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    चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करता भारत, डिजिटल तकनीक का है मजबूत आधार

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Wed, 29 Jun 2022 12:05 PM (IST)

    मानव ने जिस विश्व की रचना कर ली है उसमें औद्योगिक क्रांति का स्थान और महत्व अब अपरिहार्य हो चला है। चौथी औद्योगिक क्रांति डिजिटल टेक्नोलाजी के आधार पर ही आकार लेगी। इसमें इंटरनेट अपनी महती भूमिका निभाएगा।

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    चौथी औद्योगिक क्रांति का मुख्य आधार होगा इंटरनेट। प्रतीकात्मक

    पीयूष द्विवेदी। बीते दिनों जी-7 देशों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जर्मनी पहुंचे थे। वहां म्यूनिख में उन्होंने प्रवासी भारतीयों के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि ‘आज 21वीं सदी का भारत, चौथी औद्योगिक क्रांति में, इंडस्ट्री 4.0 में, पीछे रहने वालों में नहीं, बल्कि इसका नेतृत्व करने वालों में से एक है। सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र हो या या डिजिटल टेक्नोलाजी का, भारत हर मोर्चे पर चमक रहा है।’ जाहिर है प्रधानमंत्री ने इसके माध्यम से विश्व को यही संदेश दिया है कि आज का नया भारत इतना सक्षम है कि विश्व में घटित हो रही चौथी औद्योगिक क्रांति की प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभाने को तैयार है। विश्व आर्थिक मंच की 2016 में हुई बैठक की थीम ‘उद्योग 4.0’ रखी गई थी। उसके बाद से विश्व में चौथी औद्योगिक क्रांति का विचार आकार लेने लगा था।

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    फिर वर्ष 2018 में विश्व आर्थिक मंच द्वारा चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए नई दिल्ली में एक केंद्र की शुरुआत की गई। उस वक्त पीएम मोदी ने पिछली औद्योगिक क्रांतियों का जिक्र करते हुए कहा था कि ‘जब पहली औद्योगिक क्रांति हुई तो भारत गुलाम था। जब दूसरी क्रांति हुई तब भी भारत गुलाम था। जब तीसरी औद्योगिक क्रांति हुई तो भारत स्वतंत्रता के बाद मिली चुनौतियों से ही निपटने में संघर्ष कर रहा था, लेकिन अब 21वीं सदी का भारत बदल चुका है। मैं मानता हूं कि चौथी औद्योगिक क्रांति में भारत का योगदान, पूरे विश्व को चौंकाने वाला होगा।’ तब सैन फ्रांसिस्को, टोक्यो और बीजिंग के बाद दुनिया का यह चौथा औद्योगिक क्रांति केंद्र था, जिसकी शुरुआत भारत में हुई थी। हालांकि आज इन केंद्रों की संख्या बढ़कर पंद्रह हो गई है। यह दर्शाता है कि दुनिया किस तेजी से चौथी औद्योगिक क्रांति की दिशा में बढ़ रही है।

    औद्योगिक क्रांतियों का इतिहास : आज जब दुनिया चौथी औद्योगिक क्रांति की दिशा में तेजी से अग्रसर है, तब एकबार पीछे मुड़कर यह देखना समीचीन लगता है कि पिछली तीन औद्योगिक क्रांतियां क्या थीं और उन्होंने दुनिया को क्या दिया। आज जैसा तकनीक आश्रित जीवन हम जी रहे हैं और छोटे-बड़े हर काम मशीनों की सहायता से होने लगे हैं, इसके मूल में पिछली औद्योगिक क्रांतियों की ही भूमिका है। इस रूप में औद्योगिक क्रांतियों को मानव सभ्यता के विकास के विभिन्न पड़ावों के रूप में भी परिभाषित करना उचित होगा। पहली औद्योगिक क्रांति की शुरुआत 18वीं शताब्दी में ब्रिटेन से हुई। यह क्रांति भांप इंजन से चलने वाली मशीनरी के विकास पर आधारित थी। 1765 में जेम्स वाट द्वारा भाप इंजन के आविष्कार ने मनुष्यों के लिए काम करने के लिए भारी मशीनरी प्राप्त करना आसान बना दिया। इस आविष्कार ने यातायात और परिवहन के क्षेत्र में बड़े बदलाव का काम किया। भाप इंजन के आविष्कार ने कारखानों में बिजली का उत्पादन करना संभव बना दिया। कपड़ा उद्योग का मशीनीकरण होने से उसे अभूतपूर्व गति मिली। कहना गलत नहीं होगा कि इस पहली औद्योगिक क्रांति ने आदमी को मशीन की असली ताकत का अहसास करा दिया। विडंबना यह है कि इस औद्योगिक क्रांति से अर्जित शक्ति और साधनों का काफी कुछ उपयोग ब्रिटेन ने इन साधनों से वंचित देशों का शोषण करने में भी खूब किया।

