Higher Education: उच्च शिक्षा और शोध किसी राष्ट्र के विकास और प्रगति की रीढ़
भारत में आज भी स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालय तक की प्रयोगशालाओं का स्वरूप वही है। शैक्षिक संस्थानों को बेहतर बनाने के लिए सरकार को शोध के लिए दी जाने ...और पढ़ें

कैलाश बिश्नोई। उच्च शिक्षा और शोध किसी राष्ट्र के विकास और प्रगति की रीढ़ होते हैं। इसके मद्देनजर यह आवश्यक हो जाता है कि जीवन के हर पहलू में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और शोध कार्य अहम भूमिका निभाएं। इसी को ध्यान में रखते हुए यूजीसी यानी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कई प्रयास कर रहा है। गौरतलब है कि एक तरफ जहां यूजीसी ने पीएचडी के लिए मास्टर डिग्री की अनिवार्यता खत्म कर दी है, वहीं दूसरी ओर आयोग ने नौकरी के चलते पीएचडी नहीं कर पाने वाले पेशेवरों को पार्ट टाइम पीएचडी करने का विकल्प उपलब्ध कराकर बड़ी राहत दी है। इसके अलावा पीएचडी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए यूजीसी थीसिस में नकल रोकने पर जोर दे रहा है। इस संदर्भ में आयोग द्वारा वर्ष 2017 से जुड़े नियम लागू कर 10 प्रतिशत से अधिक मिलता-जुलता कंटेंट कार्रवाई के दायरे में रखा गया है। तय नियमों से अधिक कंटेंट मिलने पर शोधार्थियों को इसके लिए अतिरिक्त समय लेकर दोबारा थीसिस लिखनी पड़ती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि उत्तर भारत के कई राज्यों में प्रोफेसरों द्वारा शोधार्थी से पैसे लेकर शोधकार्य करवाने के कई मामले सामने आए हैं। यह प्रवृत्ति बड़ी दुखद और शर्मनाक है। इस प्रवृत्ति से शोध का भला तो कतई नहीं हो सकता? भारत के कई बड़े उच्च शैक्षणिक संस्थानों में शोध के लिए आवश्यक अन्वेषणपरक बुनियादी प्रवृत्ति का अभाव दिखाई देता है।
सीएसआइआर के एक सर्वेक्षण के मुताबिक हर साल लगभग तीन हजार अनुसंधान/ शोध-पत्र तैयार होते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश शोध-पत्रों में कोई नया विचार नहीं होता। यही नहीं विश्वविद्यालयों तथा निजी और सरकारी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं में सकल खर्च भी बहुत कम है। ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि अनुसंधान/ शोध पत्रों के नजरिये से भी वैश्विक विज्ञान में भारत का योगदान केवल दो से तीन प्रतिशत है। स्पष्ट है कि आर्थिक प्रगति और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिए जितना जोर राष्ट्रीय स्तर पर शोध पर दिया जाना चाहिए, उतना ध्यान नहीं दिया जाता। यूनेस्को के मुताबिक, ज्ञान के भंडार को बढ़ाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से किए गए सृजनात्मक कार्य को ही रिसर्च एवं डेवलपमेंट कहा जाता है। इसमें मानव जाति, संस्कृति और समाज का ज्ञान शामिल है और इन उपलब्ध ज्ञान के स्नोतों से नए अनुप्रयोगों को विकसित करना ही अनुसंधान और विकास का मूल उद्देश्य है। प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर यशपाल ने कहा था कि जिन शिक्षण संस्थाओं में अनुसंधान और उसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता, वे न तो शिक्षा का भला कर पाती हैं और न ही समाज का।
क्यों आवश्यक : भारत में शोध की मात्र और गुणवत्ता दोनों ही दृष्टि से स्थिति चिंतनीय है। एक ओर भारत शोध एवं नवाचार पर अपनी जीडीपी का 0.7 प्रतिशत ही खर्च करता है, जबकि चीन 2.1 और अमेरिका 2.8 प्रतिशत खर्च करते हैं। दक्षिण कोरिया और इजरायल जैसे देश इस मामले में चार प्रतिशत से अधिक खर्च के साथ कहीं अधिक आगे हैं। इन देशों को इसका प्रत्यक्ष लाभ भी मिला है, क्योंकि उनके इन प्रयासों के चलते इन देशों की कई कंपनियों ने पश्चिम की तमाम प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ दिया है। हमारे देश में भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) की स्थापना तकनीकी शोध को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी, ताकि देश के विकास के लिए जरूरी तकनीक तैयार हो सके और भारत सही मायने में आत्मनिर्भर बन सके। लेकिन आज एक तरफ यह तकनीकी संस्थान अमेरिकी साफ्टवेयर कंपनियों के लिए सस्ते पेशेवर आपूर्ति कर रहे हैं, दूसरी तरफ आइएएस के रूप में देश को काफी सारे नौकरशाह दे रहे हैं, जिनका तकनीकी विकास में रत्ती भर योगदान नहीं होता। शोध के लिए बने इन संस्थानों के अपने मूल उद्देश्य से अलग होने की वजह से ही भारत रिसर्च में पिछड़ता चला गया। अब भारत भी रिसर्च एंड डेवलपमेंट में खर्च बढ़ाने जा रहा है तो उसके अपेक्षित परिणाम भी निश्चित रूप से मिलेंगे।
