रूट परमिट का उल्लंघन होने पर भी बीमा कंपनी को मुआवजा देना होगा, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रूट परमिट का उल्लंघन होने पर भी बीमा कंपनी को मुआवजा देना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि दुर्घटना होने पर बीमा कंपनियां सिर्फ इसलिए मुआवजा देने से इनकार नहीं कर सकतीं कि वाहन ने रूट परमिट का उल्लंघन किया था। कोर्ट ने बीमा कंपनी को मुआवजा अदा करने और फिर उसकी वसूली दुर्घटना वाली बस के मालिक से करने के कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है।

सुप्रीम कोर्ट। (पीटीआई)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटना के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि रूट परमिट का उल्लंघन होने पर भी बीमा कंपनी को मुआवजा देना होगा। शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि बीमा कंपनियां दुर्घटना होने पर सिर्फ इसलिए मुआवजा देने से इनकार नहीं कर सकतीं कि संबंधित वाहन यानी बस ने रूट परमिट का उल्लंघन किया था और दुर्घटना रूट से परिवर्तित मार्ग पर हुई थी।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सिर्फ दुर्घटना परमिट की सीमा से बाहर हुई है इसलिए बीमा पालिसी के बाहर है, कहना न्याय की भावना के खिलाफ होगा क्योंकि दुर्घटना में पीड़ित या उसके आश्रितों की कोई गलती नहीं है।
बीमा कंपनी को निश्चति रूप से मुआवजे का भुगतान करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनी को मुआवजा अदा करने और फिर उसकी वसूली दुर्घटना वाली बस के मालिक से करने के कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है।
कोर्ट ने बीमा कंपनी की अपील खारिज की
न्यायमूर्ति संजय करोल और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल बस मालिक और बीमा कंपनी की अपील खारिज कर दी है। शीर्ष अदालत ने बीमा कंपनी को पीडि़त परिवार को 3184000 रुपये मुआवजा देने और फिर इस रकम को बस मालिक से वसूलने का अधिकार देने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है।
पीठ की ओर से जस्टिस संजय करोल ने फैसला लिखा है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन बीमा के सामाजिक उद्देश्य पर जोर देते हुए कहा कि वर्तमान परिपेक्ष्य में बीमा पालिसी का उद्देश्य किसी अप्रत्याशित दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के होने पर मालिक या संचालक को प्रत्यक्ष जिम्मेदारी से बचाना है।
बीमा कंपनी को मुआवजे का भुगतान करना चाहिए- कोर्ट
पीठ ने कहा कि सिर्फ दुर्घटना परमिट की सीमा से बाहर हुई है इसलिए बीमा पालिसी के बाहर है, कहना न्याय की भावना के खिलाफ होगा क्योंकि दुर्घटना में पीड़ित या उसके आश्रितों की कोई गलती नहीं है। बीमा कंपनी को निश्चित रूप से मुआवजे का भुगतान करना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने बीमा अनुबंध के नियम और शर्तों के दायरे को भी ध्यान में रखा है।
बीमा अनुबंध में कुछ पहलू निर्धारित होते हैं जिनके भीतर ऐसी बीमा पालिसी संचालित होगी। यदि ऐसा है, तो बीमाकर्ता कंपनी से उक्त समझौते की सीमाओं से बाहर किसी तीसरे पक्ष को मुआवजा देने की अपेक्षा करना, अनुचित होगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़ित को मुआवजा देने की आवश्यकता और बीमाकर्ता कंपनी के हितों के बीच संतुलन बनाते हुए, हाई कोर्ट द्वारा भुगतान और वसूली सिद्धांत को लागू करने वाला दिया गया आदेश पूरी तरह ठीक है। उसमें किसी तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
बस की टक्कर से हुई बाइकसवार की मौत
मामले में बीमा कंपनी का कहना था कि बस ने रूट परमिट का उल्लंघन किया था और दुर्घटना निर्धारित परमिट रूट के बाहर हुई थी। मौजूदा मामले में सात अक्टूबर 2014 को एक मोटरसाइकिल सवार को तेज रफ्तार और लापरवाही से चल रही बस ने टक्कर मार दी थी जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
ट्रिब्युनल ने 18.86 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया
इस मामले में मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्युनल ने 18.86 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था। मुआवजे की राशि से असंतुष्ट पीड़ित परिवार ने हाई कोर्ट में अपील की साथ ही बीमा कंपनी ने भी बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन होने और बस के रूट परमिट का उल्लंघन कर परिवर्तित मार्ग पर चलने के आधार पर फैसले को चुनौती दी।
हाई कोर्ट ने मुआवजे की राशि बढ़ाकर 3184000 रुपये की
हाई कोर्ट ने मुआवजे की राशि बढ़ाकर 3184000 रुपये कर दी और बीमा कंपनी को मुआवजा भुगतान करने का आदेश देते हुए रकम बस मालिक से वसूलने का अधिकार दिया। हाई कोर्ट के इस आदेश को बीमा कंपनी और बस मालिक ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

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