आसान नहीं थी इंदौर की साफ-सफाई, सही रणनीति और लोगों के साथ ने हल कर दी मुश्किलें
शुरुआत में इंदौर किसी कचरे के डिब्बे जैसा था। हर तरफ गंदगी थी। बाद में प्रशासन की सख्ती और लोगों के सहयोग से इसको साफ करने का बीड़ा उठाया गया।
मनीष सिंह। मई-2015 में जब मैंने इंदौर में बतौर निगमायुक्त काम संभाला तो हालात नारकीय थे। जगह-जगह कचरे के ढेर और उनके पास पशु मंडराते रहते थे। वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम जैसी कोई बात नहीं थी। क्षेत्रवार सर्वे में पता चला कि शहर में 1380 जगह कचरे के बड़े डिब्बे हैंं, जिनमें कचरा सड़ता रहता है। 6000 से ज्यादा सफाईर्किमयों में से 1000 भी मौके पर नहीं मिलते थे। निगम के पास गाड़ियां कम थीं और किराए की गाड़ियों के भरोसे काम होता था। तब निगम कचरे के निपटान में 2886 रुपये प्रति टन का खर्चा करता था।
अब बारी कड़े फैसलों की थी। तत्कालीन महापौर मालिनी गौड़ के साथ मिलकर शुरुआती एक साल हर बात की तैयारी की। उन्होंने पूरी सख्ती के साथ निगम प्रशासन का साथ दिया। कचरा उठाने वाली निजी कंपनी को र्टिमनेट कर निगम ने सारी व्यवस्थाओं के सूत्र अपने हाथ में लिए। यूनियनों के माध्यम से सफाईर्किमयों को तैयार किया गया और मीडिया के माध्यम से जनता को बताया कि आखिर नगर निगम क्या करना चाहता है? दिसंबर 2015 में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन की शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर की। दिसंबर 2016 तक 100 प्रतिशत कचरे का डोर टू डोर कलेक्शन शुरू हो चुका था।
शौचालयों के निर्माण से आखिरकार इंदौर खुले में शौच मुक्त घोषित हुआ। 2016 से इंदौर में वैज्ञानिक तरीके से रोज 1000 टन गीले-सूखे कचरे का निष्पादन होने लगा। इस सुविधा को आइएसओ प्रमाण पत्र भी मिला। सूखे कचरे के निपटान के लिए 500 टन प्रति दिन की क्षमता वाली एक मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी तैयार की गई जहां गली-गली घूमकर कचरा बीनने वाले 700 रैगपिकर्स को रोजगार दिया गया। गीले कचरे से बनी खाद आसपास के किसानों को बेचने का प्रयोग भी तभी शुरू हुआ। शहर की मुख्य सड़कों, स्मारकों की सफाई के लिए विदेशी मैकेनाइज्ड रोड स्वीपिंग किराए पर लेकर रोज रात में काम किया जाने लगा। 2017 में शहर से गीलासूखा कचरा अलग कर निगम की गाड़ियों में लिया जाने लगा।
व्यावसायिक क्षेत्र में दुकानदारों को दो बिन रखने के लिए जागरूक किया गया। सड़क किनारे कचरा फेंकने वालों के लिए 4500 लिटरबिन लगाए गए। 1587 बल्क वेस्ट जनरेटर, 206 अस्पतालों, मीट व पोल्ट्री मार्केट से कचरा उठाने के लिए समानांतर व्यवस्था खड़ी की गई। 2017 में खजराना गणेश मंदिर और रणजीत हनुमान मंदिर में 500 किग्रा फूलों से खाद बनाई जाने लगी। जनवरी 2018 से दिसंबर 2018 के बीच ज्यादा कचरा पैदा करने वाले 274 बल्क जनरेटर और बगीचों में गीले कचरे से खाद बनाने के संयंत्र लगवाए गए। चोइथराम सब्जी मंडी में 20 टन गीले कचरे से बॉयो सीएनजी बनाकर उससे सिटी बस चलाने का प्रयोग भी सफल रहा।
निर्माण और विध्वंस से निकलने वाले मलबे के निपटान के लिए ट्रेंचिंग ग्राउंड में प्लांट तैयार हुआ और वहां पेवर ब्लॉक-ईंटें बनना शुरू हुईं। ग्राउंड पर 6.25 एकड़ में लैंडफिल बनवाकर पुराने कचरे का रेमिडिएशन शुरू किया गया। इसी दौरान शहर के नदी-नालों की सफाई के साथ आवारा पशुओं को सख्ती से हटाया गया। सर्वश्रेष्ठ वार्ड प्रतियोगिता शुरू करवाई गई। गंदगी करने वालों और पॉलिथीन रखने वालों पर 50 हजार से 1 लाख रुपये तक के जुर्माने लगाए गए। इसमें जनता ने पूरा सहयोग किया और गलती करने पर जुर्माना भरा। 2019 में इंदौर ओडीएफ डबल प्लस मिला और देश का पहला 5 स्टार रेटिंग शहर घोषित हुआ। जनवरी 2019 से दिसंबर 2019 के बीच उन स्थानों की निगरानी तकनीक से की जाने लगी जिन्हें 2017 से 2018 के बीच कचरा मुक्त किया गया।
गूगल टॉयलेट लोकेटर जागरूकता अभियान चलाकर लोगों से फीडबैक दिलवाए गए। बॉयो रेमिडिएशन प्रक्रिया के तहत ट्रेंचिंग ग्राउंड में पड़े 15 लाख टन पुराने कचरे का निपटान किया गया। इससे लगभग 100 एकड़ जमीन खाली हुई। साथ ही यह सुनिश्चित किया गया कि निगम की गाड़ियां घरों से कचरा लेने समय पर निकलें। 2020 में इंदौर घरों से चार तरह का अलगअलग कचरा लेने की तैयारी कर रहा है। पांचवीं बार नंबर वन आने के लिए इंदौर को वाटर प्लस और सेवन स्टार रेटिंग पाना बहुत जरूरी है। वाटर प्लस के लिए घरों से सीवरेज की कनेक्टिविटी शत-प्रतिशत सुनिश्चित करना होगी। इसके अलावा नालों में मिलने वाले गंदे पानी को सीधे छोड़ने के बजाय प्लांट में ट्रीट करके छोड़ना होगा। ये दोनों काम हो गए तो इंदौर वाटर प्लस और सेवन स्टार र्सिटफिकेट प्राप्त कर सकता है। इंदौर में शुरुआत से हर स्तर पर जनप्रतिनिधियों को साथ रखा ताकि जनभागीदारी सुनिश्चित हो। अब सभी मिलकर इसी दिशा में काम करेंगे।
(स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 में शहरों की राष्ट्रीय रैकिंग में दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में इंदौर अव्वल है।)
(कलेक्टर, इंदौर, पूर्व नगर निगम आयुक्त, इंदौर)
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