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    भारत-अमेरिका की 'डील' फाइनल! Flipkart के IPO की राह खुली, क्या है इस समझौते का सीक्रेट?

    By Jaiprakash RanjanEdited By: Deepti Mishra
    Updated: Tue, 16 Dec 2025 03:33 PM (IST)

    भारत और अमेरिका के बीच कारोबारी समझौते के अंतिम मसौदे पर सहमति जल्द बनने की उम्मीद है। वॉलमार्ट की फ्लिपकार्ट को आईपीओ के लिए मंजूरी मिलने के संकेत है ...और पढ़ें

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    e: भारत-अमेरिका व्यापार समझौता फाइनल! Flipkart के IPO की राह खुली।

    जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली अब सिर्फ यह कुछ दिनों या हफ्तों की बात है कि भारत और अमेरिका के बीच कारोबारी समझौते के अंतिम मसौदे पर सहमति बन जाएगी और समझौता करने की भी घोषणा कर दी जाएगी। दोनों देशों की तरफ से हाल के दिनों में कुछ ऐसे कदम उठाए गए हैं, जो बताते हैं कि टैरिफ को लेकर विवाद के बावजूद वह एक-दूसरे के आर्थिक हितों का ख्याल रख रहे हैं।

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    इस क्रम में अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट की 77 फीसद हिस्सेदारी वाली भारतीय ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट की आपीओ योजना की राह की अंतिम बाधा यानी प्रेस नोट-3 के तहत भी मंजूरी मिल जाने के संकेत हैं। फ्लिपकार्ट में चीन की एक वित्तीय कंपनी टेनसेंट की 5% की हिस्सेदारी है, इसलिए इसके शेयर बाजार में उतरने से पहले गृह मंत्रालय से पीएन 3 के नियमों के अंतर्गत स्वीकृति लेना आवश्यक है।

     फ्लिपकार्ट को भारत में बेस बनाने की मिली मंजूरी

    एक दिन पहले ही नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने फ्लिपकार्ट को अपना बेस सिंगापुर से भारत स्थानांतरित करने की मंजूरी मिल चुकी है। फ्लिपकार्ट अमेरिका के वॉलमार्ट समूह की कंपनी है। वॉलमार्ट पहले भारत में सीधे उतरने की तैयारी कर रही थी, लेकिन बाद में इसने रणनीति बदली और वर्ष 2018 में इसने बेंगलुरु स्थित इस ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट का अधिग्रहण किया।

    अमेरिकी सरकार पूर्व में कई बार भारत सरकार की ई-कॉमर्स नीति की आलोचना भी कर चुकी है। भारत सरकार की सख्त नीतियों को देख कर ही वॉलमार्ट ने व्यावसायिक उद्देश्यों के चलते फ्लिपकार्ट को भारतीय नियमों के अधीन लाने की नीति बनाई है। इसके लिए फ्लिपकार्ट को वर्ष 2026 में भारतीय शेयर बाजार में भी उतारा जा रहा है।

    भारत-अमेरिका ई-कॉमर्स नीति में क्या है खास?

    सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत व अमेरिका के बीच द्विपक्षीय कारोबारी समझौते को लेकर जो बातचीत हुई है, उसमें भारत सरकार की ई-कॉमर्स नीति पर भी चर्चा हुई है। भारत अभी भी ई-कॉमर्स मंच को पूरी तरह से विदेशी कंपनियों को खोलने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन भारत वॉलमार्ट की हिस्सेदारी वाली फ्लिपकार्ट को शेयर बाजार में उतरने में पूरी मदद भी करने को तैयार है।

    इसके लिए चीनी कंपनी टेनसेंट की पांच फीसद हिस्सेदारी को कोई अड़चन नहीं माना जा रहा। इसके जरिए भारत यह संकेत देना चाहता है कि भारत अमेरिकी कंपनियों की मांग को तवज्जो दे रहा है। फ्लिपकार्ट को अगर यह मंजूरी मिल जाती है तो कंपनी के लिए भारतीय शेयर बाजार में आईपीओ लाने का रास्ता भी खुल जाएगा। इसके अलावा भी हाल के दिनों में भारत ने कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिसके तार संभावित कारोबारी समझौते से जोड़ कर देखा जा रहा है।

    शांति बिल से क्या बदलेगा?

    एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने संसद में ‘सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया बिल, 2025’ (शांति बिल) पेश किया है। यह बिल परमाणु दुर्घटना में सप्लायर्स की देयता को सीमित करेगा और निजी क्षेत्र को परमाणु ऊर्जा उत्पादन की अनुमति देगा।

    अमेरिकी कंपनियों जैसे वेस्टिंगहाउस और जीई के लिए यह लंबे समय से बाधा थी। इससे अमेरिकी परमाणु रिएक्टरों के आयात और निवेश का रास्ता खुलेगा। इसी तरह से भारत की सरकारी तेल कंपनियों ने अमेरिका से लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) आयात को बढ़ाने के प्रस्ताव को ट्रंप प्रशासन ने मंजूरी दी है।

    भारत अपनी जरूरत का 10 फीसद एलपीजी अमेरिका से आयात करेगा। आने वाले दिनों में यह आयात और बढ़ेगा। इसे भी भारत-अमेरिकी कारोबारी समझौते से ही जोड़ कर देखा जा रहा है। इसके पहले अमेरिका ने भारत को जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइल और एक्सकैलिबर प्रिसिजन आर्टिलरी प्रोजेक्टाइल सहित करीब 93 मिलियन डॉलर की हथियार बिक्री को मंजूरी दी।