स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। लंबे समय से भारतीय औद्योगिक अर्थव्यवस्था की पहचान इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री से रही है, लेकिन अब इसमें तेजी से बदलाव आने वाला है। इलेक्ट्रॉनिक्स, हाईटेक मैन्युफैक्चरिंग और स्पेस इंडस्ट्री जैसे सनराइज सेक्टर जल्द ही भारत की नई इकोनॉमी का चेहरा होंगे। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है।

कैबिनेट ने 1.26 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के लिए तीन सेमीकंडक्टर संयंत्रों को मंजूरी दी है, जिनमें से दो गुजरात में और एक असम में है। इनका शिलान्यस भी हो चुका है।

देश में सेमीकंडक्टर का सबसे बड़ा प्लांट गुजरात के धोलेरा में बन रहा है, जहां से भारत की पहली सेमीकंडक्टर चिप 2026 तक आने की संभावना है। टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स यह प्लांट ताइवान के पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन (PSMC) के साथ बना रहा है।

इस फैब की विनिर्माण क्षमता प्रति माह 50,000 वेफर्स तक होगी। यहां कंप्यूटर चिप्स के निर्माण के अलावा, इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी), टेलीकॉम, डिफेंस, ऑटोमोटिव, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, डिस्प्ले, पावर इलेक्ट्रॉनिक्स आदि के लिए पावर मैनेजमेंट चिप्स भी बनेंगे। पावर मैनेजमेंट चिप्स हाई वोल्टेज, हाई करेंट एप्लीकेशन होते हैं।

इन प्लांट के शिलान्यास से तीन हफ्ते पहले ही भारत सरकार ने एक और बड़ा कदम उठाया था। देश के स्पेस सेक्टर के उदारीकरण का। स्पेस सेक्टर में ऑटोमैटिक रूट से 100% तक एफडीआई की अनुमति मिलने से भारत की स्पेस इंडस्ट्री को ग्लोबल मैप पर आ गई है। अनुमान है कि देश का स्पेस सेक्टर अगले 10 साल में पांच गुना बढ़कर 44 अरब डॉलर के पार हो जाएगा।

स्पेस इंडस्ट्री की संस्था इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISpA) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) ए.के. भट्ट भी मानते हैं कि नई एफडीआई नीति के बाद स्पेस सेक्टर में विदेशी निवेश आने की पूरी उम्मीद है। वे कहते हैं, आज पूरी दुनिया में स्पेस सेक्टर को लेकर रुचि काफी ज्यादा है। बड़ी विदेशी कंपनियां भारतीय स्टार्टअप तथा अन्य कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर स्थापित करेंगी।

उम्मीद है कि नए उदार एफडीआई नियम के बाद एलोन मस्क की स्पेसएक्स, जेफ बेजोस की ब्लू ओरिजिन और रिचर्ड ब्रैन्सन की वर्जिन गैलेक्टिक भी भारत में निवेश कर सकती हैं।

तीसरी इंडस्ट्री जो देश में तेजी से बढ़ने जा रही है, वह है ग्रीन एनर्जी। भारत ने घोषणा की है कि देश वर्ष 2070 तक नेट कार्बन जीरो उत्सर्जन हासिल कर लेगा, जबकि साल 2030 तक अपनी बिजली की 50% जरूरतों को नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करेगा।

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए तेजी से काम हो रहा है। भारत में 40 गीगावॉट की कुल क्षमता वाले 59 सौर पार्कों को मंजूरी मिल चुकी है। एक करोड़ घरों पर रूफटॉप सोलर प्लांट लगाने वाली महत्वाकांक्षी पीएम सूर्यघर योजना भी सरकार शुरू कर चुकी है।

देश में उच्च दक्षता वाले सोलर मॉड्यूल निर्माण को बढ़ावा देने के लिए आम बजट 2022-23 में सरकार ने 19,500 करोड़ रुपए की पीएलआई योजना शुरू की थी। देश के शीर्ष उद्योग घराने इस कारोबार में उतर चुके हैं।

उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के अनुसार, भारत में गैर-पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्र निवेशकों के लिए काफी आकर्षक हो गया है। 2014 से भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 5.2 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया गया है। इसमें विदेशी निवेश बढ़ रहा है। संयुक्त अरब अमीरात ने भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 75 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश का ऐलान किया है।

ग्रीन एनर्जी में बैटरी भी एक महत्वपूर्ण घटक है। अभी भारत में बैटरी सेल नहीं बनते हैं। फिलहाल सभी बैटरी सेल आयात होते हैं, यहां सिर्फ असेंबलिंग होती है। दो स्टार्टअप ने इस दिशा में काम शुरू किया है लेकिन वे अभी छोटे स्तर पर हैं। बैटरी सेल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए सरकार पीआईएल (18,100 करोड़ रुपये) लेकर आई है। इसमें तीन कंपनियों ने बोली जीती है।

