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    ये है गरीबी की परिभाषा और अलग-अलग तरह की गरीबी

    By Lalit RaiEdited By:
    Updated: Tue, 17 Oct 2017 02:57 PM (IST)

    आज जब आप धनतेरस मना रहे हैं, ठीक उसी वक्त दुनिया की एक अरब से ज्यादा आबादी दो जून रोटी के लिए संघर्ष कर रही है।

    ये है गरीबी की परिभाषा और अलग-अलग तरह की गरीबी

    नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क ] । आज जब आप धनतेरस मना रहे हैं। दिवाली के लिए खरीददारी में व्यस्त हैं। दिवाली को देखते हुए कुछ ज्यादा भी खर्च हो जाए तो उसके लिए भी खुद को तैयार कर रहे हैं। उसी दिन यानी मंगलवार 17 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस भी मनाया जा रहा है। दुनिया की करीब आधी आबादी (करीब 3 अरब) तो 150 रुपये प्रति दिन से कम पर गुजारा कर रही है। यही नहीं दुनिया की करीब एक चौथाई यानी 1.3 अरब जनसंख्या बेहद गरीब है।

    दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक जिनके पास जीवन जीने के अनुकूल हालात, सुविधाएं और मौके मौजूद हैं, इन्हें संपन्न कहा जाता है। दूसरे जो रोटी, कपड़ा, मकान, पेयजल के लिए तरस रहे हैं, वे विपन्न हैं। संपन्नता और विपन्नता की इसी दरार को पाटने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 दिसंबर 1992 को हर साल 17 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाने का संकल्प लिया। इस बार यह 25वां अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस है।

    गरीबी की परिभाषा
    संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विकल्पों और मौकों का अभाव ही गरीबी है। यह मानव आत्मसम्मान का उल्लंघन है। इसका मतलब समाज में प्रभावकारी रूप से भागीदारी करने वाली मूल क्षमता का अभाव होना है। इसका मतलब किसी के पास संसाधनों का इतना अभाव होना है कि वह परिवार को न तो भरपेट भोजन कराने में सक्षम है न ही उनके तन ढकने में। ...इसका मतलब असुरक्षा, लाचारी और बहिष्कार होता है। हिंसा के प्रति अतिसंवेदनशील होना होता है।

    विश्व बैंक के अनुसार किसी को उसके कल्याण से महरूम रखना भी गरीबी का एक रूप है। इसमें कम आय और आत्मसम्मान से जीने के लिए मूलभूत चीजों एवं सेवाओं को ग्रहण करने की अक्षमता शामिल होती है। स्तरहीन शिक्षा और स्वास्थ्य, स्वच्छ जल और साफ-सफाई की खराब उपलब्धता, अभिव्यक्ति का अभाव भी गरीबी से जुड़े होते हैं।

    इतनी तरह की होती है गरीबी
    करीबी के कम से कम 6 प्राकारों के बारे में बात होती है। आइए इनके बारे में संक्षिप्त रूप से जानें...

    परिस्थितिजन्य गरीबी-
    किन्ही खास कारणों से यदि किसी व्यक्ति पर तात्कालिक प्रभाव पड़ता है और वह संकट में आ जाता है तो उसे परिस्थितिजन्य गरीबी कहा जाता है। प्राकृतिक आपदा, तलाक या किसी गभीर बीमारी के कारण ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं।

    पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी- जब किसी परिवार की कम से कम दो पीढ़ियां गरीबी में पैदा होती हैं और जीवन यापन करती हैं तो इसे जेनरेशनल पॉवर्टी कहते हैं। ऐसे परिवारों के पास खुद को गरीबी से पार ले जाने की क्षमता नहीं होती।

    एब्सोल्यूट पॉवर्टी- यह ऐसी गरीबी है, जिसमें किसी परिवार के पास आम जरूरत की चीजें जैसे सिर छिपाने के लिए छत, स्वच्छ पानी और भोजन तक नहीं होता। इस तरह के गरीब परिवार अपने रोज के भोजन के लिए भी संघर्ष करते हैं।

