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International Yoga Day 2020: शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अपनाएं ये योगासन

International Yoga Day 2020 योग के आठ अंग है और उनमें से एक आसन है। आसन की परिभाषा है - एक ऐसी मुद्रा जो स्थिर और सुखद हो।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 20 Jun 2020 08:10 AM (IST)Updated: Sat, 20 Jun 2020 08:10 AM (IST)
International Yoga Day 2020: शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अपनाएं ये योगासन
International Yoga Day 2020: शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अपनाएं ये योगासन

नई दिल्ली, जेएनएन। Boost Your Immune System with Pranayama योग के अनेक लाभ हैं। इसमें सबसे प्रमुख है- अच्छा स्वास्थ्य। योग हमें तनावमुक्त जीवन जीने की तकनीक प्रदान करता है। योग सिर्फ व्यायाम नहीं है, वह हरेक परिस्थिति में आपको कुशलता से कर्म करना सिखाता है। तनावपूर्ण परिस्थितियों के रहते हुए भी आपकी मुस्कान बनाए रखना योग का उद्देश्य है। योगाभ्यास आपको सर्वोच्च सत्य के ज्ञान के लिए तैयार करता है। आप दुखी हैं, तो यह आपको दुख से बाहर ले जाता है। आप बहुत बेचैन हैं, तो योग आपके अंदर धैर्य लाता है। यह आप में कार्यकुशलता लाता है।

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हमारे कर्म ही हमारे सुख-दु:ख के कारण होते हैं और जब हमारे कर्म कुशल होते हैं, तब वे कर्म हमें सुख देते हैं। व्यक्ति को जीवन में अधिक जिम्मेदार बनाने में भी योग सहायक है। इसे कर्मयोग कहा जाता है। योग आपमें और अधिक ऊर्जा और उत्साह पैदा करता है। यदि आपके पास पर्याप्त उत्साह और ऊर्जा है तो आप निश्चित रूप से अधिक जिम्मेदारी लेते हैं और कभी उसका भार महसूस नहीं करते।

प्राणायाम क्या है: प्राणायाम शब्द प्राण+आयाम से मिलकर बना है। प्राण का आशय जीवन से है और आयाम से मतलब आदान-प्रदान करना है अर्थात् जीवन के लिए सांसों का आदान-प्रदान आवश्यक है।

कपालभाति: कपालभाति में कमर सीधी रखें और सिद्धासन में बैठकर दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें। श्वांस को नाक से तेजी से बाहर छोड़ें व पेट को अंदर की ओर खींचें। ध्यान रखें कि श्वांस लेनी नहीं है, सिर्फ छोड़नी है। इससे श्वांस स्वत: ही अंदर चली जाएगी।

लाभ: शरीर से टॉक्सिंस को बाहर निकालने में मदद करता है। अस्थमा, वजन कम करने, कब्ज, एसिडिटी, पेट संबंधी रोग दूर होते हैं। इम्युनिटी बढ़ाता है और श्वसन मार्ग को साफ करता है। मस्तिष्क को सक्रिय करने में मदद करता है।

भस्त्रिका : भस्त्रिका का शाब्दिक अर्थ धौंकनी है। धौंकनी की तरह आवाज करते हुए शुद्ध वायु को अंदर लिया जाता है और अशुद्ध वायु को बाहर फेंका जाता है। सिद्धासन में बैठकर गर्दन और रीढ को सीधा रखें। तेज गति से श्वांस लें और छोड़ें। ध्यान रखें कि श्वांस लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वांस छोड़ते समय पेट सिकुड़ना चाहिए।

लाभ: फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। वात, पित्त, कफ के दोषों को दूर करता है। मोटापा, दमा और श्वांस रोग दूर होते हैं। स्नायु रोगों में भी लाभकारी है।

योग के आठ अंग है और उनमें से एक आसन है। आसन की परिभाषा है - एक ऐसी मुद्रा, जो स्थिर और सुखद हो। योग-आसन करते समय आपको आराम महसूस होना चाहिए। आराम का अर्थ यह है कि आप शरीर को महसूस नहीं करते। आप किसी टेढ़ी-मेढ़ी स्थिति में बैठे हैं तो शरीर के दर्द पर आपका ध्यान चला जाता है। शुरुआत में आसन की असुविधा पर ध्यान रहता है, लेकिन अगर आप अपने मन को उससे गुजरने देते हैं, तो आप पाएंगे कि कुछ ही मिनटों में असुविधा गायब हो गई और आपको शरीर का आभास ही नहीं रहा। आसन की स्थिति में आकर सभी प्रयास छोड़ दीजिए। फिर अनंतता आप में समाहित हो जाती है। इसलिए ध्यान रखें कि प्रत्येक आसन का लक्ष्य सिर्फ सही स्थिति बनाना नहीं है, बल्कि अपने भीतर में एक विस्तार का अनुभव करना है। यह थोड़े ही अभ्यास के साथ आपके अनुभव में आने लगता है।

योग की एक अन्य परिभाषा है- दृश्य से द्रष्टा भाव में आना। बहिर्मुखी से अंतर्मुखी बनना। पहले, भौतिक शरीर से अपने ध्यान को मन की ओर ले जाना। मन में उत्पन्न विचारों को साक्षी भाव से देखने से वे भी दृश्य बन जाते हैं। हम उस तत्व तक पहुंच जाते हैं, जो सब कुछ देख रहा है। यही योग है। जब भी आप जीवन में खुशी, उत्साह, परमानंद और सुख का अनुभव करते हैं तो जाने-अनजाने में आप उस सर्वद्रष्टा की प्रकृति का ही अनुभव कर रहे होते हैं। योग के माध्यम से हम सहजता से उसी परमानंद का अनुभव करते हैं। योग के एक और अंग ‘नियम’ की पहली व्यक्तिगत नैतिकता स्वच्छता या शौच है। महर्षि पतंजलि के योग सूत्र में वर्णित है कि योगी के जीवन का महत्वपूर्ण आधार शुद्धता और स्वच्छता है। शौच का गहन अर्थ अनावश्यक शारीरिक संपर्क और अंतरंगता से बचना भी है। स्वस्थ और, रसायन-मुक्त भोजन खाने का आत्म-अनुशासन हमें भीतर से स्वच्छ रखता है। आसन, प्राणायाम और ध्यान को जीवनशैली का अभिन्न अंग बनाना रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने में उपयोगी होता है।

इस समय हम वायरस को प्रसारित करने की संभावनाओं को कम करने के लिए खुद को अलग कर सकते हैं। घर के भीतर रहें, यात्रा और समारोहों में जाने से बचें। मैं सामूहिक प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों से बचने की सलाह दूंगा। ध्यान और मानसिक प्रार्थनाएं, अनुष्ठानों की तुलना में अधिक श्रेष्ठ और प्रभावी हैं। आराम और गतिविधि के बीच संतुलन बनाने का समय भी है। जो हमेशा आराम में रहता है, वह प्रगति नहीं करता और जो हमेशा गतिविधि में रहता है, वह गहरे आराम का आनंद लेने से चूक जाता है।


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