तक पहुंच गई।
डिजिटल लेनदेन में भारत बढ़ा आगे
अगस्त में जारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 99 फीसद मुद्रा बैंकों में वापस आ गई और कहा जाने लगा कि यह प्रयास अपने उद्देश्यों को हासिल करने में नाकाम रहा, लेकिन इसे असफल बताने वाले लोग भी इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि नोटबंदी बड़े पैमाने पर अनौपचारिक हो चुकी हमारी अर्थव्यवस्था को औपचारिक ढांचा मुहैया कराने के अपने उद्देश्य में सफल रही। लोगों की तिजोरियों में बंद रकम बैंकों के पास पहुंची जिसके चलते बैंकों ने अपने ब्याज दरों में कटौती की। इसके अलावा डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लक्ष्य को भी नोटबंदी ने काफी हद तक हासिल किया। सितंबर में मूल्य के लिहाज से डिजिटल लेनदेन दूसरे सर्वोच्च मासिक स्तर तक पहुंच गया। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार डिजिटल माध्यम से किया जाने वाला लेनदेन अगस्त में 109.82 लाख करोड़ रुपये के स्तर से 13.5 फीसद बढ़कर 124.69 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
एक कर के जरिए एक बाजार बना भारत
इसके बाद बारी आती है देश के सबसे बड़े कर सुधार का दर्जा हासिल कर चुके जीएसटी की। एक देश, एक कर के उद्देश्य के साथ जीएसटी लागू किया जाना भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक असाधारण घटना थी। लागू होने के साथ ही जीएसटी के क्रियान्वयन को लेकर कई सवाल उठे, लेकिन सरकार ने एक के बाद एक प्रयासों से समाधान की दिशा में कदम बढ़ाया। बीते छह महीनों के दौरान रिटर्न दाखिल करने की तारीख में ढील, करीब 200 चीजों की जीएसटी दरों में कटौती जैसे कदम उठाकर जीएसटी प्रणाली को सुगम बनाने की दिशा में अहम प्रयास किए गए। तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत में जीएसटी को लेकर काफी आशान्वित हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लगार्ड ने जीएसटी को एक साहसिक कदम बताते हुए कहा था कि वह इससे बेहद प्रभावित हैं। वहीं, विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा कि जीएसटी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर बेहद सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
बैंकिंग सेक्टर में हुए सुधार
बीता वर्ष बैंकिंग सुधारों के लिहाज से भी काफी अहम रहा। बैंकों के बढ़ते एनपीए यानी डूबते कर्ज देश की अर्थव्यवस्था के सामने एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं। रिजर्व बैंक ने चूक करने वाले लोगों के नाम सार्वजनिक किए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के बैंकों का एनपीए बीते वर्ष जून तक 9.5 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड उच्च स्तर तक पहुंच गया। सीधे तौर पर अगर कहा जाए तो 2017 को सुधारों के वर्ष की संज्ञा दी जा सकती है और उम्मीद है कि नए वर्ष में हमें इन सुधारों का लाभ मिलता दिखेगा।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)
यह भी पढ़ें: सुधार से ही चमकेगी भारत की तस्वीर, आंकड़े भी कुछ ऐसा ही करते हैं इशारा

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।