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ट्रंप के बयान से कहीं खराब न हो जाएं भारत और अमेरिका के संबंध

पेरिस समझौते पर भारत को आड़े हाथों लेने वाले डोनाल्‍ड ट्रंप के बयानों के बाद दोनों देशों के संबंधों में कुछ तनाव महसूस किया जा रहा है। इसका असर दूरगामी भी हो सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 03 Jun 2017 11:07 AM (IST)Updated: Sun, 04 Jun 2017 11:07 AM (IST)
ट्रंप के बयान से कहीं खराब न हो जाएं भारत और अमेरिका के संबंध
ट्रंप के बयान से कहीं खराब न हो जाएं भारत और अमेरिका के संबंध

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। अमेरिका का पेरिस समझौते से पीछे हटना और इसके लिए भारत पर अंगुली उठाना कई देशों को नागवार गुजर रहा है। इसके लिए फ्रांस समेत कुछ अन्‍य देशों ने अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की आलोचना भी की है। लेकिन यह बात यहीं तक रुकने वाली नहीं है। इसका असर दूर तक होता दिखाई दे रहा है।  अमेरिका के इससे अलग होने के बाद ग्रीन फंड के तहत आने वाली राशि में भी करीब तीन बिलियन की कमी आ जाएगी, जिसके चलते भारत को मिलने वाली रकम भी कम हो जाएगी। माना यह भी जा रहा है कि ट्रंप के दिए बयान के बाद भारत और अमेरिका के रिश्‍तों में जो गरमाहट दिखाई देनी चाहिए थी उसमें अब शायद कुछ कमी जरूर आ जाएगी। अमेरिका में भारत की पूर्व राजदूत मीरा शंकर भी इस बात से इंकार नहीं करती हैं।

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पीएम मोदी का सधा हुआ जवाब

हालांकि ट्रंप के बयान पर अभी तक भारत ने किसी भी तरह की कोई आपत्तिजनक बात नहीं कही है। भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी ने भी रूस यात्रा के दौरान इस विषय को बेहद संजीदगी से सभी के सामने रखा और अपने विचार बिना किसी की आलोचना किए बेहद सहजता से कह डाले। उन्‍होंने कहा कि भारत अपनी आने वाली पीढ़ी को एक साफ सुथरी धरती देने के लिए वचनबद्ध है वह इससे पीछे नहीं हटेगा। लेकिन इन सभी के बावजूद पीएम मोदी की इस वर्ष सितंबर में होने वाली अमेरिकी यात्रा पर कुछ सवाल जरूर खड़े हो गए हैं। इसके अलावा कुछ और ऐसे मुद्दे हैं जिनपर भारत अमेरिका से खफा है।

एच1बी वीजा मामला

पेरिस समझौते पर उठे सवालों के बाद भारत की ओर से अमेरिका से होने वाली बातचीत में एक और मुद्दा जुड़ गया है। इससे पहले भारत ने अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों के भविष्‍य को लेकर चिंता जताई थी। ऐसा इसलिए था क्‍योंकि ट्रंप सरकार के बनने के बाद अमेरिका ने एच1बी वीजा नियमों को कड़ा करने के नाम पर इसके जरिए वहां पर काम कर रहे भारतीयों के भविष्‍य पर ग्रहण लगाने का इंतजाम किया था। यहां पर यह बात भी ध्‍यान रखने वाली है कि एच1बी वीजा का सबसे अधिक इस्‍तेमाल भारतीयों द्वारा ही किया जाता है। इसमें भी ज्‍यादातर आईटी सेक्‍टर के लोग इसका इस्‍तेमाल करते हैं। ऐसे में इस पर लगाई पाबंदी का सीधा असर उनके भविष्‍य पर पड़ता है। 

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भारतीयों पर बढ़ते नस्‍लीय हमले

इसके अलावा भारतीयों पर लगातार होते हमले भी केंद्र सरकार के लिए चिंता का सबब रहे हैं। ट्रंप सरकार के बनने के बाद से ही भारतीयों के खिलाफ हुए अपराध अधिक देखने को मिले हैं। हालांकि अपने चुनाव प्रचार में डोनाल्‍ड ट्रंप बार-बार भारतीयों की प्रशंसा करते हुए दिखाई दिए थे लेकिन अब वहीं ट्रंप अपने कई फैसलों से भारत पर हमलावर होते दिखाई दे रहे हैं।

एनएसजी पर सवाल

पेरिस समझौते से पीछे हटने के बाद एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि कहीं अमेरिका भारत को एनएसजी की सदस्‍यता के मुद्दे पर झटका न दे दे। ऐसा इसलिए भी है क्‍योंकि अभी तक ट्रंप ने उन फैसलों को पलटा है जो ओबामा सरकार द्वारा लिए गए थे। यहां पर यह भी बात ध्‍यान देने वाली है कि ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका ने भारत की एनएसजी में सदस्‍यता का जबरदस्‍त समर्थन किया था। लेकिन अब डोनाल्‍ड ट्रंप के बाद इसको लेकर भी संदेह होना बेहद लाजिमी है। वहीं दूसरी ओर एनएसजी की सदस्‍यता हासिल करना भारत के लिए साख का सवाल बनता जा रहा है। पीएम मोदी की मौजूदा विदेश यात्रा में भी कहीं न कहीं एनएसजी एक मुद्दा रहा था। लेकिन अभी तक चीन इस मुद्दे पर भारत के लिए सबसे बड़ा रोड़ा साबित होता रहा है। ऐसे में पेरिस समझौते से पीछे हटने के बाद ट्रंप के एनएसजी समर्थन को लेकर भी अनिश्चितता का माहौल है।

