अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: 56 साल पहले थीं 1100 से अधिक भाषाएं, अब रह गई 880
चिंता की बात है कि मातृभाषा व बोलियां भारत में ही नहीं, विश्व में भी सिमट रही हैं।
नई दिल्ली। भारत ही नहीं, विश्व में अंग्रेजी और कुछ दूसरी भाषाओं के ब़़ढते वर्चस्व के कारण मातृभाषाओं और बोलियों का दायरा सिमटता जा रहा है। ऐसी स्थिति तब है जब भाषा विज्ञानी और शिक्षाविद साबित कर चुके हैं कि मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने से बच्चा तेजी से सीखता है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज में प्राध्यापक डॉ. गंगा सहाय मीणा का कहना है कि यह चिंता की बात है कि मातृभाषा व बोलियां भारत में ही नहीं, विश्व में भी सिमट रही हैं। भूमंडलीकरण का एक ब़़डा असर भाषाओं पर भी प़़डा है। वडोदरा के भाषा रिसर्च एंड पब्लिकेशन सेंटर के सर्वे में यह तथ्य सामने आए हैं कि पिछले पांच दशकों में भारत में बोली जाने वाली 220 से अधिक बोलियां गायब हो गई हैं। 1961 की जनगणना के अनुसार भारत में 1100 से अधिक भाषाएं थीं, जिनकी संख्या अब 880 से भी कम रह गई हैं।
यूनेस्को द्वारा बनाए गए इंटरेक्टिव एटलस में दुनिया की लगभग छह हजार भाषाओं में से 2471 खतरे में हैं। इस मानचित्रावली के अनुसार भारत की कुल 197 भाषा व बोलियां खतरे में हैं। इनमें से 81 लुप्त होने के कगार पर हैं, 63 पर लुप्त होने का गंभीर खतरा है, छह बहुत गंभीर खतरे में हैं, 42 लुप्तप्राय हैं और पांच भाषाएं हाल ही में लुप्त हो चुकी हैं।
डॉ. मीणा बताते हैं कि हम गौर करेंगे तो पाएंगे कि जो भाषाएं हाल ही में लुप्त हुई हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं, उनको बोलने वाले समुदाय भी लुप्त हो रहे हैं। केंद्रीय हिंदी निदेशालय और राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के निदेशक प्रो. रवि टेकचंदानी का कहना है कि भारतीय भाषाओं को प़़ढाने के लिए अंग्रेजी क्यों माध्यम बने, कोई भारतीय भाषा क्यों नहीं। यदि संस्कृत, गुजराती या सिंधी पढ़ानी हो तो किसी भारतीय भाषा में क्यों न पढ़ाया जाए। इससे मातृभाषाओं का संरक्षण होगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. मोहन का कहना है कि हिंदी के साथ जु़ड़कर अन्य भाषाएं समृद्ध हुई हैं। इसलिए मनाया जाता है विश्व मातृभाषा दिवस। विश्व में संस्कृति व भाषाई विविधता तथा बहुभाषिकता को ब़़ढावा देने के लिए 21 फरवरी को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। इसकी प्रथम घोषणा 17 नवंबर 1999 को यूनेस्को द्वारा की गई। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा औपचारिक रूप से प्रस्ताव पारित कर 2008 में इसे मान्यता दी गई।
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