    रिलेटिव पॉवर्टी- यह परिवार की आर्थिक स्थिति से संबंधित है। ऐसा परिवार जो अपने समाज की औसत आर्थिक स्थिति से कम कमाता है उसे इस श्रेणी में रखा जाता है।

    शहरी गरीबी- यह वह परिवार हैं जो महानगरों के लिए तय दैनिक या मासिक आमदनी से कम कमाते हैं। शहरी गरीबों को भीड़भाड़, हिंसा और शोर-शराबे से गुजरना पड़ता है।

    ग्रामीण गरीबी- इस तरह के गरीब वह परिवार होते हैं जो ग्रामीण आबादी के लिए तय दैनिक या मासिक आमदनी से कम कमाते हैं। इन गरीब ज्यादातर सिंगल गार्जियन होते हैं या सुविधाओं तक उनकी पहुंच कम होती है।

    भारत में गरीब की पहचान
    गरीबी की गणना वर्तमान में रंगराजन समिति की सिफारिशों से की जाती है। जून, 2014 में इस समिति ने गरीबी का नया पैमाना तैयार किया। इसके अनुसार ग्रामीण इलाकों के लिए प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग खर्च 972 रुपये तय किया गया, जबकि शहरी क्षेत्र के लिए यह राशि 1407 रुपये तय है। इस पैमाने के अनुसार देश की 29.5 फीसद आबादी यानी 36.3 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को अभिशप्त हैं।

    भारत में गरीबी उन्मूलन के कदम
    भारत में गरीबी उन्मूलन राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे में हमेशा से रहा है। शायद यही कारण है कि 70 के दशक में देश में 'गरीबी हटाओ' का नारा बुलंद किया गया था। लेकिन इससे पहले जब देश आजाद हुआ उस समय भी जब भारत की परिकल्पना की गई तो उसके मूल में आम व गरीब व्यक्ति ही था। गरीबी उन्मूलन के लिए भारत में समय-समय पर जवाहर रोजगार योजना, इंदिरा आवास योजना, मीलियन वेल स्कीम, स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना, मनरेगा, भारत निर्माण, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, ग्रामीण विकास योजना, स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री आवास योजना, आदर्श ग्राम योजना योजनाएं चलाई गईं।

    गरीबी उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय कदम

    संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन पहला है। उसके तहत 2030 तक दुनिया से गरीबी के सभी रूपों को खत्म किया जाना है। सभी देशों को इससे जुड़े लक्ष्य दिए गए हैं। कुछ ने इस दिशा में अच्छा काम किया है तो कुछ ने अपेक्षानुरूप परिणाम नहीं दिया।

    गंभीर समस्या

    विडंबना ही है जहां दुनिया की कुल संपत्ति जितना धन दुनिया के चंद धनकुबेरों के पास है, वहीं बहुतायत में ऐसे भी लोग हैं जो दो जून की रोटी के लिए भी तरस रहे हैं।

    दुनिया के अधिकांश गरीब दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका के देशों से
    - कुल कामगारों में से 10% सपरिवार 123 रुपये से कम पर रोज जीवन गुजार रहे हैं
    -अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा यानी 1.90 डॉलर (करीब 123 रुपये) से कम पर 77 करोड़ लोग प्रतिदिन गुजारा करते हैं।
    - गृह युद्ध, हिंसा और अस्थिरता झेल रहे देशों में उच्च गरीबी दर।

    ब्राजील बना मिसाल
    अत्यंत गरीब पांच करोड़ आबादी के लिए ब्राजील ने 2003 में बोलसा फमेलिया योजना शरू की। इसके तहत हर गरीब परिवार को प्रतिमाह 4,200 रुपये की मदद देनी थी, लेकिन फायदा उन्हीं को मिलता जो अपने बच्चों को नियमित स्कूल भेजते और स्वास्थ्य जांच करवाते थे। अधिकांश परिवारों ने स्कीम का फायदा लेने के लिए ये शर्तें पूरी कीं। नतीजा ये हुआ कि 17 लाख परिवारों के बच्चे जब ग्रेजुएट हो गए तो उन्होंने इस योजना का फायदा लेना बंद कर दिया। उनके बच्चे शिक्षित होकर आजीविका चलाने के काबिल हो चुके थे।
     

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