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पेरिस समझौते पर भारत की खिंचाई

दरअसल, अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से यह कहते हुए हाथ खींच लिए हैं कि इस समझौते में भारत और चीन को लेकर कोई सख्‍ती नहीं दिखाई गई है। अपने बयान में ट्रंप चीन और भारत जैसे देशों को पेरिस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा होने की दलील दी है। उनका कहना है कि यह समझौता अमेरिका के लिए अनुचित है क्योंकि इससे उद्योगों और रोजगार पर बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत को पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने के लिए अरबों डॉलर मिलेंगे और चीन के साथ वह आने वाले कुछ वर्षों में कोयले से संचालित बिजली संयंत्रों को दोगुना कर लेगा और अमेरिका पर वित्तीय बढ़त हासिल कर लेगा।

आ सकती हैं मुश्किलें

इस पूरे मसले पर जागरण डॉटकॉम की स्‍पेशल डेस्‍क से बात करते हुए अमेरिका में भारत की पूर्व राजदूत मीरा शंकर का कहना है कि पेरिस समझौते से पीछे हटने और भारत पर इसका ठीकरा फोड़ने के बाद दोनों देशों के रिश्‍तों में कुछ मुश्किलें जरूर आएंगी। उन्‍होंने यह भी कहा कि पेरिस समझौते को लेकर भारत जितना अधिक से अधिक कर सकता था उसने किया है। इससे आगे जाने की गुंजाइश अब भारत में नहीं है। यदि ऐसा किया भी जाता है तो यह ठीक नहीं होगा क्‍योंकि हमें भी विकास करना है। वहीं अमेरिका चाहता है कि उसपर इसका बोझ न पड़े और भारत चीन इस संबंध में सभी तरह से समझौते को राजी हों, जो की संभव नहीं है। मीरा के अनुसार पेरिस समझौते के मुताबिक भारत 2030 तक ऊर्जा के रूप में नॉन फॉसिल फ्यूल (जिसमें कोयले समेत अन्‍य चीजों का इस्‍तेमाल कर ऊर्जा पैदा की जाती है) का प्रयोग 40 फीसद तक कर लेगा। इसके अलावा 2020 तक भारत का लक्ष्‍य अक्षय ऊर्जा (जिसमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत उर्जा, ज्वारीय उर्जा, बायोमास, जैव इंधन का प्रयोग किया जाता है) के इस्‍तेमाल से 175 गीगा वाट बिजली का उत्‍पादन करना है। भारत के लिए यह लक्ष्‍य काफी बड़े हैं। लिहाजा इनसे आगे जाना भारत के लिए संभव नहीं है।

एनएसजी पर मीरा की राय

उन्‍होंने यह भी माना है कि पेरिस समझौते से पीछे हटते हुए जो बयान अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने दिया है उससे दोनों के रिश्‍तों में कुछ फर्क पड़ना लाजिमी है। वह भी तब जबकि एच1बी वीजा पॉलिसी को लेकर भारत अमेरिका से नाराज है। हालांकि उन्‍होंने यह जरूर माना कि इसका असर शायद एनएसजी पर देखने को न मिले और वहां पर अमेरिका पहले की ही तरह भारत का समर्थन जारी रखे। लेकिन उन्‍होंने इसके साथ ही यह जरूर कहा कि यह देखना दिलचस्‍प होगा कि इस मुद्दे पर वह चीन पर कितना दबाव बना पाता है, क्‍योंकि इस मुद्दे पर वही सबसे बड़ी अड़चन है। मीरा का मानना है कि दो देशों के बीच आपसी हितों को ध्‍यान में रखकर ही रिश्‍ते तय होते हैं। लिहाजा वह चीजें जिनपर मतभेद होते हैं उन्‍हें दूर रखना ही ज्‍यादा सही होता है। बातचीते के दौरान उन्‍होंने यह भी कहा कि ट्रंप के बयान को लेकर उनकी आलोचना भी हो रही है। इसके अलावा यूरोप ने साफ कर दिया है कि वह इस समझौते से पीछे नहीं हटेंगे।

पीएम मोदी की आगामी विदेश यात्राएं

- 7 जून 2017 : मोदी शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन जाएंगे।

- 8 जून 2017 : पीएम मोदी कजाकिस्तान जाएंगे।

- जुलाई : पहले सप्ताह में पीएम मोदी इजरायल दौरे पर जाएंगे। भारत के किसी भी प्रधानमंत्री का यह पहला इजरायल दौरा होगा। इजरायल में मोदी भारतीय मूल के लोगों को भी संबोधित करेंगे।

- 7-8 जुलाई : जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने जर्मनी जाएंगे।

- सितंबर : पीएम मोदी चीन जाएंगे। मोदी जियामेन शहर में 3 से 5 सिंतबर तक होने जा रहे नौवें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।

- 27 सिंतबर : पीएम मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग लेने अमेरिका जाएंगे। इसके बाद वह कनाडा भी जाएंगे।

-13 से 14 नवंबर : ईस्ट एशिया समिट में भाग लेने मनीला जाएंगे।

 


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