बाजार का 'बॉस' जनता के लिए खतरा, कैसे शेयर जाल में फंसे लाखों यात्री; समझें मोनोपॉली का गणित
IndiGo Crisis Monopoly: दिसंबर में इंडिगो की उड़ानें रद्द होने से लाखों यात्री प्रभावित हुए, जिससे एकाधिकार की समस्या उजागर हुई। इंडिगो की बाजार हिस्स ...और पढ़ें

जागरण टीम, नई दिल्ली। दिसंबर की सुबह हजारों यात्री एयरपोर्ट पर थे। उनको अपनी मंजिल पर पहुंचना था, लेकिन पता नहीं था कि वह कब पहुंचेंगे, क्योंकि उनकी फ्लाइट रद हो गई थी। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। लोगों को 10-10 घंटे तक फ्लाइट का इंतजार करना पड़ा। लाखों यात्रियों को बेबस होकर मानसिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा।
इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी। पूरे देश में अफरातफरी का माहौल बन गया था। इसकी वजह यह थी कि देश में प्रत्येक 10 हवाई यात्रियों में से छह इंडिगो की फ्लाइट में यात्रा करते हैं और इंडिगो एयरलाइंस का कामकाज बाधित हो गया था। किसी सेक्टर में एक कंपनी या संस्था का एकाधिकार किस तरह के नतीजे दे सकता है, इंडिगो संकट इसकी एक बानगी है।
देश के उड्डयन बाजार में कंपनी की हिस्सेदारी करीब 65 प्रतिशत है, वहीं दूसरी बड़ी कंपनी एअर इंडिया की हिस्सेदारी करीब 25 प्रतिशत। यह एकाधिकार रातोंरात नहीं हुआ। सवाल है कि नियामक संस्थाओं ने समय पर इस खतरे को पहचान कर इसे दूर करने के लिए कदम क्यों नहीं उठाए? देश के उड्डयन बाजार में एकाधिकार की स्थिति कैसे बनी और इसके लिए कौन जिम्मेदार है, इसकी पड़ताल अहम मुद्दा है...
क्या है एकाधिकार?
एकाधिकार एक ऐसी बाजार स्थिति है, जहां किसी एक कंपनी का किसी वस्तु या सेवा पर पूरा नियंत्रण होता है, कोई करीबी विकल्प नहीं होता, जिससे कंपनी अपनी मर्जी से कीमतें तय कर सकती है। इसके नुकसानों में उपभोक्ताओं के लिए ऊंची कीमतें, घटिया गुणवत्ता और नवाचार की कमी शामिल हैं। इसमें प्रतिस्पर्धा नहीं होती, जिससे उपभोक्ता हितों को नुकसान पहुंचता है और बाजार में अनुचित व्यवहार को बढ़ावा मिलता है।
दो कंपनियों का प्रभुत्व
भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो का व्यस्त उड़ान शेड्यूल नवंबर में उस समय बिगड़ गया, जब पायलट और क्रू मेंबर्स को ज्यादा आराम देने वाला नया नियम लागू हुआ। दिसंबर के पहले हफ्ते में एयरलाइन पूरी तरह बिखर गई। एक दिन में ही 1,000 से ज्यादा उड़ानें रद कर दी गई, जिससे 10 लाख से ज्यादा बुकिंग प्रभावित हुईं। लोग परेशान हुए और हालात बिगड़े तो सरकार ने एयरलाइन की कार्यप्रणाली की जांच का आदेश दिया।
बड़ा सवाल यह है कि महज एक कंपनी की गड़बड़ी से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एविएशन सेक्टर कैसे ठप हो सकता है? इसका जवाब बाजार में प्रतिस्पर्धा की कमी होने में छिपा है। दरअसल, 2007 में शुरू हुई इंडिगो की जबरदस्त कामयाबी ने उसे घरेलू उड्डयन बाजार का 64 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा दे दिया। वहीं एअर इंडिया के पास 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

