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    अमेरिका-ब्रिटेन नहीं इन देशों का रुख कर रहे भारतीय स्टूडेंट्स, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

    Updated: Thu, 20 Nov 2025 08:47 PM (IST)

    भारतीय छात्र अब अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों की महंगी शिक्षा के कारण जर्मनी, आयरलैंड जैसे देशों का रुख कर रहे हैं। एप्लाईबोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, छात्र शिक्षा की लागत और रोजगार के अवसरों को अधिक महत्व दे रहे हैं। जर्मनी और आयरलैंड कम ट्यूशन फीस के कारण लोकप्रिय हो रहे हैं, जबकि फ्रांस और स्पेन भी रिकॉर्ड नामांकन दर्ज कर रहे हैं। 2030 तक एक करोड़ छात्र किफायती शिक्षा वाले देशों में जा सकते हैं।

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    छात्रों का रुझान नए देशों की ओर। जागरण फोटो

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और आस्ट्रेलिया में महंगी होती पढ़ाई, कठोर नीतियों और ऊंची फंडिंग आवश्यकताओं के चलते भारतीय छात्र अब नए देशों की ओर रुख कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय छात्र मोबिलिटी प्लेटफार्म एप्लाईबोर्ड की 2026 ट्रेंड्स: बिल्डिंग एंड रीबिल्डिंग ग्लोबल एजुकेशन रिपोर्ट बताती है कि छात्र अब प्रतिष्ठा से अधिक शिक्षा की लागत, रोजगार के अवसर और नीतिगत स्थिरता को तरजीह दे रहे हैं।

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    रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय साम‌र्थ्य अब निर्णय का सबसे बड़ा कारक बन गया है। जर्मनी और आयरलैंड अपनी कम ट्यूशन फीस और पढ़ाई के बाद काम के लचीले विकल्पों की वजह से तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। वहीं फ्रांस और स्पेन भी आवासीय पहल और सुगम वीजा प्रक्रियाओं के चलते रिकार्ड नामांकन दर्ज कर रहे हैं।

    क्यों हो रहा 'बिग फोर' से मोह भंग

    अंग्रेजी भाषी देशों का आकर्षण कम होने के पीछे उनकी सख्त होती नीतियां अहम कारण हैं। उदाहरण के तौर पर, 2025 में कनाडा में स्टडी परमिट जारी करने में 54 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि पोस्ट-स्टडी वर्क परमिट में लगभग 30 प्रतिशत कमी आई है।

    आस्ट्रेलिया और यूके में दाखिले स्थिर हैं, पर ऊंची जीवन-यापन लागत और कठोर मानकों ने छात्रों की दिलचस्पी घटाई है। वहीं, अमेरिका भी अंतरराष्ट्रीय छात्रों को हतोत्साहित कर रहा है। एप्लाईबोर्ड की सीईओ और सह-संस्थापक मेती बसीरी कहती हैं कि विदेश में पढ़ाई का फैसला अब पूरी रणनीति और व्यावहारिक दृष्टिकोण से लिया जा रहा है। छात्र किफायती पढ़ाई, स्पष्ट करियर परिणाम, पढ़ाई के बाद काम के अवसर और स्थिर नीतियां तलाश रहे हैं।

    फायदा उठा रहे गैर-अंग्रेजी भाषी

    देश बसीरी का कहना है कि 2024-25 में जर्मनी में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या चार लाख पार कर गई। यहां आसान कार्य-अवसरों के साथ दोहरी नागरिकता जैसे कदम भी छात्रों को आकर्षित कर रहे हैं। फ्रांस 2030 तक 30 हजार भारतीय छात्रों को दाखिला देने की तैयारी कर रहा है।

    दक्षिण कोरिया और यूएई भी पढ़ाई के बाद काम के अधिकार और सरल इमीग्रेशन प्रक्रियाओं के साथ तेजी से उभर रहे हैं। रिपोर्ट में अनुमान है कि 2030 तक एक करोड़ अंतरराष्ट्रीय छात्र दुनिया के उन देशों की ओर बढ़ सकते हैं, जो किफायती पढ़ाई और बेहतर रोजगार संभावनाएं मुहैया कराते हैं।

    (न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ )