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जगदीप धनखड़ ने संसद के चुप रहने पर जताई चिंता, कहा- संसद की सर्वोच्चता बनाए रखना हमारा कर्तव्य

धनखड़ ने कहा कि संसद से सर्वसम्मति से पारित कोई विधेयक कैसे संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है। लोकतंत्र में संसद की सर्वोच्चता है। लेकिन अचरज की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के सात सालों के बाद भी कोई चर्चा नहीं की।

By Jagran NewsEdited By: Shashank MishraPublished: Wed, 07 Dec 2022 09:16 PM (IST)Updated: Wed, 07 Dec 2022 09:16 PM (IST)
जगदीप धनखड़ ने संसद के चुप रहने पर जताई चिंता, कहा- संसद की सर्वोच्चता बनाए रखना हमारा कर्तव्य
सदन में अपने पहले भाषण में ही सभापति धनखड़ ने न्यायपालिका को दिया सख्त संदेश

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राज्यसभा में अपने पहले संबोधन में ही सभापति जगदीप धनखड़ ने जहां सांसदों को संसद और सदन के संवैधानिक अधिकारों और गरिमा की याद दिलाई और वहीं सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा। उन्होंने सांसदों से कहा कि सदन और संसद की इस गरिमा को अक्षुण्ण रखना हम सभी का दायित्व है। इस मौके पर उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) से जुड़े विधेयक को रद करने के सुप्रीम कोर्ट के 2015 के उस फैसले पर भी सवाल खड़ा किया है, जिसमें संसद से सर्वसम्मति से पारित होने के बाद भी कोर्ट ने यह कहते हुए इसे रद कर दिया था कि यह न्यायपालिका और संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है।

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धनखड़ बुधवार को राज्यसभा में सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि संसद से सर्वसम्मति से पारित कोई विधेयक कैसे संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है। लोकतंत्र में संसद की सर्वोच्चता है। लेकिन अचरज की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के सात सालों के बाद भी संसद के भीतर कोई चर्चा नहीं की गई। उन्होंने कहा कि यह 'संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता' व उस जनता के 'जनादेश का असम्मान' है, जिसका संरक्षक लोकसभा और राज्यसभा है।

लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती जहां नियमपूर्वक बनाए गए किसी विधेयक या कानून को इस तरह न्यायिक ढंग से खारिज कर दिया गया हो। ध्यान रहे कि कुछ दिनों पूर्व मुख्य न्यायाधीश की मौजूदगी में भी उन्होंने यह सवाल खड़ा किया था। पिछले कुछ दिनों में कोलेजियम व्यवस्था को लेकर सार्वजनिक रूप से भी बहस छिड़ी हुई है। उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का जिक्र करते हुए बताया कि इसका संसद के दोनों सदनों ने वर्ष 2014 में 99 वें संविधान संशोधन के जरिए किया था।

जिसे दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से पारित किया था। 29 राज्यों में से 16 राज्यों की विधानसभा ने भी इस पर अपनी मुहर लगाई थी। बाद में इसे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी थी। बाद में इसी कानून को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। सभापति ने कहा कि हमें इस बात पर ध्यान रखने की जरूरत है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनादेश को पूरी ताकत से कायम रखने की जिम्मेदारी संसद के पास है। लोकसभा और राज्यसभा को इसकी जिम्मेदारी निभाना होगा।

जो हम निश्चित रूप से करेंगे।इस मौके पर राज्यसभा के नेता पीयूष गोयल, नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आदि भी मौजूद रहे। उपराष्ट्रपति ने सदन में अवरोध को लेकर भी चिंता जताई और सदस्यों से अपील की कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप आचरण करें।

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