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    क्या है NPT, जिससे बाहर निकलना चाहता है ईरान, भारत भी इस संधि पर नहीं करता भरोसा; आखिर क्या है मकसद?

    Updated: Tue, 17 Jun 2025 06:32 PM (IST)

    Israel-Iran conflict इजरायल-ईरान संघर्ष के बीच परमाणु अप्रसार संधि (NPT) चर्चा में है क्योंकि ईरान की संसद में इससे बाहर निकलने का प्रस्ताव रखा गया है। 1968 में बनी यह संधि परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए है। भारत ने इसे भेदभावपूर्ण मानते हुए इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

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    एनपीटी का मकसद परमाणु हथियारों का प्रसार रोकना परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना है।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इजरायल-ईरान संघर्ष के बीच परमाणु अप्रसार संधि (NPT) की चर्चाएं तेज हो रही है। दावा किया जा रहा है कि ईरान की संसद में NPT से बाहर निकलने को लेकर प्रस्ताव पेश किया गया है। हालांकि इसकी आधिकारिक घोषणा अभी नहीं की गई है। लेकिन आखिर क्या है परमाणु अप्रसार संधि और क्यों हो रही है इसकी चर्चा?

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    इस आर्टिकल में हम रेशा-रेशा समझेंगे कि NPT का मकसद क्या है और क्या इस संधि में कुछ लूपहोल भी है, इसके साथ ही भारत ने क्यों अब तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं इसका भी  तलाशेंगे।

    अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागाशाकी पर परमाणु हमले किए। इसके बाद इस रेस में रूस, ब्रिटेन और फ्रांस ने भी परमाणु शक्ति हासिल की। 1960 के दशक में चीन भी इस फेहरिस्त में जुड़ गया। भारत ने बहुत बाद में जाकर परमाणु शक्ति हासिल की। जब कई देश परमाणु हथियार की होड़ में लग गए तब इसके लिए एक संधि बनाने के प्रस्ताव लाया गया।

    एनपीटी का मकसद परमाणु हथियारों का प्रसार रोकना, परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना और शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना है। 1968 में बनी इस संधि को 1970 में लागू किया गया। इसका जोर इस बात पर है कि परमाणु हथियार सिर्फ उन पांच देशों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस) तक सीमित रहें, जिन्हें संधि में "परमाणु हथियार संपन्न देश" माना गया है। इसके साथ ही, यह देशों को परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण इस्तेमाल का हक देती है।

    भारत ने एनपीटी पर अब तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं। भारत का मानना है कि यह संधि भेदभावपूर्ण है क्योंकि यह सिर्फ पांच देशों को परमाणु हथियार रखने की इजाजत देती है, जबकि बाकी देशों पर पाबंदी लगाती है। भारत का कहना है कि यह संधि वैश्विक निरस्त्रीकरण के बजाय कुछ देशों की ताकत को बनाए रखती है।

    भारत ने 1974 और 1998 में परमाणु परीक्षण किए और खुद को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित किया। भारत ने हमेशा जोर दिया है कि वह जिम्मेदार परमाणु नीति अपनाता है, जिसमें "पहले हमला न करने" की नीति शामिल है। इसके बावजूद, भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ परमाणु सहयोग बढ़ाया है। बता दें भारत ऐसा देश है जिसमें न्यूक्लियर ट्रायड हासिल कर लिया है।

    न्यूक्लियर ट्रायड क्या है?

    न्यूक्लियर ट्रायड यानी परमाणु त्रिकोण, एक देश की वह सैन्य रणनीति है जिसमें परमाणु हथियारों को तीन अलग-अलग तरीकों से तैनात किया जाता है। ट्रायड मतलब जमीनी मिसाइलें, पनडुब्बी आधारित मिसाइलें और हवाई हमले परमाणु बम ले जाने की तकनीक हासिल कर लेना या फिर ऐसी मिसाइलों से लैस होना जो तीनों जगह काम कर सकें।

    इस त्रिकोण का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि अगर कोई देश पर हमला हो, तो वह जवाबी कार्रवाई के लिए कम-से-कम एक माध्यम से परमाणु हमला कर सके। भारत ने हाल के सालों में अपनी न्यूक्लियर ट्रायड को मजबूत किया है।

    परमाणु अप्रसार संधि और परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि में क्या है अतंर?

    NPT न्यूक्लियर संधि है। ये संधि 1968 में हस्ताक्षर के लिए रखी गई लेकिन इसे लागू होने में दो साल लग गए। 11 मई 1995 को संधि को अनिश्चितकाल के लिए बढ़ाया गया। इस संधि के तहत 5 परमाणु-हथियार संपन्न देशों सहित कुल 191 देशों को इस संधि में शामिल किया गया।

    वहीं परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि संयुक्त राष्ट्र ने 2017 में अमल में लाया है। UN ने सभी सदस्य देशों को अंतरराष्ट्रीय संगठनों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों की भागीदारी और योगदान के साथ सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। यह सम्मेलन 27 से 31 मार्च और 15 जून से 7 जुलाई तक न्यूयॉर्क में आयोजित हुआ। परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि को 7 जुलाई 2017 को संयुक्त राष्ट्र में सम्मेलन की ओर से अपनाया गया। इसके बाद 20 सितंबर 2017 को हस्ताक्षर के लिए मेज पर रखा गया। इसके बाद 22 जनवरी 2021 को इसे लागू किया गया।

    न्यूक्लियर हथियार को लेकर कई और संधि हैं मसलन Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty और Strategic Arms Limitation Talks संधि। 

    एनपीटी संधि की क्या हैं खामियां?

    एनपीटी में कई कमजोरियां हैं, जिनकी आलोचना होती है। संधि 11 अनुच्छेदों में विभाजित है, जिसमें एक अनुच्छेद यह भी है कि यदि कोई राज्य यह निर्णय लेता है कि असाधारण घटनाओं ने उसके देश के सर्वोच्च हितों को खतरे में डाला है, तो वह संधि से हट सकता है। किसी राज्य को अन्य संधि सदस्यों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को तीन महीने पहले इसकी सूचना देनी होगी।

    संधि में प्रस्ताव है कि परमाणु संपन्न देशों के निरस्त्रीकरण करना होगा। यानी अपने न्यूक्लियर हथियार को धीरे-धीरे नष्ट करना होगा। लेकिन इस संधि के तहत निरस्त्रीकरण में सुस्ती देखी गई है। संधि में परमाणु हथियारों वाले देशों से निरस्त्रीकरण की बात की गई है, लेकिन इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठे। कुछ देश शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के नाम पर तकनीक हासिल कर सकते हैं और बाद में इसे हथियार बनाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसी तरह के आरोप ईरान पर लगे रहे हैं।

    एनपीटी की समीक्षा हर पांच साल में होती है। इस दौरान हस्ताक्षर करने वाले देश संधि के अमल, इसके मकसद की प्रगति और चुनौतियों पर चर्चा करते हैं। आखिरी समीक्षा 2022 में हुई थी, और अगली समीक्षा 2027 में होने की उम्मीद है। ये समीक्षाएं अक्सर तनावपूर्ण होती हैं क्योंकि देशों के बीच परमाणु नीतियों पर मतभेद उभरते हैं।

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