International E-Waste Day: इलेक्ट्रानिक उपकरणों की सुगमता से मरम्मत होने से उपभोक्ताओं को होगा लाभ
International E-Waste Day 2022 आज अधिकांश इलेक्ट्रानिक उपकरण इस प्रकार बनाए जा रहे हैं जिससे उनकी मरम्मत मुश्किल से हो पाती है ऐसे में राइट टू रिपेयर कानून की महत्ता बढ़ जाती है। आज ई-वेस्ट दिवस के अवसर पर इस बारे में चिंतन किया जाना चाहिए।
अरविंद मिश्रा। वर्तमान के सूचना और प्रौद्योगिकी युग में इलेक्ट्रानिक उपकरण हमारी जीवन रेखा की तरह हैं। मोबाइल से लेकर फ्रीज और कार में आई छोटी सी तकनीकी गड़बड़ी कई बार आर्थिक और मानसिक तनाव का कारक बन जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह आपके डिवाइस में आई किसी भी तकनीकी गड़बड़ी को दूर करने में खर्च होने वाली रहस्यमयी लागत और मानसिक परेशानी है।
आपके घर में न जाने कितने इलेक्ट्रानिक उपकरण केवल इसलिए ई-कचरे में तब्दील हो रहे हैं, क्योंकि उनकी मरम्मत की लागत से कहीं सुविधाजनक नया उत्पाद खरीदना है। यूरोप और अमेरिका में इसी कारण से पिछले एक दशक से ‘राइट टू रिपेयर’ सार्वजनिक बहस के केंद्र में है। अमेरिका, ब्रिटेन, ईयू से लेकर आस्ट्रेलिया में राइट टू रिपेयर ने उपभोक्ता हितों को नई शक्ल दी है। ब्रिटेन ने कानून बनाकर सभी तरह के इलेक्ट्रानिक उपकरणों को राइट टू रिपेयर में शामिल किया गया है। वहां कंपनियों के लिए उपभोक्ताओं के साथ स्पेयर पार्ट शेयर करना अनिवार्य कर दिया गया है। ग्राहक अपनी इच्छानुसार किसी भी दुकान में उसकी मरम्मत करवा सकते हैं।
जाब मार्केट की आवश्यकता
यूरोपीय यूनियन में राइट टू रिपेयर की वजह से हर ब्रांड प्रोफेशनल रिपेयरमैन को 10 साल तक प्रोडक्ट से जुड़े कंपोनेंट की सप्लाई के लिए बाध्य हैं। आस्ट्रेलिया में तो बाकायदा रिपेयर कैफे खोले गए हैं, जहां वालंटियर अपने कौशल से लोगों को तकनीकी सेवाएं निशुल्क प्रदान करते हैं। लोकल सर्कल्स द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार हर दूसरे घर में औसतन पांच साल पुरानी कोई न कोई डिवाइस कचरे में तब्दील हो रही है, क्योंकि उसकी मरम्मत लागत बहुत अधिक है।
सर्वे में 43 प्रतिशत लोगों के पास रिपेयरिंग न कराए जाने की वजह से पांच साल पुराना कोई न कोई डेस्कटाप, लैपटाप, स्मार्टफोन, प्रिंटर, टेबलेट, वाशिंग मशीन, फ्रीज, पंखे, मिक्सर आदि मौजूद हैं। आटोमोबाइल इंडस्ट्री का हाल और भी बुरा है। वाहन की सर्विसिंग और ओरिजनल स्पेयर पार्ट के नाम पर ग्राहक को सर्विस सेंटर से लेकर डीलरशिप के चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ता है। उपभोक्ता अधिकारों, पर्यावरणीय समाधान और जाब मार्केट की आवश्यकताओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने भी राइट टू रिपेयर कानून की ओर कदम बढ़ाया है।
राइट टू रिपेयर कानून
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कमेटी गठित की है, जो इस कानून का प्रारूप तैयार कर रहा है। इस कानून के अस्तित्व में आते ही निर्माता को उत्पाद से जुड़ी जानकारियां ग्राहकों के साथ साझा करना अनिवार्य होगा। यदि राइट टू रिपेयर अस्तित्व में आ जाता है तो कंपनियों को ग्राहकों के साथ उत्पाद से जुड़े सभी मैनुअल, रिपेयरिंग माड्यूल और साफ्टवेयर अपडेट साझा करना होगा। इससे मरम्मत उद्योग का पूरा इकोसिस्टम बदल जाएगा। ऐसा होने से स्थानीय मैकेनिक और मरम्मत करने वाले दुकानों पर कामगारों की कार्यकुशलता बढ़ सकती है जिससे ओरिजनल उपकरण निर्माताओं के एकाधिकार की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।
भारत के लिए इस कानून की महत्ता दुनिया के किसी भी देश की तुलना में कहीं ज्यादा है। देश में शायद ही कोई गली-मोहल्ला हो, जहां मरम्मत की दुकान न हो। इससे हम असंगठित क्षेत्र के कार्यबल को नई पहचान दे सकते हैं। यह उपभोक्ताओं के साथ स्थानीय कारोबारियों को मजबूती देगा। अभी स्थानीय मरम्मत की दुकानों की पहुंच गुणवत्तापूर्ण और ओरिजनल पार्ट्स तक न होने के कारण उन्हें लोग आशंका भरी नजर से देखते हैं। स्थानीय बाजार में ओरिजनल स्पेयर पार्ट की आपूर्ति बढ़ती है तो इससे ‘मेक इन इंडिया’ को प्रोत्साहन मिलेगा। राइट टू रिपेयर के दायरे में मोबाइल फोन, टेबलेट, इलेक्ट्रानिक, आटोमोबाइल, मेडिकल डिवाइस से लेकर कृषि उपकरण समेत अनेक वस्तुएं आएंगी। यह कार्बन फुटप्रिंट को कमजोर करने में भी मददगार होगा। ई-डिवाइस की रिपेयरिंग सुविधानजक व लागत सक्षम होने का सीधा असर ई-कचरे की कमी के रूप में सामने होगा।
ओरिजनल कंपोनेंट की कमी दूर होने से इलेक्ट्रानिक उत्पादों को अधिक टिकाऊ बनाया जा सकता है। निश्चित तौर पर इससे ई-वेस्ट का उत्पाद कम होगा। वैसे राइट टू रिपेयर पर कंपनियां इतनी आसानी से राजी होंगी, इसकी उम्मीद कम है। कंपनियों की ओर से निजता, साइबर सुरक्षा और ब्रांड से जुड़ी आशंकाएं जाहिर की गई हैं। ऐसे में उपभोक्ताओं और निर्माताओं के बीच भरोसे की बहाली के लिए दोनों की आशंकाओं को दूर करना होगा। कानून में इस बात के पुख्ता उपाय करने होंगे ताकि ब्रांड और खुले बाजार का प्रतिस्पर्धी माहौल बिगड़ने के बजाय उसे और मजबूती मिले। राइट टू रिपेयर कानून को केवल उपभोक्ताओं के हितों के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है, जबकि यह इलेक्ट्रानिक उत्पादों से लेकर जलवायु और रोजगार बाजार की वहनीयता को भी टिकाऊ बनाएगा। आज ई-वेस्ट दिवस के अवसर पर इस बारे में चिंतन किया जाना चाहिए।
[लोक नीति विशेषज्ञ]
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