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    चांद की उबड़-खाबड़ सतह पर उतरा चंद्रयान 3, आखिर कैसे बने इतने गहरे गड्ढे; जानें चांद से जुड़ी रोचक बातें

    By Shalini KumariEdited By: Shalini Kumari
    Updated: Wed, 23 Aug 2023 06:12 PM (IST)

    Moon Craters-Formation Chandrayaan-3 भारत का चंद्रयान-3 चांद पर सफलतापू्र्वक लैंड कर चुका है। इसरो द्वारा चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के साथ ही भारत ने इतिहास रच दिया है। लैंडर विक्रम ने इस उबड़-खाबड़ सतह पर उतरने की पूरी तैयारी से सफल रहा है। इस मिशन के बीच ही चंद्रमा को लेकर लोगों को मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।

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    चांद से जुड़ी कुछ रोचक तत्व कर देंगे हैरान

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भारत का चंद्रयान-3 चांद पर सफलतापू्र्वक लैंड कर चुका है। इसरो द्वारा चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के साथ ही भारत ने इतिहास रच दिया है। भारत पूरी दुनिया में चंद्रमा पर सफल लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया है, लेकिन पृथ्वी से चांद तक का सफर काफी कठिन रहा है। इस मिशन से भारत के साथ ही दुनिया के कई देशों को फायदा होगा।

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    लैंडर के उतरने के बाद दुनियाभर के वैज्ञानिकों को चांद से जुड़े कई सवालों के जवाब मिलने वाले हैं। दरअसल, यान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा, जो चांद का सबसे रहस्यमयी हिस्सा माना जाता है।  

    चंद्रयान की लैंडिंग को लेकर लोगों के मन में चांद को लेकर भी कई तरह के सवाल आने वाले हैं। चंद्रयान द्वारा भेजी गई चांद की लेटेस्ट तस्वीरों को देखने के बाद लोगों की रुचि और भी ज्यादा बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ दिनों में लोगों ने इंटरनेट पर चांद से जुड़े कई मजेदार सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है। इस खबर में हम आपको चांद से जुड़ी कुछ मजेदार रोचक जानकारी देंगे।

    गोल नहीं है चांद का आकार

    पूर्णिमा के दिन चांद बिल्कुल गोल नजर आता है, तो लोगों को लगता है कि चांद का आकार गोल है, लेकिन ऐसा नहीं है। असल में एक उपग्रह की तरह चांद का आकार भी अंडाकार है। ऐसे में जब आप चांद की ओर देख रहे होते हैं तो आपको इसका कुछ हिस्सा ही नजर आता है, जिसके कारण यह गोल नजर आता है। चांद का भार भी उसके ज्यामितीय केंद्र में नहीं है, यह अपने ज्यामितीय केंद्र से 1.2 मील दूर है।

    कभी पूरा नजर नहीं आता चांद

    आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन हम कभी भी पूरा चांद नहीं देख पाते हैं। हम चांद का अधिकतम 59 फीसद हिस्सा देख पाते हैं। इसके अलावा, 41 फीसद हिस्सा धरती से नजर ही नहीं आता। आप अंतरिक्ष में जाएं और 41 फीसद क्षेत्र में खड़े हो जाएं, तो आपको धरती दिखाई नहीं देगी।

    पृथ्वी की रफ्तार को प्रभावित कर रहा चंद्रमा

    जब चंद्रमा पृथ्वी के करीब होता है, तो इसे पेरिग्री कहते हैं। इस दौरान ज्वार-भाटा की गति सामान्य से काफी धीमी हो जाती है। पृथ्वी की घूर्णन शक्ति भी इससे प्रभावित होती है और जिसकी वजह से हर एक शताब्दी में 1.5 मिलिसेकंड धीमी होती जा रही है।

    चांद के क्रेटर का नाम कौन तय करता है?

    चांद के गड्ढों के साथ ही किसी भी खगोलीय चीज का नामकरण इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन करता है। दरअसल, चंद्रमा के क्रेटर्स का नाम जाने माने वैज्ञानिकों, कलाकारों या अन्वेषकों के नाम पर रखा जाता है।  

    चंद्रमा पांचवां सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है

    चंद्रमा हमारे सौर मंडल का पांचवां सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है। एक प्रचलित सिद्धांत यह है कि एक समय पहले चंद्रमा, पृथ्वी का हिस्सा था और इसका निर्माण एक ऐसे टुकड़े से हुआ था, जो पृथ्वी से एक विशाल वस्तु टकराने के कारण टूट गया था।

    चांद पर कैसे बने गड्ढे?

    चांद पर मौजूद इंपैक्ट क्रेटर यानी यह गहरे गड्ढे अरबों साल पहले आकाशीय पिंडों की टक्कर से बने हैं। हालांकि, इसको लेकर लोगों के मन में बहुत-सी कहानियां हैं। इन गड्ढों की वजह से चांद की सतह काफी ज्यादा उबड़-खाबड़ दिखती है।

    चांद का रहस्यमयी हिस्सा है दक्षिणी ध्रुव

    चंद्रयान 3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, जिसे चांद का सबसे रहस्यमयी हिस्सा कहा जाता है। नासा के मुताबिक, इस क्षेत्र में ऐसे कई गहरे गड्ढे और उबड़-खाबड़ सतह है, जिस पर अरबों सालों से रोशनी नहीं पड़ी है। यहां तक कि माना जाता है कि इस तरफ बर्फ भी जमा हुआ है।

    पृथ्वी की चांद का रहता है एक ही चेहरा

    हम हमेशा पृथ्वी से चंद्रमा का एक ही चेहरा देखते हैं। इसका कारण यह है कि चंद्रमा पृथ्वी के साथ समकालिक घूर्णन में है। इसके निकट का भाग बड़े अंधेरे मैदानों को दिखाता है, जो चमकीले प्राचीन क्रिस्टल हाइलैंड्स और प्रमुख प्रभाव क्रेटर के बीच की जगहों को भरते हैं।

    चंद्रमा पर अब तक चले केवल 12 लोग

    मानव जाति के इतिहास में केवल 12 लोग ही हैं, जो चांद पर चले हैं। इसकी शुरुआत 1969 में अपोलो 11 मिशन के साथ हुई थी। इस मिशन के तहत नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर गए थे और 1972 में अपोलो 17 मिशन पर जीन सर्नन के साथ समाप्त हुई। गौरतलब है कि यह सभी लोग यूएसए से थे।

    चंद्रमा का होता है अपना भूकंप

    पृथ्वी की तरह, चंद्रमा की भी अपनी भूकंप या कंपन होती है। दरअसल, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण होते हैं। इस कंपन को मूनक्वेक कहा जाता है। चंद्र अंतरिक्ष यात्रियों ने चंद्रमा पर अपनी यात्रा के दौरान भूकंपमापी का उपयोग किया, जिससे इस बात की पुष्टि हो गई। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी की तरह चंद्रमा का कोर भी पिघला हुआ है।