    दूसरी औद्योगिक क्रांति का कालखंड 19वीं सदी के उत्तरार्ध से शुरू होकर द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ यानी 1914 तक माना जाता है। इसका केंद्र अमेरिका बना। तेल, बिजली और स्टील इस क्रांति के मुख्य स्तंभ कहे जा सकते हैं, जिनपर आधारित अनेक आविष्कार इस दौर में हुए। नई तकनीकी प्रगति के रूप में सब कुछ बड़े पैमाने पर बढ़ता गया और दहन इंजन प्रणाली के विकास ने ऊर्जा के नए स्नेतों-बिजली, गैस और तेल के उपयोग को चलन में लाया। तकनीकी प्रगति में राइट ट्रांसपोर्टर्स, आटोमोबाइल, इलेक्टिक रेलवे और बायलर-पावर्ड बोट द्वारा निर्मित हवाई जहाज जैसी नई परिवहन प्रणालियां शामिल थीं। संचार के क्षेत्र में सैमुअल मोर्स द्वारा टेलीग्राफ, अलेक्जेंडर ग्राहम बेल द्वारा टेलीफोन, ल्यूमियर भाइयों द्वारा विकसित सिनेमैटोग्राफी (बिना ध्वनि के चित्र का यंत्र) और रेडियो आदि आविष्कार हुए। वस्तुत: यह औद्योगिक क्रांति, पहली का ही एक क्रमिक विकास थी, लेकिन इसने दुनिया को जो कुछ दिया उसका महत्व आज भी बना हुआ है। तीसरी औद्योगिक क्रांति का आरंभ बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में माना जाता है। इलेक्ट्रानिक्स और कंप्यूटर का उपयोग, इंटरनेट का आविष्कार और परमाणु ऊर्जा के माध्यम से स्वचालन और डिजिटलीकरण का प्रसार औद्योगिक क्रांति के इस तीसरे चरण की विशेषता है। औद्योगिक क्रांति का यह चरण अब भी जारी है।

    औद्योगिक क्रांतियों के प्रभाव : औद्योगिक क्रांतियों ने मानव जीवन के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि सभी पहलुओं को सकारात्मक-नकारात्मक दोनों रूपों में प्रभावित किया है। गौर करें तो औद्योगिक क्रांतियों का इतिहास मुख्यत: उत्पादन उपक्रमों के अधिकाधिक मशीनीकृत होने का ही इतिहास है। नि:संदेह इससे उत्पादन प्रक्रिया सरल हुई, वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ी और लोगों के जीवनस्तर में बेहतरी आई, लेकिन इसके बरक्स ही मानव श्रम का महत्व भी लगातार कम हुआ। आदमी का काम मशीने करने लगीं। स्वतंत्र कारीगर कारखानों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके, परिणामत: कुटीर उद्योग समाप्त हो गए। वहीं बड़े-बड़े कृषि फार्मो की स्थापना के कारण छोटे किसानों को रोजगार की तलाश में गांवों से शहरों की ओर जाना पड़ा। परिणामस्वरूप बेरोजगारी की समस्या आज दुनिया के हर देश के सामने कमोबेश चुनौती बनकर खड़ी है। आर्थिक असमानता की खाई भी चौड़ी होती जा रही।

    औद्योगिक क्रांति का एक बड़ा लाभ चिकित्सा क्षेत्र में नई खोजों के परिणामस्वरूप मृत्युदर में कमी आने को अवश्य माना जा सकता है, लेकिन इसके साथ ही मशीनों से संचालित उद्योगों तथा ईंधन चालित बेतहाशा वाहनों द्वारा पैदा प्रदूषण ने लोगों के बीमार होने की गुंजाइश को भी बढ़ाया है। पर्यावरण की बर्बादी तो इस कदर हुई है कि आज विश्व के समक्ष जलवायु संकट के रूप में एक विकट समस्या उपस्थित हो गई है। उद्योगीकरण ने शहरीकरण को बढ़ावा दिया, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि हुई।

