कांग्रेस के लिए क्षेत्रीय ताकतों के साथ पाला बदल से उबरना मुश्किल, मेघालय में पार्टी को खास नुकसान
मेघालय नगालैंड और त्रिपुरा के चुनाव नतीजों से साफ हो गया है कि 2014 में केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद से पूर्वोत्तर में कांग्रेस का गिरता सियासी ग्राफ थम नहीं रहा है। राजनीतिक वापसी करना कांग्रेस के लिए पहाड़ जैसी चुनौती बन गई है।

संजय मिश्र, नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों के उपचुनाव में कामयाबी के बावजूद कांग्रेस के लिए पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव की नाकामियों पर पर्दा डालना मुश्किल है। मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा के चुनाव नतीजों से साफ हो गया है कि 2014 में केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद से पूर्वोत्तर में कांग्रेस का गिरता सियासी ग्राफ थम नहीं रहा है। भाजपा के साथ क्षेत्रीय दलों का उभार कभी दशकों तक उसके मजबूत गढ़ रहे पूर्वोत्तर राज्यों में राजनीतिक वापसी करना कांग्रेस के लिए पहाड़ जैसी चुनौती बन गई है।
कांग्रेस की सियासी जमीन ध्वस्त
पूर्वोत्तर राज्यों में एक-एक कर क्षेत्रीय दलों और भाजपा के उभार से कांग्रेस की सियासी जमीन ध्वस्त होने का सबसे ताजा उदाहरण मेघालय है। 2018 तक सत्ता में रहने के साथ प्रदेश की सबसे ताकतवर पार्टी रही कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में 60 में से 21 सीटें मिली और सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बहुमत हासिल नहीं कर पायी। नेशनल पीपुल्स पार्टी के कोनार्ड संगमा ने भाजपा और अन्य के साथ मिलकर तब सरकार बना ली और फिर कांग्रेस के कई विधायक तोड़ बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया।
मुख्य विपक्षी दलों में थी कांग्रेस
हालांकि इसके बावजूद कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल थी और पूर्व सीएम मुकुल संगमा नेता विपक्ष थे। लेकिन करीब दो साल पहले मुकुल संगमा ने कांग्रेस के बाकी बचे 13 विधायकों के साथ पाला बदल ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसने मेघालय में कांग्रेस के संगठन का ढांचा किस कदर चरमरा दिया इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव में उतरे पार्टी के सभी 60 उम्मीदवारों में एक भी विधायक तो दूर पूर्व विधायक तक नहीं था और सभी नए चेहरे थे।
मुकुल संगमा का सपना भी धराशायी
वैसे कांग्रेस के लिए संतोष की बात यह जरूर रही कि टीएमसी में जाकर फिर से मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे मुकुल संगमा का सपना भी धराशायी हो गया। कांग्रेस और टीएमसी दोनों को पांच-पांच सीटें ही मिली है। मेघालय के ताजा चुनाव में वोट प्रतिशत के आंकड़ों से साफ है कि तृणमूल कांग्रेस की सूबे में उपस्थिति ने कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया और वोटों का बंटवारा इस तरह नहीं होता तो चुनाव नतीजे की दशा-दिशा कुछ दूसरी होती। जाहिर है इसका फायदा एक बार फिर कोनार्ड संगमा को हुआ है जिन्होंने चुनाव से पहले भाजपा से नाता तोड़ लिया था मगर बहुमत का आंकड़ा जुटाने के लिए वे दुबारा एनडीए में शामिल होने को आतुर हैं।
TMC ने कांग्रेस को पहुंचाया नुकसान
तृणमूल कांग्रेस ने गोवा के पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में भी अपने उम्मीदवारों को उतार कर कई सीटों पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया था। नगालैंड में कांग्रेस पिछले 30 साल से सत्ता से बाहर है मगर पार्टी के लिए गहरी चिंता की बात यह रही कि लगातार दूसरे चुनाव में पार्टी विधानसभा में एक सीट भी नहीं जीत पायी। नगालैंड को मुख्यधारा की राजनीति में लाने में अहम भूमिका निभाने वाले दिग्गज एससी जमीर 2003 में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री थे। इसके बाद सूबे की राजनीतिक ताकत के रूप में उभरे वर्तमान मुख्यमंत्री नेफियू रियो के दल नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी बीते तीन दशक से सत्ता पर काबिज है और 2023 के चुनाव में तमाम प्रयासों के बावजूद कांग्रेस सूबे में खाता नहीं खोल पायी।
वामदलों की उम्मीदें भी धराशायी
त्रिपुरा में वामदलों के साथ गठबंधन कर सत्ता का हिस्सेदार बनने की पार्टी की उम्मीदें भी धराशायी हो गई। वैसे बीते तीन दशक से कांग्रेस सूबे की सत्ता से बाहर ही रही है और यहां भी पहले आईपीएफटी उसके बाद तृणमूल कांग्रेस और अब टीपरा मोथा जैसे दलों ने अपनी पैठ बनाते हुए कांग्रेस की सियासत को कमजोर किया है। हालांकि त्रिपुरा को लेकर कांग्रेस इस बात से राहत महसूस कर सकती है कि पिछली बार जहां पार्टी का खाता नहीं खुला था वहीं मौजूदा चुनाव में पार्टी को विधानसभा में तीन सीटें मिली है।
ममता बनर्जी को झटका
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के सागरदीघी विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस ने जरूर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार को बड़े अंतर से हराकर ममता बनर्जी को झटका दिया है। इसी तरह भाजपा का गढ़ रहे महाराष्ट्र की कसबा पेठ सीट के साथ कांग्रेस ने तमिलनाडु के एक सीट के उपचुनाव में बड़े अंतर से जीत हासिल कर इन सूबों में अपनी सियासी प्रतिष्ठा बनाए रखी। हालांकि झारखंड की एक सीट के उपचुनाव में उसे भाजपा की सहयोगी आजसू के हाथों मात मिली।
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