ISRO EOS-03 launch: इसरो का इओएस-03 सैटेलाइट नहीं हो सका लांच, आखिरी मिनट में इंजन में आई खराबी
ISRO EOS-03 launch इसरो के पृथ्वी की निगरानी करने वाले उपग्रह EOS-03 की लान्चिंग का मिशन फेल हो गया। लान्चिंग के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण के बाद सैटेलाइट ने दो चरण सफलता पूर्वक पूरे किए।
बेंगलुरु, प्रेट्र। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के भू-स्थिर कक्षा से पृथ्वी की निगरानी करने वाले पहले उपग्रह (सेटेलाइट) जीआइएसएटी-1 या ईओएस-03 की लांचिंग का मिशन गुरुवार को पूरा नहीं हो सका। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण के बाद जीएसएलवी-एफ10 राकेट ने दो चरण सफलतापूर्वक पूरे किए, लेकिन पांच मिनट के बाद क्रायोजेनिक इंजन के चरण में तकनीकी गड़बड़ी आ गई। क्रायोजेनिक इंजन से आंकड़े मिलने बंद हो गए। इसके कुछ देर बाद इसरो ने मिशन पूरा नहीं होने की घोषणा कर दी। फरवरी में ब्राजील के भू-निगरानी उपग्रह एमेजोनिया-1 और 18 अन्य छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के बाद 2021 में इसरो का यह दूसरा मिशन था।
सुबह 5.43 बजे भरी थी उड़ान
इसरो के अनुसार, 51.70 मीटर लंबे राकेट जीएसएलवी-एफ10 ने 26 घंटे की उलटी गिनती समाप्त होने के तुरंत बाद सुबह 5.43 बजे श्रीहरिकोटा के दूसरे लांच पैड (प्रक्षेपण स्थल) से सफलतापूर्वक उड़ान भरी थी। मिशन कंट्रोल सेंटर के वैज्ञानिकों ने बताया कि पहले और दूसरे चरण में राकेट का प्रदर्शन सामान्य रहा था। इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने बताया, 'मिशन को पूरी तरह संपन्न नहीं किया सका क्योंकि क्रायोजेनिक चरण में एक तकनीकी विसंगति पाई गई।'
Watch Live: Launch of EOS-03 onboard GSLV-F10 https://t.co/NE3rVjNtHb
— ISRO (@isro) August 11, 2021
फिर से तय किया जा सकता है प्रक्षेपण कार्यक्रम : जितेंद्र सिंह
2,268 किग्रा वजनी ईओएस-03 मिशन विफल रहने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में राज्यमंत्री और अंतरिक्ष विभाग के प्रभारी जितेंद्र सिंह ने ट्वीट कर कहा, 'इसरो अध्यक्ष डा. के. सिवन से बात की और विस्तार से चर्चा की। पहले दो चरण ठीक रहे, लेकिन उसके बाद क्रायोजेनिक अपर स्टेज में दिक्कत आ गई। मिशन का कार्यक्रम फिर से तय किया जा सकता है।'
अंडमान सागर में गिरा सेटेलाइट
ईओएस-03 को भूमध्य रेखा पर करीब 36,000 किलोमीटर ऊपर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित किया जाना था। भारतीय उपमहाद्वीप पर नजर रखने के लिए विज्ञानियों ने इस पर एक बड़ा टेलीस्कोप लगाया था। एक अमेरिकी खगोल विज्ञानी जोनाथन मैक्डोवेल ने बताया कि राकेट और सेटेलाइट संभवत: थाईलैंड के पश्चिम में अंडमान सागर में गिर गए।
कई सौ करोड़ रुपये का नुकसान
इस मिशन की विफलता से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को गहरा धक्का लगा है। इससे न सिर्फ राकेट और सेटेलाइट पर खर्च हुए कई सौ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है बल्कि 10 साल तक इससे अर्जित हो सकने वाले राजस्व की भी हानि हुई है। जाने-माने अंतरिक्ष विज्ञानी जी. माधवन नायर ने मिशन की असफलता पर हैरानी जताई है, लेकिन साथ ही कहा कि इसरो वापसी करने में सक्षम है। उन्होंने कहा, इसरो ने पिछले कुछ वर्षो में क्रायोजेनिक तकनीक में महारत हासिल कर ली है और इस मामले में भारत का पुराना रिकार्ड यूरोपीय देशों और रूस की तुलना में उतना खराब नहीं है।
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