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    जानें, जीएसटी, व्यापारियों की मुश्किलें और इसे लागू करने के पीछे की मंशा

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Tue, 07 Nov 2017 09:59 AM (IST)

    जीएसटी लागू होने के बाद कुछ एक अपवादों को छोड़कर शेष सभी प्रकारों के अप्रत्यक्ष कर जीएसटी में विलीन हो गए हैं।

    जानें, जीएसटी, व्यापारियों की मुश्किलें और इसे लागू करने के पीछे की मंशा

    [डॉ. अश्विनी महाजन]
    जीएसटी को एक बड़े आर्थिक सुधार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, जीएसटी लागू होने के बाद से कांग्रेस जीएसटी के कारण होने वाले नुकसानों पर राजनीतिक बयानबाजी जरूर कर रही है, लेकिन वास्तव में जीएसटी लागू करने संबंधी शुरुआत कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के समय ही हुई थी। कांग्रेस के जमाने के वित्त मंत्री हों या वर्तमान सरकार के वित्त मंत्री सभी जीएसटी के पक्ष में अनेकों दलीले देते रहे हैं। इस बाबत सबसे बड़ी दलील यह दी जाती रही है कि पूरे देश में एक वस्तु पर कर की दर एक ही रहेगी। इससे न तो कोई असमंजस रहेगा और न ही विभिन्न राज्यों में अलग-अलग कर की दर होने से कोई विसंगति पैदा होगी।

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    कैसकेडिंग से होगा बचाव

    दूसरी बड़ी दलील दी जाती रही है कि लगभग सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष कर जीएसटी में विलीन हो जाएंगे तो इससे अलग-अलग पड़ावों पर कर लगने के कारण कीमतों में होने वाली बेजा वृद्धि, जिसे कैसकेडिंग प्रभाव कहा जाता है, से भी बचा जा सकेगा। संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच आर्थिक शक्तियों का बंटवारा किया गया है, जिसके अनुसार सीमा कर, शराब और कुछ स्थानीय स्तर पर बनने वाले उत्पादों पर उत्पाद शुल्क को छोड़कर शेष सभी प्रकार के उत्पाद शुल्क लगाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास था। उसके अलावा केंद्र सरकार पिछले लगभग 15 वर्षो से सेवा कर भी लगा रही थी।

    एक देश, एक कर

    उधर राज्य सरकारों के पास बिक्री कर, मनोरंजन कर, स्टांप ड्यूटी, बिजली के उपभोग, माल और यात्रियों के परिवहन इत्यादि पर कर लगाने का अधिकार था। जीएसटी लागू होने के बाद कुछ एक अपवादों को छोड़कर शेष सभी प्रकारों के अप्रत्यक्ष कर जीएसटी में विलीन हो गए हैं। हालांकि जीएसटी को एक सरल कर प्रणाली के नाते प्रस्तुत किया जा रहा है, लेकिन छोटे व्यापारी और लघु उद्योग वाले इसे अत्यंत जटिल कर प्रणाली मान रहे हैं। आसान इसलिए कहा गया था कि सभी टैक्सों के बदले में एक ही टैक्स देना पड़ेगा और फायदेमंद इसलिए कहा गया कि किसी भी व्यापारी अथवा उत्पादक को उससे पूर्व के दौर में दिए गए तमाम टैक्स पर क्रेडिट मिल जाएगा और उसे केवल मूल्य संवर्धन पर ही कर देना पड़ेगा।

    बढ़ गई कागजी कार्यवाहियां

    कंप्यूटर द्वारा जीएसटी के बने नेटवर्क (जीएसटीएन) पर टैक्स रिटर्न भरकर पिछले समय में दिए गए करों का क्रेडिट भी मिल सकेगा, लेकिन लघु उद्यमी और छोटे व्यापारी ऐसा नहीं मानते। उनकी पहली शिकायत यह है कि इस कर प्रणाली के अंतर्गत उन्हें तमाम प्रकार की कागजी कार्यवाहियां करनी पड़ रही हैं, जिसके कारण खर्चा बहुत बढ़ गया है। उनका कहना है कि चार्टर्ड एकाउंटेंटों ने जीएसटी की जटिलताओं के कारण अपनी फीस खासी बढ़ा ली है। उनका यह भी कहना है कि बड़े उद्योगों में सौदे बड़े-बड़े होते हैं, इसलिए उन्हें टैक्स पेड बिल मिलना अपेक्षाकृत आसान होता है।

