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    IPC 144 vs CrPC 144: जानिए IPC की धारा 144 और CrPC की धारा 144 में क्या है अंतर, यहां पढ़ें सभी सवालों के जवाब

    By Shalini KumariEdited By: Shalini Kumari
    Updated: Tue, 07 Nov 2023 10:32 AM (IST)

    IPC 144 vs CrPC 144 देश में कहीं भी कानून व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का संदेह होता है तो प्रशासन धारा 144 लागू कर देती है। विधानसभा लोकसभा या पंचायत चुनाव हो या फिर किसी तरह की हिंसा का आभास होता है तो भी धारा 144 लागू कर दी जाती है। हालांकि CrPC और IPC की धारा 144 में काफी अंतर होता है और इसकी सजाएं भी अलग-अलग होती हैं।

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    IPC की धारा 144 और CrPC की धारा 144 में होता है अंतर

    ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। देश में हत्या, चोरी, डकैती और अन्य आपराधिक मामलों से निपटने और देश की सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। CrPC, IPC और CPC की धाराओं के तहत देश की कानून व्यवस्था को बनाकर रखा जाता है और किसी भी प्रकार के हिंसक कृत्यों का निवारण किया जाता है। इसमें अलग-अलग धाराओं के तहत अलग-अलग अपराधों का निपटारा, देश की सुरक्षा और न्याय की अपेक्षा की जाती है।

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    इस समय छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में और मिजोरम में भी धारा 144 लागू की गई है। हालांकि, इसे किसी प्रकार के आपराधिक कृत्य के कारण नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लागू किया गया है। पहले भी अक्सर खबरों में धारा 144 का जिक्र होते देखा गया है।

    हाल ही में मणिपुर में धारा 144 लागू की गई थी, जिसके जरिए कानून व्यवस्था बनाई गई थी। वहां पर इंटरनेट सेवा को भी कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया था। हालांकि, कई लोग अब भी CrPC की धारा 144 और IPC की धारा 144 को एक ही समझते हैं, लेकिन यह दोनों अलग हैं।

    वरिष्ठ वकील मनीष भदौरिया बताते हैं कि आईपीसी की धारा 144 मतलब, जहां घातक हथियारों के साथ भीड़ पहुंचने की सूचना हो, वहां आईपीसी की धारा 144 लगाई जाती है। उल्लंघन करने पर दो साल की सजा और जुर्माना का प्रावधान है। यह कोर्ट की ओर से लगाई जाती है।

    वहीं, सीआरपीसी 144 को जिला अधिकारी लागू करता है। यह धारा उस समय लगाई जाती है, जहां तनाव या भीड़ से कोई खतरा होने की आशंका हो। इसमें दो से ज्यादा लोगों को इक्ट्ठे होने पर रोक रहती है। जैसे कोरोना के समय लगाई गई थी।

    इस खबर में हम आपको CrPC की धारा 144 और IPC की धारा 144 के बारे में विस्तार से बताएंगे और सभी प्रश्नों का जवाब देंगे।

    अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

    अक्सर लोग CrPC की धारा 144 और IPC की धारा 144 को लेकर कंफ्यूज हो जाते हैं। दरअसल, जिस इलाके में सीआरपीसी की धारा 144 लागू कर दी जाती है, इस इलाके में चार या उससे ज्यादा लोग एक साथ इकट्ठा नहीं हो सकते हैं।

    भारतीय दंड संहिता की धारा 144 (Section 144) के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी घातक हथियार, जिससे किसी की मृत्यु हो सकती है, उसे लेकर किसी रैली/बैठक/प्रदर्शन में शामिल होगा, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाती है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, जो CrPC को रिप्लेस करेगी, उसमें 533 धाराएं होंगी, जिसमें 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 को रद्द कर दिया गया है। वहीं, भारतीय न्याय संहिता जो IPC को रिप्लेस करेगी, उसमें 511 धाराओं की जगह अब 356 धाराएं होगी, जिसकी 175 धाराओं में बदलाव किया गया है।

    दरअसल कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए धारा 144 लागू की जाती है। यदि प्रशासन को लगता है कि किसी गांव, शहर, जिले या किसी भी स्थान पर शांति व्यवस्था बिगड़ सकती है, तो उस जगह पर धारा 144 लागू कर दी जाती है।

    धारा 144 लागू होने के बाद इस क्षेत्र में चार या उससे अधिक लोगों की इकट्ठा होने की मनाही होती है। धारा 144 लागू होने के बाद उस इलाके में हथियारों के ले जाने पर भी पाबंदी होती है। सभी व्यक्तियों को उस अवधि तक अपने घरों के अंदर रहने का निर्देश दिया जाता है। धारा लगने के बाद जरूरत पड़ने पर इंटरनेट सेवाओं को बंद किया जा सकता है।

    धारा-144 को 2 महीने से ज्यादा समय तक नहीं लगाया जा सकता है। यदि राज्य सरकार को लगता है कि उसके राज्य में खतरा मंडरा रहा है, तो इसकी अवधि को बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, उस स्थिति में भी धारा-144 लगने की शुरुआती तारीख से छह महीने से ज्यादा समय तक इसे लागू नहीं रखा जा सकता है।

    धारा 144 लागू होने के बाद यदि कोई इसका उल्लंघन करता है, तो उसे दो साल की सजा या जुर्माना देना पड़ सकता है। हालांकि, कई मामलों में जुर्माना और जेल दोनों होने की संभावना रहती है।

    निर्धारित क्षेत्राधिकार के कार्यकारी मजिस्ट्रेट को आपातकालीन स्थिति होने पर धारा 144 के तहत आदेश जारी करने का अधिकार है।

    यदि किसी क्षेत्र में पुलिस और प्रशासन स्थिति को संभालने में विफल हो रही है और जनता अपने आक्रोश में हिंसक हो रही है, तो ऐसी परिस्थिति में धारा 144 लागू कर दी जाती है, ताकि कानून व्यवस्था को बहाल किया जा सके।

    यह भी आरोप लगाया गया है कि राज्य द्वारा इसे असहमति को रोकने और विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है। धारा 144 (1) के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट को प्रदान की गई शक्तियां बहुत व्यापक हैं। इसके तहत वह बिना किसी परिणाम की चिंता किए अपने अनुसार किसी भी आदेश को जारी कर सकता है।