बीमा कंपनियों पर फंसा है सड़क दुर्घटना पीड़ितों के इलाज का पैसा, रकम जानकर हैरान रह जाएंगे आप
सड़क दुर्घटना पीड़ितों के इलाज के लिए बीमा कंपनियों के पास फंसा हुआ पैसा एक गंभीर मुद्दा है। पीड़ितों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है क्योंकि बीमा क ...और पढ़ें
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बीमा कंपनियों पर फंसा है सड़क दुर्घटना पीड़ितों के इलाज का पैसा।
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली: सड़क दुर्घटनाओं के लगातार बढ़ते आंकड़े के साथ ही चिंता का विषय यह भी है कि घायलों के इलाज की कोई ठोस व्यवस्था अभी तक धरातल पर उतर नहीं पाई है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 162(1) के तहत स्पष्ट प्रविधान होने के बावजूद केंद्र सरकार ने अभी तक बीमा कंपनियों के लिए ऐसी कोई योजना या व्यवस्था नहीं बनाई, जिससे कि दुर्घटना पीड़ितों को आसानी से उपचार मिल सके।
यह पीड़ितों और बीमा कंपनियों के बीच चलने वाले दावे-मुकदमों की लंबी प्रक्रिया का ही परिणाम है कि वित्त वर्ष 2022-23 के अंत तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, सड़क दुर्घटना के घायलों के इलाज के 1046163 दावों का 80455 करोड़ रुपया बीमा कंपनियों पर लंबित है। सड़क दुर्घटना में घायलों के कैशलेस इलाज के लिए सुप्रीम कोर्ट में एस. राजासीकरन की याचिका के तहत ही आगरा निवासी हेमंत जैन की ओर से प्रार्थना पत्र दिया गया, जिसमें इस विषय को उठाया गया।
इसमें प्रार्थी की ओर से तथ्य रखे गए कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 162(1) के तहत सामान्य बीमा व्यवसाय में लगी बीमा कंपनियों पर सड़क दुर्घटना पीडि़तों के उपचार की व्यवस्था करने का कर्तव्य स्पष्ट है। यह दायित्व गोल्डन आवर से आगे भी लागू होता है और इसका उद्देश्य पीडि़तों के लिए निरंतर चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करना है।
हालांकि, इस वैधानिक आदेश के बावजूद बीमा कंपनियों को जवाबदेह ठहराने के लिए कोई मैकेनिज्म सरकार द्वारा नहीं बनाया गया है। प्रश्न यह भी उठ रहा है कि जब बीमा कंपनियों के लिए प्रविधान है कि सड़क दुर्घटना पीड़ित के इलाज का पूरा खर्च वहन करेंगी तो फिर सरकार ने हाल ही बनाई गई कैशलेस इलाज योजना में अधिकतम सात दिन और डेढ़ लाख रुपये तक के इलाज की सीमा किस आधार पर तय की है?
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को निर्देशित कर दिया है कि वह सड़क सुरक्षा समिति सहित सभी हितधारकों के साथ चर्चा कर बीमा कंपनियों द्वारा इलाज सुनिश्चित कराने के मैकेनिज्म पर विचार करे।
इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि दो-तीन दिन पहले ही सड़क परिवहन मंत्रालय व वित्त मंत्रालय के अधिकारियों सहित सड़क सुरक्षा समिति के सदस्यों व अन्य हितधारकों की वर्चुअल बैठक हुई थी। उसमें चर्चा हुई कि किस तरह बीमा कंपनियों से इलाज सुनिश्चित कराया जाए, लेकिन अभी कोई सकारात्मक संकेत नहीं मिला है।
बताया गया है कि सरकार सभी व्यावहारिक पहलुओं पर विचार कर रही है, ताकि जनता को भी राहत मिल जाए और बीमा कंपनियों के लिए यह भारी बोझ न बन जाए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में दिए गए प्रार्थना पत्र में यह भी बताया गया है कि जर्मनी सहित कई देशों में ऐसे मॉडल से ही सड़क दुर्घटना के पीड़ितों का इलाज कराया जाता है, जिसमें सबसे महती भूमिका बीमा कंपनियों की ही है।
तीन-चार साल में निपटता है बीमा दावा
इंश्योरेंस रेगुलेरिटी एंड डेवलपमेंट अथारिटी आफ इंडिया द्वारा सूचना के अधिकार के तहत तहत दी गई जानकारी बताती है कि बीमा कंपनियों से दावों का निपटान कितना जटिल है। राष्ट्रव्यापी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि बीमा दावे के निपटान में औसतन तीन से चार वर्ष का समय लगता है।

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