    जीएसटी लागू होने से बढ़ी कठिनाइयां

    बड़े व्यवसायों में आसानी से टैक्स क्रेडिट लिया जा सकता है, लेकिन छोटे उद्योगों के लिए यह इतना आसान नहीं होता। बिक्री करने पर टैक्स सरकारी खाते में जमा करना पड़ता है, जबकि टैक्स क्रेडिट मिलने में महीनों लग जाते हैं। इसके कारण उनकी पूंजी लंबे समय के लिए ब्लॉक हो जाती है। लघु उद्योगों की यह भी शिकायत है कि जहां लघु उद्योगों को पूर्व प्रणाली में 1.5 करोड़ रुपये तक के उत्पादन के लिए उत्पाद शुल्क में छूट का प्रावधान था, अब ऐसा कोई प्रावधान नहीं बचा है। आलोचकों का कहना है कि जीएसटी के कारण छोटे व्यापारियों और उद्योगों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि जीएसटी लागू होने से उनकी कठिनाइयां बढ़ रही हैं और धंधा भी चौपट हो रहा है।

    सरकार ने उठाए कई कदम

    निर्यातकों की भी जीएसटी से कई प्रकार की शिकायतें हैं, क्योंकि अभी तक उन्हें बिना टैक्स के माल निर्यात करने की इजाजत थी, लेकिन अब उन्हें पिछले करों का क्रेडिट मिलने में कठिनाई हो रही है। इसके कारण चिंतित सरकार ने जीएसटी से संबंधी कठिनाइयों से निपटने के लिए कोशिशें तेज कर दी है। 7 अक्टूबर, 2017 को जीएसटी काउंसिल की बैठक में छोटे और मध्यम वर्ग के व्यापारियों और निर्यातकों को राहत देने के लिए सबसे पहला कदम यह उठाया गया कि 75 लाख के बजाय एक करोड़ रुपये के टर्नओवर वाले उद्यमों पर कंपोजीशन स्कीम लागू हो सकेगी और व्यापारी एक प्रतिशत, उत्पादक दो प्रतिशत और रेस्टोरेंट वाले पांच प्रतिशत की दर से कंपोजीशन टैक्स भर सकेंगे।

    मासिक रिटर्न की बजाय तीन महीने पर रिटर्न

    अनुपालन के दर्द को कम करने के लिए यह प्रावधान रखा गया है कि अब उन्हें मासिक रिटर्न के बजाय तीन महीने में एक रिटर्न भरना होगा। इससे पहले अपंजीकृत विक्रेता से माल खरीदने पर रिवर्स चार्ज देना पड़ता था। यानी उसका भी टैक्स खरीदने वाले को भरना पड़ता था। इस प्रावधान को 31 मार्च, 2018 तक स्थगित कर दिया गया है। इसके अलावा कई उत्पादों पर टैक्स को कम कर दिया गया है।

    जिन ठेकों में श्रम का हिस्सा ज्यादा है, उन पर मात्र पांच प्रतिशत की दर से ही कर लगेगा। सरकार ने यह भी वायदा किया है कि एक बार राजस्व ठीक-ठाक मिलना शुरू हो जाए तो करों को और भी कम किया जा सकेगा। 1पर लघु उद्योगों की मुश्किलें पूरी तरह से हल नहीं हुई हैं। इसलिए मंत्री स्तरीय समिति ने 9-10 नवंबर को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक के लिए यह सिफारिश की है कि कंपोजीशन स्कीम के दायरे को मौजूदा एक करोड़ से बढ़ाकर डेढ़ करोड़ रुपये कर दिया जाए ताकि ज्यादातर छोटे व्यापारियों और उद्यमियों को उससे लाभ मिल सके।

    रेस्टेरेंटों के कंपोजीशन कम करने की मांग

    वर्तमान में लघु उद्यमियों और रेस्टोरेंटों के लिए कंपोजीशन कर, जो अभी दो और पांच प्रतिशत है, को घटाकर व्यापारियों के स्तर यानी एक प्रतिशत कर दिया जाए। यदि यह प्रस्ताव मान लिया जाता है तो कंपोजीशन स्कीम के अंतर्गत आने वाले तमाम उद्योग, व्यापारी और रेस्टोरेंट एक प्रतिशत ही कर देंगे। लघु उद्यमियों की शिकायत है कि छोटे-बड़ों के साथ एक ही जैसा व्यवहार किए जाने से उनकी प्रतिस्पर्धा शक्ति क्षीण हो रही है। इससे निपटने के लिए सरकार इस प्रस्ताव पर भी विचार कर रही है कि लघु उद्यमियों द्वारा दिए गए करों का कुछ हिस्सा उन्हें वापस कर दिया जाए। लगता है जल्द ही जीएसटी से लघु उद्यमियों का दर्द दूर हो जाएगा।

    (लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)
     

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