पीरामल एंटरप्राइजेस के मुख्य अर्थशास्त्री देबोपम चौधरी कहते हैं, वैश्विक सप्लाई चेन में गहराई से जुड़ने की भारत की महत्वाकांक्षा कई नए उद्योगों में विकास की क्षमता को बढ़ा रही है। चीन+1 रणनीति के कारण खाली हुए स्थान के लिए एक योग्य दावेदार के रूप में उभरने के लिए भारतीय मैन्युफैक्चरिंग को हाई क्वालिटी स्टैंडर्ड को पूरा करने की जरूरत है। यह कैपेसिटी और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भारी प्राइवेट और पब्लिक कैपेक्स से ही हासिल किया जा सकता है। यह नए क्षेत्र इसीलिए चर्चा में हैं, क्येंकि इनमें भारी कैपेक्स आ रहा है। यदि यहां सफलता मिलती है तो भारत मैन्युफैक्चरिंग के मामले में चीन के एक विश्वसनीस विकल्प के रूप में स्थापित होगा, इससे टिकाऊ विकास का जन्म होगा।

चौधरी कहते हैं, सरकार इस अवसर को दो तरीकों से भुनाने की कोशिश कर रही है। पहला है उच्च मांग को बनाए रखने के लिए सपोर्ट करना और उत्पादन के लिए अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना। मांग और आपूर्ति को इस तरह से सुव्यवस्थित रखने के लिए बहुत बारीक प्रबंधन की जरूरत होती है। लेकिन इसे सफलता से किया गया तो इसका उद्योगों पर काफी बड़ा गुणक प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, ऐसे समय में जबकि विश्व अर्थव्यवस्था के धीमे होने की आशंका है, भारत की बहुत सी योजनाएं विकसित देशों से आने वाली मांग पर भी निर्भर करेंगी।

विदेशों से मांग को बढ़ाने के लिए सरकार दुनियाभर के देशों और देश समूहों के साथ व्यापार समझौते पर बात कर रही है। बीते रविवार को ही भारत ने चार यूरोपीय देशों के संगठन यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के साथ एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते से यूरोपियन यूनियन के बाजारों में भारतीय कंपनियों के लिए पैठ बनाना आसान हो जाएगा। भारत इससे पहले आस्ट्रेलिया, जापान, सिंगापुर, यूएई, आसियान, सार्क देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट साइन कर चुका है। इसके अलावा, यूके, ईयू, कनाडा, न्यूजीलैंड से बातचीत जारी है।

ईएफटीए के साथ हुए समझौते में खास बात ये है कि इन देशों ने अगले 15 वर्षों में भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करने और दस लाख प्रत्यक्ष रोजगार सृजित करने की भी बाध्यकारी प्रतिबद्धता जताई है। निवेश प्रतिबद्धता पूरी नहीं हुई तो भारत ने समझौते से हटने का अधिकार सुरक्षित रखा है।

इस समझौते में इमिग्रेशन आसान बनाने की भारत की सबसे महत्वपूर्ण मांग को भी मान लिया गया है। इसी मांग को लेकर यूरोपियन यूनियन और यूके के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर अब तक सहमति नहीं बन पाई है। विश्लेषकों की मानें तो यूके और ईयू के साथ जल्द एफटीए की संभावनाएं बढ़ गई हैं।

निर्यातकों के संगठन फियो के डायरेक्टर जनरल और सीईओ अजय सहाय कहते हैं, “भारत ने पहली बार किसी विकसित देश समूह के साथ व्यापार समझौता किया है। दूसरा, हमने पहली बार टैरिफ में छूट को निवेश से जोड़ा है। हमने कहा है कि अगर 100 अरब डॉलर का निवेश नहीं आया तो हम टैरिफ में छूट जारी रखने पर पुनर्विचार करेंगे।” उन्होंने बताया कि ये देश ग्रीन टेक्नोलॉजी, मेडिकल उपकरण या इलेक्ट्रिकल मशीनरी जैसे सेक्टर में आगे हैं। इन सेक्टर में भारत में निवेश आना हमारे लिए बहुत अच्छा होगा।

समझौते से भारतीय कंपनियों को यूरोपियन यूनियन के बाजार में बिजनेस बढ़ाने का अवसर मिलेगा। स्विट्जरलैंड का 40% से ज्यादा सर्विसेज निर्यात यूरोपियन यूनियन को होता है। भारतीय कंपनियां ईयू के बाजार के लिए स्विट्जरलैंड को बेस बना सकती हैं।

देबोपम चौधरी कहते हैं, भारत के सामने अपरंपार मौके हैं। प्रतिस्पर्धी मूल्य बनाए रखते हुए उत्पादन गुणवत्ता में तेजी से सुधार करने की क्षमता ग्लोबल सप्लाई चेन में भारत की प्रासंगिकता निर्धारित करेगी। भारत का लक्ष्य प्राथमिक और मध्यवर्ती वस्तुओं के निर्यात से दूर हटना है, जिनमें आमतौर पर कम मुनाफा होता है, और ऊंचे मुनाफे वाली वस्तुओं की ओर बढ़ना है।

चौधरी के मुताबिक, सबसे बड़ी चुनौती विकसित देशों के भीतर मांग के रुझानों से जुड़ी है। एक बूढ़ी होती आबादी और धीमी अर्थव्यवस्था के साथ व्यापारिक वस्तुओं की मांग कमजोर हो सकती है, जिससे भारत से निर्यात कम हो सकता है।