इंडिगो संकट ने भारत की अर्थव्यवस्था में एकाधिकार के खतरों को सामने ला दिया है। यहां एयरलाइंस से लेकर टेलीकाम और यूपीआई से लेकर ई-कॉमर्स तक में ज्यादातर बाजार हिस्सेदारी कुछ ही कंपनियों के पास है। हालांकि, विशेषज्ञों और और नियामकों का कहना है कि किसी सेक्टर में एक कंपनी की बाजार हिस्सेदारी ज्यादा होना ही अपने आप में समस्या नहीं है। हालांकि अगर प्रभुत्व वाली कंपनी प्रतिस्पर्धी कंपनी को बाजार से बाहर करवा देती है या उपभोक्ताओं का शोषण करती है तो इससे समस्याएं पैदा हो सकती हैं। यहां पर सरकार को दखल देना चाहिए।
एयरपोर्ट और ईंधन रिफाइनिंग पर दो कंपनियों का है कब्जा
इंडिगो का बुरा हफ्ता भारत की सबसे तेज बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी समस्या को उजागर करता है। यहां सबसे बड़ी कंपनियां छोटी कंपनियों को बाहर कर रही हैं। हवाई क्षेत्र में इतनी कम प्रतिस्पर्धा और कुछ ही कंपनियों के हाथ में इतना ज्यादा नियंत्रण अब भारत में आम हो गया है।
भारत के सबसे फायदेमंद एयरपोर्ट दो कंपनियां चलाती हैं और देश के 40 प्रतिशत ईंधन की रिफाइनिंग भी दो कंपनियां करती हैं। इनके अलावा दूरसंचार, ई-कामर्स, बंदरगाह और स्टील जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी कुछ ही बड़ी कंपनियां हावी हैं।
टेलीकॉम मार्केट में भी तीन कंपनियों का ही वर्चस्व
आठ महीने पहले भारत की दो बड़ी दूरसंचार कंपनियों जियो और एयरटेल के पीछे तीसरी कंपनी वोडाफोन आइडिया थी, जो सरकार को दिए जाने वाले टैक्स के बोझ से दबी थी। मार्च में सरकार ने उस कर्ज का बड़ा हिस्सा अपनी हिस्सेदारी में बदल दिया और अब सरकार का कंपनी में 49 प्रतिशत हिस्सा है। आज की स्थिति देखकर साफ है कि भारत में कम से कम तीन नेशनल टेलीकॉम कंपनियां बनी रहेंगी। हालांकि वोडाफोन आइडिया अभी भी बकाया शुल्क नहीं चुका पाई है।

प्रतिस्पर्धा आयोग के पास सीमित शक्तियां
भारत में प्रतिस्पर्धा आयोग ने इस साल पहली बार पाया कि 8 बड़े सेक्टर्स में बड़ी कंपनियों का एकाधिकार है। लेकिन आयोग के पास सिर्फ संभावित विलय की जांच करने और उसे मंजूर या खारिज करने की ताकत है। कंपनियों के आकार में बढ़ोतरी रोकने या उड्डयन जैसे उद्योगों में एकाधिकार कम करने की ताकत उसके पास नहीं है। भारत में कभी प्रतिस्पर्धी बाजार का माडल नहीं रहा, इसलिए इसके खिलाफ एक्शन को लेकर भी बहुत ज्यादा स्पष्टता नहीं है।
नई कंपनियों को नहीं मिलता आसानी से कर्ज
नई कंपनियों के लिए सबसे बड़ी रुकावट क्रेडिट यानी कर्ज न मिलना है। 2015 के आसपास एनपीए संकट सामने आने के बाद बैंक सिर्फ सबसे ताकतवर कंपनियों को ही कर्ज दे रहे हैं। बड़ा होना आपको सफल होने की ज्यादा संभावना देता है जैसा कई देशों में होता है। लेकिन भारत में बड़ी कंपनियों की कर्ज लेने की ताकत निर्णायक है।

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