हाल ही में जारी की गई क्यूएस रैंकिंग में भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु दुनिया के बेहतरीन शोध विश्वविद्यालयों में शामिल हो गया है। इसने दुनिया के बेहतरीन विश्वविद्यालयों को भी शोध के मामले में पछाड़ दिया। इस शोध अध्ययन के सूचकों के अनुसार जब विश्वविद्यालयों के फैकल्टी की बात की जाती है तो आइआइएससी दुनिया का सबसे अच्छा शोध विश्वविद्यालय है। अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ वर्षो में सरकार के सहयोग और समर्थन के साथ, वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष अनुसंधान, विनिर्माण, जैव-ऊर्जा, जल-तकनीक और परमाणु ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश और विकास भी हुआ है। ऐसे में भारत में शोध कार्य की दिशा में हुई प्रगति को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन सच्चाई यह भी है कि ऐसे कई अवरोध हैं जिन्हें पार करना भारतीय अनुसंधान और विकास के लिए बहुत आवश्यक है।
सरकारी प्रयास : सरकार ने देश में रिसर्च इकोसिस्टम को सुदृढ़ बनाने के लिए एक राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एनआरएफ) का गठन करने का प्रस्ताव किया है। इसकी स्थापना से शिक्षा जगत को मंत्रलयों और उद्योगों के साथ संयुक्त किया जा सकेगा तथा स्थानीय आवश्यकताओं के लिए प्रासंगिक अनुसंधान के लिए रकम उपलब्ध कराई जा सकेगी। एनआरएफ को लेकर शोध क्षेत्र में एक शीर्ष संरचना के रूप में कार्य करने की आशा की जा रही है। यह वास्तव में स्वायत्त ही रहे तो यह एक बड़ा बदलाव होगा, भारत के उपेक्षित विश्वविद्यालयों और कालेज के शोधकर्ताओं को एनआरएफ जैसी एक नई फंडिंग एजेंसी मिल रही है।
पिछले वर्षो में शोध के प्रति रुझान बढ़ने का एक कारण यह भी है कि इस बीच भारत सरकार द्वारा नई-नई शोधवृत्तियां (फैलोशिप) शुरू की गई हैं तथा यूजीसी की जूनियर रिसर्च फैलोशिप और सीनियर रिसर्च फैलोशिप को भी बढ़ाया गया है। शोध को बढ़ावा देने का एक बेहतर तरीका यह भी हो सकता है कि उद्योग जगत और देश के विश्वविद्यालयों के बीच साझा गठजोड़ बने, ताकि प्रयोगशाला में हुए शोध को बाजार तक पहुंचाया जा सके। हमारे देश में आविष्कार और शोध की संस्कृति को भी बढ़ावा मिल सकता है, बशर्ते हम ऐसे कार्यो के लिए सकारात्मक परिवेश बनाएं।
देश में शोध संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कई कदम उठा रहा है। इसी कड़ी में बीते दिनों पीएचडी में प्रवेश के लिए नई शिक्षा नीति के अनुसार नियमावली जारी करते हुए यूजीसी ने कहा है कि शोध में रुचि रखने वाले छात्र अपने चार साल के स्नातक डिग्री कार्यक्रम के पूरा होने के बाद बिना पोस्ट ग्रेजुएशन किए पीएचडी कर सकते हैं। यह कदम सराहनीय एवं स्वागतयोग्य है, क्योंकि इससे देशभर में पीएचडी कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलने के साथ हमारे देश में शोध संस्कृति विकसित होने की भी उम्मीद जगी है
स्वाधीनता के हीरक जयंती वर्ष में प्रवेश कर जाने के बावजूद कोई भी भारतीय विज्ञानी भारत में रहकर अपने शोध कार्यो के लिए नोबेल पुरस्कार नहीं प्राप्त कर पाया है। स्वाधीनता से पूर्व सी. वी. रमन को भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल मिला था, उसके पश्चात जिन तीन भारतीय या भारतीय मूल के लोगों को विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिले हैं, उनका कार्य क्षेत्र विदेशी धरती थी। इससे यह जाहिर होता है कि भारत में विज्ञान अध्ययन तथा शोध का माहौल क्या है?