    जाहिर है, औद्योगिक क्रांति के अच्छे-बुरे दोनों पहलू रहे हैं, लेकिन तुलनात्मक रूप से देखें तो यह कहना ही होगा कि इसके लाभ अधिक हैं। वैसे भी, मानव ने जिस विश्व की रचना कर ली है, उसमें औद्योगिक क्रांति का स्थान और महत्व अब अपरिहार्य हो चला है। औद्योगिक क्रांति से यदि समस्याएं उत्पन्न होंगी तो समाधान भी इसी से निकलेगा। हां, आज जब चौथी औद्योगिक क्रांति की बात हो रही तब तीन-तीन औद्योगिक क्रांतियों की प्रक्रिया से गुजरते हुए परिपक्व हो चुके विश्व समुदाय को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि इस बार औद्योगिक क्रांति में हानिकर पक्ष असर न दिखा पाएं और यह क्रांति हर प्रकार से विश्व के लिए अधिकाधिक रूप से लाभकारी ही साबित हो। चौथी औद्योगिक क्रांति के जितने कम दुष्प्रभाव होंगे, विश्व के लिए उतना ही बेहतर होगा।

    पिछली तीनों औद्योगिक क्रांतियों के वक्त भारत के हालात अलग थे। वह इनमें कोई योगदान देने और किसी प्रकार की भूमिका का निर्वाह करने की स्थिति में नहीं था, पर आज स्थिति भिन्न है। आज का भारत परमाणु शक्ति संपन्न होकर, न केवल राष्ट्रीय स्तर पर हर प्रकार से सशक्त और समर्थ है, अपितु विश्व पटल पर भी एक प्रतिष्ठित स्थान रखता है। विश्व की सर्वाधिक युवा आबादी की एक अतिरिक्त क्षमता भी हमारे पास है। ऐसे में यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह कह रहे हैं कि 21वीं सदी की औद्योगिक क्रांति में भारत की भूमिका अग्रणी रहेगी तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है।

    चौथी औद्योगिक क्रांति सूचना प्रौद्योगिकी के आधार पर ही आकार लेगी और भारत इस क्षेत्र में अग्रणी है। यह क्रांति मानव जीवन की विकास यात्र को ‘स्मार्ट लाइफ’ की ओर ले जाने का माध्यम बनेगी। नि:संदेह चौथी औद्योगिक क्रांति का मुख्य उपकरण इंटरनेट होगा। इस मामले में भारत की स्थिति देखें तो दुनिया में सर्वाधिक मोबाइल डाटा की खपत भारत में है तथा सबसे सस्ता डाटा भी यहीं उपलब्ध है। इसके साथ ही हर वर्ष 30 करोड़ उत्पादन के साथ भारत मोबाइल का भी सबसे बड़ा उत्पादक बन चुका है। देश की पंचायतों को तेजी से आप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जोड़ने का काम भी जारी है। अब तक 1,80,992 ग्राम पंचायतें आप्टिकल फाइबर नेटवर्क से जुड़ चुकी हैं।

    इतना ही नहीं, बीते वर्षो में स्टार्टअप के लिहाज से भी देश का माहौल बदला है। स्टार्टअप इंडिया योजना की शुरुआत के बाद मोदी सरकार के प्रयासों और प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप देश में तेजी से स्टार्टअप स्थापित हो रहे हैं। अब तक 72 हजार से अधिक स्टार्टअप पंजीकृत हो चुके हैं। वहीं इनमें से 100 से अधिक स्टार्टअप एक अरब डालर से अधिक का मूल्यांकन हासिल कर यूनिकार्न भी बन चुके हैं। पिछले चार वर्षो में (वित्त वर्ष 2017-18 के बाद से) यह संख्या तेजी से बढ़ रही है और हर साल अतिरिक्त यूनिकार्न की संख्या में सालाना आधार पर 66 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

    अब तक आइटी सेवाओं से 13 प्रतिशत, स्वास्थ्य सेवा एवं जीवन विज्ञान से नौ प्रतिशत, शिक्षा से सात प्रतिशत, पेशेवर एवं वाणिज्यिक सेवाओं से पांच प्रतिशत, कृषि से पांच प्रतिशत और खाद्य एवं पेय पदार्थो से पांच प्रतिशत के साथ 56 विविध क्षेत्रों में विभिन्न समस्याओं का समाधान करने वाले अलग-अलग स्टार्टअप को मान्यता दी गई है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि देश में नवोन्मेष की भावना बढ़ती जा रही है। रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी भारत सतत आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। कोविड काल में देश तेजी से स्वदेशी टीके का निर्माण करने में भी कामयाब रहा है। ये सब बातें यही दर्शाती हैं कि भारत अब अपनी पूरी क्षमता के साथ चौथी औद्योगिक क्रांति के कारवां को आगे बढ़ाने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

    [शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय]

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