पर्यावरण मंत्रालय शुरू किया भारत का पहला बाध्यकारी कार्बन बाजार, उत्सर्जन में कटौती के लिए बनाया गया 460 उद्योगों को लक्ष्य
पर्यावरण मंत्रालय ने भारत के पहले अनुपालन-आधारित कार्बन बाजार के तहत 460 से अधिक औद्योगिक इकाइयों के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लक्ष्य प्रस्तावित किए हैं। एल्युमीनियम लोहा इस्पात और पेट्रोकेमिकल्स जैसे क्षेत्रों को उत्सर्जन कम करना होगा। योजना के अनुसार नामित उद्योगों को समय के साथ उत्सर्जन कम करना होगा अन्यथा उन्हें कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र खरीदने होंगे। नियमों का उल्लंघन करने पर वित्तीय दंड लगेगा।
एएनआई, नई दिल्ली। पर्यावरण मंत्रालय ने भारत के पहले अनुपालन-आधारित कार्बन बाजार के हिस्से के रूप में 460 से अधिक औद्योगिक इकाइयों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन लक्ष्य प्रस्तावित करते हुए एक मसौदा अधिसूचना जारी की है।
दरअसल, औद्योगिक उत्सर्जन पर अंकुश लगाने और डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाने के उद्देश्य से यह कदम एल्युमीनियम, लोहा और इस्पात, पेट्रोलियम रिफाइनिंग, पेट्रोकेमिकल्स और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों पर लागू होगा। बता दें कि 23 जून को जारी मसौदा कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (सीसीटीएस) 2023 का हिस्सा है।
क्या है इस योजना का उद्देश्य?
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, इस योजना के तहत नामित उद्योगों को समय के साथ उत्पादन की प्रति इकाई अपने जीएचजी उत्सर्जन को कम करना होगा। बता दें कि जिन नामित उद्योगों की यहां बात हो रही है उन्हें बाध्यकारी संस्थाएं के तौर पर जाना जाता है।
मंत्रालय के मसौदे के अनुसार, बाध्यकारी संस्था संबंधित अनुपालन वर्ष में जीईआई लक्ष्यों को प्राप्त करेगी या भारतीय कार्बन बाजार से कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र खरीदकर अपने जीईआई लक्ष्य को पूरा करेगी। माना जा रहा है कि यदि इन्हें लागू किया जाता है, तो ये लक्ष्य अंतिम अधिसूचना की तिथि से कानूनी रूप से लागू हो जाएंगे। तय मसौदे के अनुसार, अनुपालन में विफलता पर पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत वित्तीय दंड और कानूनी परिणाम भुगतने होंगे।
कैसे किया जाएगा लक्ष्यों का निर्धारण?
बता दें कि ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) क्षेत्रीय बेंचमार्क और पिछले प्रदर्शन का उपयोग करके इन लक्ष्यों को निर्धारित करेगा। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता (जीईआई) को आउटपुट या उत्पाद की प्रति इकाई उत्सर्जित CO2 समतुल्य टन के रूप में परिभाषित किया गया है।
उदाहरण के तौर पर समझे तो महाराष्ट्र में हिंडाल्को इंडस्ट्रीज का तलोजा एल्युमीनियम प्लांट, जिसका 2023-24 में बेसलाइन GEI 1.3386 tCO2 प्रति टन था, उसे 2026-27 तक उस आंकड़े को घटाकर 1.2563 करना होगा।
ठीक इसी तरीके से स्टील सेक्टर में, आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया की हजीरा सुविधा (उत्पादन मात्रा के हिसाब से भारत की सबसे बड़ी बाध्य इकाई) को इसी अवधि के दौरान अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 2.2701 से घटाकर 2.1696 tCO2 प्रति टन करना होगा।
लक्ष्यों को हासिल करने वाली संस्थाओं कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र भी मिलेगा
बता दें कि अपने लक्ष्य से कम उत्सर्जन करने वाली संस्थाओं को कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र प्राप्त होंगे, जिनकी गणना जीईआई लक्ष्य और वास्तविक जीईआई के बीच के अंतर को कुल उत्पादन मात्रा से गुणा करके की जाएगी।
ठीक इसके उलट, अपने लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन करने वालों को भारतीय कार्बन बाजार से क्रेडिट में अंतर खरीदना होगा। सरकार द्वारा बनाए गए ड्राफ्ट में कहा गया है कि जारी किए जाने वाले कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्रों की संख्या... निम्नलिखित सूत्र के अनुसार निर्धारित की जाएगी: (जीईआई लक्ष्य - जीईआई प्राप्त) x उत्पादित समतुल्य उत्पाद की इकाई।
90 दिन के भीतर चुकानी होगी राशि
अधिसूचना के अनुसार यह राशि व्यापार चक्र के दौरान कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र के कारोबार की औसत कीमत के दोगुने के बराबर होगी। जुर्माना 90 दिनों के भीतर चुकाना होगा। एकत्रित धन का उपयोग राष्ट्रीय संचालन समिति की सिफारिश और केंद्र की मंजूरी के बाद कार्बन बाजार संचालन का समर्थन करने के लिए किया जाएगा।
मंत्रालय ने जनता और उद्योग हितधारकों से टिप्पणियां, आपत्तियां या सुझाव आमंत्रित किए हैं। मसौदा प्रकाशन के 60 दिनों के भीतर प्रस्तुतियाँ की जानी चाहिए और उन्हें ccts.hsm-moefcc@gov.in पर ईमेल किया जा सकता है।
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