भारत में विज्ञान से स्नातक/ परास्नातक होने वाले मेधावी छात्र शोध व अनुसंधान की ओर आकर्षित नहीं होते। आइएएस या पीसीएस अधिकारी बनना चाहते हैं या फिर मार्केटिंग मैनेजर। इसका मुख्य कारण विज्ञानियों तथा शोधकर्ताओं के पेशे की न तो उतनी सामाजिक प्रतिष्ठा है, और न ही आर्थिक सुरक्षा। अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में शोध की समाज में बहुत कद्र है, इसी वजह से वहां नोबेल पुरस्कार विजेताओं की भरमार होती है। भारत में प्रति दस हजार की आबादी पर चार लोग वैज्ञानिक शोध में लगे हुए हैं। वहीं अमेरिका तथा ब्रिटेन में दोनों में यह 79 जबकि रूस में प्रति दस हजार की आबादी पर 58 लोग शोधरत हैं।
भारत में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों में महज एक प्रतिशत छात्र ही शोध करते हैं। अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण के अनुसार देशभर में हर वर्ष 7048 शोधार्थी ही विज्ञान विषयों में पीएचडी करते हैं, इनमें से अधिकतर शोधार्थियों की पीएचडी थीसिस से उस विषय में कोई नवाचारी पुट का समावेश नहीं होता है तथा अधिकतर शोध सतही होते हैं जिसकी वजह से शोधार्थियों के शोध अध्ययन से समाज तथा राष्ट्र को कोई खास लाभ नहीं मिल पाता है, और न ही अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल पाती है। कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में उपलब्धियों को छोड़ दें तो वैश्विक संदर्भ में भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास तथा अनुसंधान की स्थिति धरातल पर उतनी मजबूत नहीं, जितनी कि भारत जैसे बड़े देश की होनी चाहिए। ऐसे में कुछ तथ्यों पर गौर करना जरूरी है। जैसे-भारत विश्व में वैज्ञानिक प्रतिद्वंद्विता के नजरिये से कहां है? नोबेल पुरस्कार एक विश्व प्रतिष्ठित विश्वसनीय पैमाना है जो विज्ञान और शोध के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धियों के जरिये किसी देश की वैज्ञानिक ताकत को बताता है। इस मामले में हमारी उपलब्धि लगभग शून्य है। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शिक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी की जाए, ताकि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का अभाव जैसी मूलभूत समस्या को दूर किया जा सके।
अब वक्त की मांग है कि प्रयोगशालाओं को नया स्वरूप दिया जाए तथा शोध संस्थानों में पनप रही साइंस ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगाने के लिए कठोर कदम उठाए जाएं, ताकि देश में शोधपरक संस्कृति विकसित की जा सके। भारत में चल रहे डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया तथा स्किल इंडिया जैसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए भी बेहद जरूरी है कि विज्ञान की नींव को सशक्त किया जाए तथा विश्वस्तरीय शोध एवं विकास का परिवेश भारत में निर्मित हो।
भारत में विज्ञान के क्षेत्र में शोध की स्थिति को सुधारने के लिए मेधावी छात्रों को शोध कार्य के लिए आकर्षित करने की भी जरूरत है। साथ ही विज्ञान के शोधार्थियों को रोजगार की गारंटी दी जाए। भारत में वैज्ञानिक शोध तथा आविष्कार का कुछ इस तरह का परिवेश बनाना होगा कि देश में बच्चे तथा युवा अभिनेताओं तथा खिलाड़ियों की तरह विज्ञानियों को भी रोल माडल बनाए।
[शोध अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।