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    जानें इंदिरा गांधी के उस कड़े फैसले के बारे में, जिसने बदल दिया दुनिया का नक्शा

    By Digpal SinghEdited By:
    Updated: Mon, 19 Nov 2018 12:13 PM (IST)

    पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आती ही जेहन में उनकी आयरन लेडी वाली छवि तैरने लगती है। उन्होंने 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग को जायज ठहराते हुए कही थीं ये बड़ी बातें।

    जानें इंदिरा गांधी के उस कड़े फैसले के बारे में, जिसने बदल दिया दुनिया का नक्शा

    नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आज यानी 19 नवंबर को जन्मदिन है। इंदिरा गांधी का नाम आते ही जेहन में उनकी आयरन लेडी वाली छवि तैरने लगती है। उन्हें यूं ही आयरन लेडी नहीं कहा जाता, विरोधी भी उनके कड़े फैसलों के लिए उन्हें सराहने से नहीं हिचकते। उनके कड़े फैसलों में से एक साल 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में उसका साथ देना और पाकिस्तान पर हमला बोलना भी है। भारत-पाकिस्तान के बीच हुई इस जंग और इंदिरा का साहसिक फैसलों के लिए दुनिया आज भी उन्हें याद करती है।

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    इंदिरा के कड़े फैसले ने बदल डाला दुनिया का नक्शा
    साल 1971 की लड़ाई के बाद दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का उदय हुआ। हालांकि कुछ लोगों का हमेशा से मानना रहा है कि इंदिरा गांधी को किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल देने से बचना चाहिए था। लेकिन बांग्लादेश के बारे में एक सच ये भी है कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को पश्चिमी पाकिस्तान के शासक अपना हिस्सा नहीं मानते थे, बल्कि एक उपनिवेश के तौर पर देखते थे।

    पाकिस्तान के जुल्मों की इंतेहां हो गई थी
    पाकिस्तान की सेना पूर्वी पाकिस्तान में अपने ही नागरिकों पर जुल्म ढा रही थी। पूर्वी पाकिस्तान में महिलाओं को उनकी अपनी ही सेना हवस का शिकार बना रही थी। इन सब हालात में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों और नेताओं ने भारत से मदद मांगी। इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली भारत सरकार ने मदद देने का फैसला किया। इंदिरा गांधी के इस फैसले पर कई सवाल भी उठे। लेकिन उन्होंने तथ्यों का हवाला देकर बताया कि भारत सरकार का फैसला तर्कसंगत था।

    Indira Gandhi Biography Graphics

    हिटलर का उदाहरण देकर पश्चिमी मीडिया को दिया जवाब
    1971 में बांग्लादेश की आजादी के लिए की कई भारतीय सेना की कार्रवाई के तुरंत बाद पश्चिमी मीडिया ने इंदिरा गांधी से कई तीखे सवाल पूछे। इंदिरा गांधी ने सभी सवालों का जबाव देते हुए एक बात कही कि उस समय चुप्पी का मतलब ही नहीं था। पूर्वी पाकिस्तान में सेना अत्याचार कर रही थी, पाकिस्तान की अपनी ही सेना अपने नागरिकों को निशाना बना रही थी। सेना के जवान पूर्वी पाकिस्तान की महिलाओं के साथ उनके बड़े बुजुर्गों के सामने ही दुष्कर्म कर रहे थे। अपने फैसले का बचाव करते हुए उन्होंने सवाल करने वाले से पूछा कि जब जर्मनी में हिटलर खुलेआम यहूदियों की हत्या कर रहा था, तो उस वक्त पश्चिमी देश शांत तो नहीं बैठे। यूरोप के दूसरे देश हिटलर के खिलाफ उठ खड़े हुए। कुछ उसी तरह के हालात पूर्वी पाकिस्तान में बन चुके थे और उनके सामने दखल देने के अलावा अन्य कोई चारा नहीं था। वो पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार होते हुए नहीं देख सकती थीं।

    यूं दिए अटपटे सवालों के जवाब
    इंदिरा गांधी से यह भी सवाल पूछा गया कि भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में क्यों दाखिल हुई। उस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने तीन बार भारत पर हमला किया था। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की सैन्य हुकूमत इस तरह के हालात बना रही थी कि भारत के सामने कोई विकल्प नहीं था। जहां तक भारत के सैनिकों का दाखिल होने का सवाल है तो पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं ने भारत सरकार से अपील की थी कि भारत उनकी मदद करे। भारत सरकार के किसी भी आधिकारिक बयान में आप ये नहीं पाएंगे कि हम किसी देश के आंतरिक मामले में दखल देना चाहते थे।

    आपातकाल का कठोर फैसला लिया तो उसका बचाव भी किया
    1971 में पाकिस्तान की करारी हार के बाद इंदिरा गांधी की लोकप्रियता चोटी पर थी। करीब तीन साल बाद 1974 में भारत ने पोखरण परमाणु परीक्षण के जरिए ये साबित कर दिया कि भारत महज कृषि प्रधान देश नहीं है, बल्कि वो अपने दम पर विकसित देशों का मुकाबला भी कर सकता है। लेकिन एक सच यह भी था कि इंदिरा गांधी की लोकप्रियता में गिरावट भी आ रही थी। 1974 के बाद विरोधी दल के नेता उन पर जबरदस्त हमला कर रहे थे। इंदिरा गांधी को लगने लगा था कि उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है। अपने सलाहकारों पर भरोसा कर उन्होंने 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा की। हालांकि ये प्रयोग कामयाब नहीं रहा। आम चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी थी। जनता पार्टी की सरकार ने आपातकाल में इंदिरा की भूमिका के लिए शाह आयोग का ऐलान किया। शाह आयोग ने माना कि आपातकाल एक सनकभरा फैसला था। लेकिन 1978 में थेम्स टीवी को दिए साक्षात्कार में इंदिरा गांधी ने कहा कि उन्होंने जो भी फैसले लिए वो राजनीति से प्रेरित नहीं थे, बल्कि हालात ही ऐसे बन गए थे कि अप्रिय और कठिन फैसले लेने पड़े।

    इंदिरा का आखिरी भाषण
    30 अक्‍टूबर को दिए उनके आखिरी भाषण में भी इस बात को साफतौर पर देखा जा सकता है। इसमें उन्‍होंने कहा था कि "मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।" 

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